गांधीनगर। गुजरात में एक बार फिर जनता के पास वह मौका आ चुका है जब वह 5 साल के लिए सरकार का चुनाव करेगी। 27 साल से शासन चला रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी जनता दरबार में दावों और वादों का पिटारा लेकर पहुंच रही है। प्रदेश के 4.9 करोड़ मतदाता 1 और 5 दिसंबर को अपना फैसला ईवीएम में बटन दबाकर दर्ज करेंगे और 8 दिसंबर को फैसला सामने आएगा।
चुनाव में किसकी जीत होगी और किसी हार इसको लेकर तरह-तरह के समीकरणों की बात हो रही है। इनमें एक सबसे अहम यह भी है कि राज्य के 117 सीटों पर 10 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमान वोटर्स का रुख क्या होगा?
कांग्रेस की हिस्सेदारी, आप-ओवैसी की दावेदारी
गुजरात में अब तक मुसलमानों का अधिकांश वोट हासिल करती रही कांग्रेस को इस बार अधिक मेहनत करनी होगी। वजह है कि इस बार ‘आप’ और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का विकल्प मौजूद है। दिल्ली में अल्पसंख्यक वोटर्स के लिए पहली पसंद बन चुकी ‘आप’ जहां गुजरात में सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो ओवैसी भी मुस्लिम बहुल 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। करीब 150 सीटों पर जहां मुसलमानों के सामने कांग्रेस, आप और भाजपा समेत कम से कम 3 विकल्प होंगे तो करीब तीन दर्जन सीटों पर चार पार्टियों के बीच चुनाव करना होगा।
कांग्रेस को हो सकता है नुकसान, फायदे की उम्मीद में भाजपा
मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस काफी मजबूत रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाली कांग्रेस ने 10 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर्स वाले 117 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 62 सीटें भाजपा के खाते में गईं।
इन सीटों पर कांग्रेस को 41.52 फीसदी वोट मिले थे तो भाजपा ने 47.99 फीसदी वोटर शेयर पर कब्जा किया था। जिन 53 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 20 फीसदी तक है उनमें से 22 पर कांग्रेस और 31 पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जिन 12 सीटों पर मुस्लिम 20 फीसदी से ज्यादा हैं उनमें से 5 पर कांग्रेस और 6 पर भाजपा ने कब्जा किया था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गुजरात सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को लेकर काफी संवेदनशील रहा है।
मुस्लिम वोटर्स का बड़ा तबगा कांग्रेस और अधिकतर हिंदू वोटर्स भाजपा के लिए वोट करते रहे हैं। लेकिन इस बार आप और ओवैसी की दावेदारी से समीकरण कुछ हद तक बदल सकते हैं। मुस्लिम वोट बैंक में बंटवारे की सूरत में भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है।
भाजपा की भी नजर
ऐसा नहीं है कि भाजपा को मुस्लिम वोटर्स की जरूरत नहीं या पार्टी अल्पसंख्यक वोटर्स को साधने की कोशिश नहीं कर रही है। 2002 के सांप्रदायिक दंगे के बाद साबरमती में बहुत पानी बह चुका है और राज्य में हालात पहले से काफी बदल चुके हैं। आमतौर पर पिछले दो दशक में गुजरात में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं ना के बराबर हुई हैं।
पीएम मोदी के नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ को अपना ध्येय बताने वाली भाजपा का कहना है कि विकास और लोककल्याणकारी योजनाओं का बिना किसी भेदभाव के मुसलमानों को भी लाभ मिला है। कांग्रेस पर मुसलमानों को ठगने का आरोप लगाते हुए बीजेपी कहती है कि वह मुसलमानों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश कर रही है।
भाजपा ने ‘अल्पसंख्यक मित्र’ मुहिम चलाते हुए मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है। ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून के बाद भाजपा को यूपी जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं के वोट मिले हैं और गुजरात में भी ऐसा होने की संभावना है।