नई दिल्ली। देश आज भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू की जयंती मना रहा है। इस मौके पर सभी अपने-अपने तरीके से उन्हें याद कर रहे हैं और श्रद्धांजलि दे रहे हैं। देश में औद्योगिकीकरण, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने समेत कई ऐसे मसले रहे हैं, जिसे लेकर नेहरू की हमेशा ही तारीफ की जाती रही है। हालांकि चीन को समझने में असफल रहने और कश्मीर मसले को जटिल बनाने में उनकी गलतियों का भी जिक्र किया जाता रहा है।
ऐसे ही कश्मीर के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की 5 गलतियां गिनाई हैं। उनका कहना है कि यदि नेहरू ये ब्लंडर्स न करते तो शायद कश्मीर की तस्वीर आज कुछ और ही होती।
किरेन रिजिजू लिखते हैं कि नेहरू ने 24 जुलाई, 1952 को अपने एक संबोधन में लोकसभा में कहा था कि जुलाई के मध्य में ही उनके सामने कश्मीर के विलय का सवाल उठा था। उन्होंने कहा था, ‘हमारे वहां कई लोकप्रिय संगठनों से संपर्क हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके नेताओं से रिश्ते हैं। इसके अलावा महाराजा सरकार से भी संपर्क है।’
इसी स्पीच में नेहरू ने आगे कहा था, ‘हमने दोनों को सलाह दी है कि कश्मीर एक स्पेशल मसला है। ऐसे में वहां के मामले में किसी भी तरह की जल्दबाजी करना ठीक नहीं होगा।’ इसके किरेन रिजिजू ने कश्मीर के मसले पर जवाहर लाल नेहरू की 5 गलतियां भी गिनाई हैं।
रिजिजू ने कश्मीर पर गिनाई नेहरू की कौन सी पहली गलती
किरेन रिजिजू लिखते हैं कि 21 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर के तत्कालीन पीएम मेहर चंद महाजन को नेहरू ने लिखा था, ‘इस मौके पर इंडियन यूनियन में कश्मीर के विलय को लेकर कोई ऐलान नहीं किया जा सकता।’ इन शब्दों से क्या पता चलता है कि कौन विलय के लिए आग्रह कर रहा था और किसने उसे खारिज किया था।
न्यूज 18 के लिए लिखे लेख में रिजिजू लिखते हैं, ‘पाकिस्तान ने पहले ही 20 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर हमला कर दिया था। लेकिन नेहरू उसके अगले दिन एक पत्र में लिखते हैं कि कश्मीर सरकार को फिलहाल भारत के साथ प्रदेश के विलय की बात नहीं करनी चाहिए। क्या इस सबूत को खारिज किया जा सकता है?’
इंटरनेशनल लेवल पर नेहरू की गलती से गया मामला?
नेहरू का दूसरा ब्लंडर बताते हुए रिजिजू लिखते हैं, ’25 नवंबर, 1947 को संसद में नेहरू कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि यह विलय सिर्फ ऊपरी स्तर के लोगों के द्वारा हो। इसकी बजाय यह गठजोड़ जनता की इच्छा के आधार पर होना चाहिए। इसलिए हम जल्दबाजी नहीं करना चाहते।’ रिजिजू लिखते हैं कि नेहरू ने कश्मीर को लेकर यह बात ऐसे समय में कही थी, जब यह मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा था।
क्या थी कश्मीर पर नेहरू की तीसरी गलती
तीसरी गलती बताते हुए किरेन रिजिजू लिखते हैं कि कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य कृपलानी मई, 1947 में कश्मीर गए थे। ट्रिब्यून में 20 मई, 1947 को कृपलानी के विचारों को प्रकाशित करते हुए लिखा गया था, ‘हरि सिंह भारत में विलय चाहते हैं। लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से उनके खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू करना ठीक नहीं है।’ आचार्य कृपलानी कहते हैं कि महाराजा हरि सिंह कोई बाहरी नहीं हैं। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस से कहा था कि वह कश्मीर छोड़ो का आंदोलन छोड़ दे।
नेहरू ने विलय के लिए रख दी थी यह शर्त
कश्मीर के ही मामले पर नेहरू की एक और गलती का जिक्र करते हुए रिजिजू लिखते हैं कि जून 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन के कश्मीर दौरे से पहले नेहरू ने उनसे कहा था कि हरि सिंह जो चाहते हैं, वह नहीं हो सकता। नेहरू ने अपने उस पत्र के 28वें पैरा में लिखा था, ‘कश्मीर के लिए यह जरूरी होगा कि पहले भारत की संविधान सभा में वह जॉइन करें। इससे दोनों की मांगों को पूरा किया जा सकेगा और महाराजा की इच्छा भी पूरी होगी।’ इस तरह नेहरू जून 1947 में ही जान गए थे कि महाराजा की इच्छा क्या है। इसमें सिर्फ एक ही बाधा थी और वह था नेहरू का निजी अजेंडा।
विलय से पहले इस बदलाव की मांग कर रहे थे नेहरू
पांचवीं गलती का जिक्र करते हुए रिजिजू लिखते हैं कि जुलाई में विलय की कोशिश को नेहरू ने झटका दे दिया था। यही नहीं सितंबर 1947 को एक बार फिर से महाराजा हरि सिंह की ओर से कोशिश की गई थी। यह प्रयास पाकिस्तान के हमले के ठीक एक महीने पहले किया गया था।
कश्मीर के पीएम मेहरचंद महाजन ने सितंबर में नेहरू के साथ मीटिंग का भी जिक्र बाद में किया था। महाजन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, ‘मैं पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी मुलाकात की थी। महाराजा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय चाहते थे और प्रशासन में भी जरूरी सुधार के लिए राजी थे। लेकिन वह प्रशासनिक सुधार के मसले पर बाद में चर्चा चाहते थे। वहीं नेहरू का कहना था कि राज्य के प्रशासन में तत्काल बदलाव किया जाए।’