कहीं मजबूरी, तो कहीं जिद, किसी ने घर पहुंचने की चाह में जान गंवा दी

नई दिल्ली। चीन के वुहान से फैले कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 को 14 घंटे के जनता कर्फ्यू की अपील की। दो दिन बाद यानी 24 मार्च 2020 की रात अगले दिन से देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई।

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देश के इतिहास में पहली बार पब्लिक और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से बंद कर दिया गया। आसमान में न हवाई जहाज थे, न सड़कों पर गाड़ियां। पटरियों पर धड़धड़ाती ट्रेनें भी थम गईं। यह सब मानो ऐसा था जैसे किसी ने अचानक से स्टैच्यू कहा और पूरा देश ज्यों का त्यों रुक गया।

यह लॉकडाउन उन करोड़ों मजदूरों के लिए एक सजा के ऐलान सा हो गया जो रोटी के लिए अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर प्रवास पर थे। इन लाखों मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों की राह पकड़ ली। किसी ने बीवी को कंधे पर बैठाया तो किसी ने बच्चे को सूटकेस पर लेटाया और निकल पड़े अपने सफर पर।

किसी ने एक हफ्ते में अपना सफर पूरा कर लिया तो कोई महीने भर चलता ही चला गया। सैकड़ों मजदूर ऐसे भी थे जो घरों के लिए निकले जरूर, लेकिन कभी पहुंच नहीं सके। प्रवासी मजदूरों के अलावा जिन्होंने सबसे ज्यादा अपनी जान को जोखिम में डाला, वो थे सुरक्षाकर्मी, हेल्थवर्कर और सफाईकर्मी।

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