जयपुर । राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच मतभेद भले ही मंच पर नहीं नजर आये हो, लेकिन अब प्रदेश की जनता के सामने खुलकर सामने आ चुके है। कहने को तो सचिन पायलट डिप्टी सीएम है, लेकिन जब से पायलट डिप्टी सीएम बने है, शासन सचिवालय के मुख्य भवन में अपने कक्ष में एक दर्जन से भी कम बार आकर वह बैठे होंगे। ज्यादात्तर वक्त पीसीसी बैठते रहे है।
इसके अलावा योजना भवन में भी उन्होंने अपना कक्ष तैयार करवाया था। लेकिन यह शायद ही लोग कम जानते है कि डिप्टी सीएम की कई फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय से यह कहकर लौटा दी जाती थी कि वित्त विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार यह प्रक्रिया पूरी करें।
शायद यही कारण है कि डिप्टी सीएम पायलट नाराजगी बढ़ती जा रही हो। वित्त विभाग मुख्यमंत्री के पास है, ऐसे में पीडब्ल्यूडी, ग्रामीण विकास, आयोजना, विज्ञान प्रौद्योगिकी जैसे विभागों की कई योजनाओं के बजट की मंजूरी नहीं मिलने से भी नाराजगी मानी जा सकती है। साथ ही राज्यसभा चुनाव के बाद राजनीतिक नियुक्तियों, मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं ने भी जोर पकड़ रखा था, ऐसी स्थिति में मलाईदार पदों पर अपने चेहतों की नियुक्ति नहीं होते देख यह कदम भी पायलट का माना जा रहा है।
इस राजनीतिक घटनाक्रम के असर को लेकर तो भले ही भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए है, लेकिन प्रशासनिक मशीनरी के सामने भी परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है। जो फाइलें मंत्री तक जाती है, उसे लेकर आम जनता को भटकाना पड़ता है। कुछ हालात कांग्रेस के उन समर्थकों के सामने है, जो यह समझ नहीं पा रहे है कि कहां जाए, हाथ के बैनर पर रहे, या पायलट और गहलोत के खेमेबाजी के शिकार बने।
डिप्टी सीएम सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के मीडिया में दिए गए बयान हमेशा अलग-अलग रहे है और सुर्खियां बने है, लेकिन जब मलाईदार पद बंटने और मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाओं के जोर पकड़ा, तो अब यह लडाई खुलकर सामने आ गई है।