कांग्रेस ने फसल मूल्य वृद्धि पर केंद्र को घेरा, कहा- यह बढ़ोतरी ‘ऊंट के मुंह में जीरा’

नई दिल्ली। कांग्रेस ने केंद्र सरकार द्वारा कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी बीच देश को आर्थिक समस्याओं से उबारने के लिए लाए गए 20 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज को छलावा करार दिया है। विपक्षी ने कहा कि इस पैकेज में किसानों के लिए कुछ भी नहीं था। कांग्रेस ने माना कि एमएसएमई सेक्टर को तो इस पैकेज से कुछ मदद मिली लेकिन किसानों के लिए 14 फसलों पर 50 से 83 फीसदी तक ज्यादा दाम देने के फैसले को ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ की संज्ञा दी। उसका कहना है कि किसान ने एक अज्ञात योद्धा के तौर पर काम किया लेकिन मोदी सरकार ने उसके लिए कुछ नहीं किया।

कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ ने मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों ने कोरोना महामारी के दौरान भी काफी अच्छी फसल उगाई और लोगों के लिए अन्न की उपलब्धता सुनिश्चित की। लेकिन इससे किसानों को कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि किसी ने उसका संज्ञान नहीं लिया। किसान के लिए न तो किसी ने फ्लाई पास्ट किया, ना ही बर्तन खड़काए गए, मोमबत्ती या मोबाइल की टॉर्च भी नहीं जलाई गई। इसके बावजूद किसानों ने बम्पर पैदावार की है। इसके लिए न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि देश की ओर से अन्नदाता को सलाम है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपदा में अवसर और आत्मनिर्भरता की बातें की थी। ‘सरकार ने शायद किसान को आत्मनिर्भर मान लिया है, इसीलिए किसान की अनदेखी की जा रही है और उसे कुछ नहीं दिया गया है। लगता है कि प्रधानमंत्री ने सोच लिया कि किसान को पीसे जाओ, वो फसल तो उगाएगा ही।

सुनील जाखड़ ने कहा कि सरकार ने फसलों पर 50 से 83 फीसदी की नाममात्र की बढ़ोतरी है, जिसे ऐतिहासिक वृद्धि बताया जा रहा है। उन्होंने सरकार से पूछा कि सीएसीपी का दस्तावेज कहां है, जिसके आधार पर एमएसपी की घोषणा की गई है। जाखड़ ने कहा कि मजदूरों की कमी के चलते फसल की रोपाई की कीमत दोगुनी हो गई है लेकिन एमएसपी में इस तथ्य का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया है।

जाखड़ ने कहा कि सिर्फ दो फसलों को छोड़कर सरकार किसी फसल को एमएसपी पर नहीं खरीद रही। ऐसे में सरकार को अपनी नीति साफ करनी पड़ेगी। जब तक एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक ये घोषणाएं सिर्फ छलावा हैं। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सरकार को सुधार करना है तो राज्य सरकारों से चर्चा करें, किसानों से बात करें।

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