कानून-व्यवस्थाः जबरन वसूली के कानूनी प्रावधान और FIR में दुरुपयोग

बरन वसूली (Extortion) भारतीय दंड संहिता (IPC) और नई भारतीय न्याय संहिता (BNS) दोनों में एक गंभीर अपराध है। BNSS में इस धारा में प्रावधान और भी कठोर कर दिए हैं, हालांकि पुलिस विभाग को अपने अधिकारियों को इस प्रावधान का गलत तरीके से इस्तेमाल ना हो के लिए पुलिस विभाग को अपने अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के उचित प्रयास करने होंगे, ऐसे मामले ज़्यादातर बिल्डर से सम्बन्धित होते हैं।

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कानूनी प्रावधानः भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत, जबरन वसूली की परिभाषा समान है लेकिन इसे अधिक स्पष्ट और संरचित किया गया है। BNS का उद्देश्य असली अपराधियों पर कार्रवाई करना और निर्दोषों को सुरक्षा प्रदान करना है।
Extortion IPC में धारा 383 से 389 को भारतीय न्याय संहिता, 2023 धारा 308(1) से 308(7) में डाला गया है-
धारा 308 : जबरन वसूली (Extortion) के लिए अपराध और दंड- धारा 308 (1) : जो कोई जानबूझकर किसी व्यक्ति को उसके या किसी अन्य के शरीर को किसी हानि का डर दिखाकर, और इस प्रकार उस व्यक्ति को किसी वस्तु, मूल्यवान सुरक्षा, या ऐसी किसी वस्तु को देने के लिए धोखाधड़ी से प्रेरित करता है, जिसे मूल्यवान सुरक्षा में बदला जा सकता है, उसे अब जबरन वसूली (Extortion) की परिभाषा में माना जाएगा जो कि एक गंभीर श्रेणी में आता है।
उदाहरण: A, Z को यह धमकी देता है कि यदि Z उसे पैसे नहीं देगा तो वह Z के बारे में मानहानिकारक झूठी बाते प्रकाशित कर देगा। इस प्रकार A ने Z को पैसे देने के लिए प्रेरित किया, A ने जबरन वसूली (Extortion) की मानी जाएगी।
धारा 308(2) से 308(7): धारा 308 (2) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करता है, उसे सात वर्ष तक की कैद, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा अर्थात प्रॉपर्टी की delivery के युक्ति युक्त साक्ष्य पुलिस को प्राप्त हो गए हैं।
धारा 308 (3) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करने के लिए किसी व्यक्ति को किसी हानि करने का डर दिखाता है, या किसी व्यक्ति को डर में डालने का प्रयास करता है, उसे दो वर्ष तक की कैद, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 308 (4) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को मृत्यु या गंभीर चोट करने का डर दिखाता है, उसे सात वर्ष तक की कैद और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
धारा 308 (5) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करता है और किसी व्यक्ति को मृत्यु या गंभीर चोट का डर दिखाता है, उसे दस वर्ष तक की कैद और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
धारा 308 (6) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को इस बात करने का डर दिखाता है कि उसके खिलाफ या किसी अन्य के खिलाफ ऐसा आरोप लगाया जाएगा, जिसे मृत्युदंड, आजीवन कारावास, या दस वर्ष से अधिक की सजा का परिणाम हो, उसे दस वर्ष तक की कैद और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
धारा 308 (7) :
जो कोई जबरन वसूली (Extortion) करता है और किसी व्यक्ति को इस बात का डर दिखाता है कि उसके खिलाफ या किसी अन्य के खिलाफ मृत्युदंड, आजीवन कारावास, या दस वर्ष से अधिक की सजा का आरोप लगाया जाएगा, तो उसे दस वर्ष तक की कैद और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
उपरोक्त धाराओं में 308 (2) 308 (5), 308 (7) में प्रॉपर्टी हस्तांतरण होना अनिवार्य है अन्यथा FIR में कठोर कारावास की ये धाराएं नहीं लगाई जा सकती।
जबरन वसूली के आवश्यक तत्व:-
पुलिस या शिकायत कर्ता द्वारा extortion का मामला की शिकायत दर्ज करने से पहले निम्न आवश्यक तत्व का होना आवश्यक है, किसी अपराध को जबरन वसूली मानने के लिए निम्नलिखित तत्व साबित करना जरूरी है:
1 . नुकसान का भय: आरोपी ने जानबूझकर पीड़ित को किसी प्रकार की हानि के भय में डाला हो। 2 . संपत्ति का हस्तांतरण: भय के कारण संपत्ति या मूल्यवान वस्तु का हस्तांतरण हुआ हो।
3. इरादा: आरोपी का इरादा अनुचित लाभ प्राप्त करने का होना चाहिए।
यदि इनमें से कोई भी तत्व मौजूद नहीं है, तो जबरन वसूली का मामला कानूनी रूप से दर्ज नहीं किया जा सकता है और फिर भी दर्ज कर लिया जाता है तो पीड़ित शिकायत कर्ता और झूठी FIR दर्ज करने वाले अधिकारी के विरुद्ध पुलिस विभाग या न्यायालय से FIR निरस्त की कार्रवाई करवा सकता है।
एफआईआर में दुरुपयोग:-
स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद, एफआईआर में जबरन वसूली की धाराओं का कई बार गलत इस्तेमाल किया जाता है।
IPC धारा 384 और 385 ( BNSS 308 (1) 308 (2) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी-धारा 384 (IPC) :
यह जबरन वसूली (extortion) के अपराध को सजा देती है। हालांकि, यह तब लागू होती है जब धमकी के तहत संपत्ति दी जा चुकी है। इसका अर्थ है कि संपत्ति का हस्तांतरण ही इस अपराध को पूरा करता है।
धारा 385 (IPC) :
अगर कोई केवल धमकी देता है, लेकिन संपत्ति नहीं दी जाती, तो यह अपराध प्रयास (attempt) के रूप में माना जाता है। इस मामले में अपराध धारा 385 के तहत आता है, जिसमें सिर्फ धमकी देने का आरोप होता है, और यह एक जमानती अपराध है।
विजिलेंस शिकायत:
अगर किसी मामले में जानबूझकर धारा 384 को धारा 385 के स्थान पर जोड़ा जाता है, ताकि अपराध को गैर-जमानती बनाया जा सके और गिरफ्तारी की स्थिति उत्पन्न हो, तो यह न्यायिक प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग होगा। ऐसी स्थिति में, पीड़ित विजिलेंस को शिकायत कर सकते हैं, जिसमें यह आरोप लगाया जा सकता है कि अभियुक्त ने जानबूझकर धमकी देने के अपराध को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है और गिरफ्तारी के माध्यम से उससे जबरन वसूली या पक्ष में बयान देने की कोशिश की है।
दुरुपयोग के खिलाफ कानूनी सुरक्षाः
न्यायालय की जांच: अदालतें एफआईआर और सबूतों की जांच करती हैं। यदि जबरन वसूली के आवश्यक तत्व अनुपस्थित हों, तो दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द की जा सकती है।
पुलिस के लिए दिशा-निर्देश: अधिकारियों को अपराधों के कानूनी तत्वों को समझने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा एफआईआर की निगरानी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
झूठे मामलों पर शिकायत: जिन व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए गए हैं, वे BNSS की धारा 248 (आईपीसी की धारा 211) के तहत शिकायत कर सकते हैं।
जवाबदेही तंत्र: अधिकारियों के गलत आचरण पर आंतरिक जांच की जा सकती है।दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के शिकार व्यक्तियों को मुआवजा भी मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने Haji Iqbal @ Bala Through S.P.O.A. vs State of U.P. (एफआईआर नंबर 175/2022) , ने 8 अगस्त, 2023 को एफआईआर को रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि राज्य ने यह माना था कि अभियुक्त के ससुराल वाले अपराधी थे और खुद अभियुक्त भी अपराधी है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि एक से अधिक एफआईआर का पंजीकरण निजी या व्यक्तिगत द्वेष के आधार पर बदला लेने का संकेत हो सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के पास एफआईआर को रद्द करने की शक्ति होती है यदि एफआईआर में दिए गए साक्ष्य और आरोप अभियुक्त के खिलाफ मामला साबित नहीं करते हैं। उच्च न्यायालय को यह निर्णय लेने से पहले जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों पर विचार करना चाहिए।
सार्वजनिक सेवक को झूठी जानकारी देकर किसी अन्य व्यक्ति को हानि पहुँचाने का अपराध BNSS धारा255 (IPC धारा 217) भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 255 के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक सेवक को ऐसी जानकारी देता है, जिसके बारे में वह जानता है या विश्वास करता है कि वह गलत है, और उसका इरादा यह है कि:
(a) उस जानकारी के आधार पर सार्वजनिक सेवक ऐसा कोई कार्य करे या न करे, जिसे वह सही तथ्य जानने पर नहीं करता; या
(b) सार्वजनिक सेवक अपने वैध अधिकारों का उपयोग किसी अन्य व्यक्ति को हानि या कष्ट पहुँचाने के लिए करे, तो ऐसा करने वाला व्यक्ति अपराध का दोषी होगा।अर्थात अगर किसी व्यक्ति के द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर Extortion का मामला बनाया है तो उसे : 1 वर्ष तक की कैद, या10,000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023:
धारा 232 – किसी व्यक्ति को झूठा बयान देने के लिए धमकी देनाधारा 232 (1) : यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके स्वयं के शरीर, प्रतिष्ठा, संपत्ति, या उसके किसी करीबी व्यक्ति की प्रतिष्ठा या शरीर को नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है,और उसका उद्देश्य उस व्यक्ति से झूठा बयान दिलवाना होता है,तो ऐसे व्यक्ति को सात साल तक की कैद, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 232 (2) : यदि उपरोक्त झूठे बयान के परिणामस्वरूप कोई निर्दोष व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है और उसे मृत्युदंड या सात साल से अधिक की कैद की सजा दी जाती है,तो धमकी देने वाले व्यक्ति को भी उसी दंड और सजा का भागी बनना पड़ेगा, जैसा कि निर्दोष व्यक्ति को दिया गया।
पुलिस बिना वारंट के कब गिरफ्तारी कर सकती है –
भारतीय न्याय संहिता, 2023:
धारा 35(3)-35(6) 35 (1) कोई भी पुलिस अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट के आदेश और बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है—पुलिस अधिकारी को यदि शिकायत, जानकारी या संदेह के आधार पर विश्वास हो कि व्यक्ति ने अपराध किया है, और यदि गिरफ्तारी आवश्यक हो, अपराध से रोकने के लिए, उचित जांच के लिए, सबूतों को नष्ट करने या छेड़छाड़ से बचाने के लिए, गवाहों को प्रभावित करने से रोकने के लिए, कोर्ट में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए, तो गिरफ्तारी की जा सकती है, और पुलिस अधिकारी इसे लिखित रूप में दर्ज करेगा।
35(3) यदि उपधारा (1) के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को एक नोटिस जारी करेगा, जिसके खिलाफ उचित शिकायत की गई हो, या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई हो, या यह संदेह हो कि उसने एक संज्ञेय अपराध किया है, उसे अपने सामने उपस्थित होने के लिए, या उस स्थान पर जिसे नोटिस में निर्दिष्ट किया गया हो, उपस्थित होने के लिए निर्देशित करेगा।
35(4) यदि ऐसे नोटिस को किसी व्यक्ति को जारी किया जाता है, तो उस व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह नोटिस की शर्तों का पालन करे। 35(6) यदि वह व्यक्ति नोटिस का पालन करता है और करता रहता है, तो उसे नोटिस में उल्लिखित अपराध के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि पुलिस अधिकारी यह राय न बनाए कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए और इसके लिए कारण रिकॉर्ड किए जाएंगे।
यदि वह व्यक्ति किसी समय नोटिस की शर्तों का पालन करने में विफल रहता है या अपनी पहचान बताने के लिए तैयार नहीं है, तो पुलिस अधिकारी, इस संबंध में किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के अधीन, उसे नोटिस में उल्लिखित अपराध के लिए गिरफ्तार कर सकता है।

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