नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि, किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को लॉकडाउन के दौरान जारी हुए खेती से जुड़े तीन ऑर्डिनेंस को पारित करने के लिए विधेयक पेश किए। सरकार की मानें तो यह कानून किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण उपाय हैं। लेकिन कांग्रेस समेत कुछ दलों को लग रहा है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और कृषि उपज मंडियों (एपीएमसी) को बंद करने की तैयारी है।
लेकिन, कांग्रेस शासित पंजाब और उससे लगे हरियाणा में किसान आंदोलन कर रहे हैं। कई इलाकों में उन्होंने प्रमुख हाईवे ब्लॉक किए और मांग की कि प्रस्तावित कानूनों को संसद में पारित न किया जाए।
सबसे पहले क्या है यह तीन विधेयक?
- कृषि सुधारों को टारगेट करते हुए लाए गए यह तीन विधेयक हैं- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020; द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल 2020।
- इन तीनों ही कानूनों को केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को ऑर्डिनेंस की शक्ल में लागू किया था। तब से ही इन पर बवाल मचा हुआ है। केंद्र सरकार इन्हें अब तक का सबसे बड़ा कृषि सुधार कह रही है। लेकिन, विपक्षी पार्टियों को इसमें किसानों का शोषण और कॉर्पोरेट्स का फायदा दिख रहा है।
- कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के विरोध के बाद भी एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) बिल लोकसभा में पारित हो गया है। अब यह चर्चा के लिए राज्यसभा में जाएगा। वहां से पास होने पर कानून औपचारिक रूप से लागू हो जाएगा। सरकार की कोशिश इसी सत्र में इन तीनों ही कानूनों को संसद से पारित कराने की है।
1. द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) बिल 2020
- क्या है मौजूदा व्यवस्था? किसानों के पास अपनी फसल बेचने के ज्यादा विकल्प नहीं है। किसानों को कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) में फसल बेचनी होती है। रजिस्टर्ड लाइसेंसी या राज्य सरकार को ही फसल बेच सकते हैं। दूसरे राज्य में या ई-ट्रेडिंग के जरिए फसल नहीं बेच सकते।
- कानून से क्या होगा? ऐसा इको-सिस्टम बनेगा, जहां किसान मनचाहे स्थान पर फसल बेच सकेंगे। इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट कारोबार बिना किसी अड़चन कर सकेंगे। राज्यों के एपीएमसी के दायरे से बाहर भी। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग से भी अपनी फसल बेच सकेंगे। किसानों की मार्केटिंग लागत बचेगी। जिन इलाकों में किसानों के पास अतिरिक्त फसल है, उन राज्यों में उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी। इसी तरह जिन राज्यों में शॉर्टेज है, वहां उन्हें कम कीमत में वस्तु मिलेंगी।
- आपत्ति क्या है? कृषि उपज मंडियों से किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलता था। इससे मार्केट रेगुलेट होता है। राज्यों को मंडी शुल्क के तौर पर आमदनी होती थी, जिससे किसानों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाई जाती है। मंडियां खत्म हो गईं, तो किसानों को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। सरकार भले ही वन नेशन वन मार्केट का नारा दे रही हो, वन नेशन वन एमएसपी होना चाहिए। हालांकि, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दावा किया है कि इस कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य को कोई खतरा नहीं है। वहीं, मंडियों की व्यवस्था भी बनी रहेगी।
2. द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस बिल 2020
- क्या है मौजूदा व्यवस्था? भारत में किसानों की कमाई पूरी तरह से मानसून, प्रोडक्शन से जुड़ी अनिश्चितताओं और बाजार के अनुकूल रहने पर निर्भर है। इससे खेती में रिस्क बहुत ज्यादा है। किसानों को मेहनत के अनुसार रिटर्न नहीं मिलता। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग भारत में नया नहीं है। अनाज के लिए अनौपचारिक करार आम है। गन्ने और पोल्ट्री सेक्टर में औपचारिक करार भी होते हैं।
- कानून से क्या होगा? सरकार का दावा है कि खेती से जुड़ी सारी रिस्क किसानों की नहीं, बल्कि जो उनसे एग्रीमेंट करेंगे, उन पर शिफ्ट हो जाएगी। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को नेशनल फ्रेमवर्क मिलेगा। किसान एग्री-बिजनेस करने वाली कंपनियों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से एग्रीमेंट कर आपस में तय कीमत पर उन्हें फसल बेच सकेंगे। इससे उनकी मार्केटिंग की लागत बचेगी। दलाल खत्म होंगे। किसानों को फसल का उचित मूल्य मिलेगा। विवाद होने पर समय सीमा में उसके निपटारे की प्रभावी व्यवस्था होगी। लिखित एग्रीमेंट में सप्लाई, क्वालिटी, ग्रेड, स्टैंडर्ड्स और कीमत से संबंधित नियम और शर्तें होंगी। यदि फसल की कीमत कम होती है, तो भी अनुबंध के आधार पर किसानों को गारंटेड कीमत तो मिलेगी ही। बोनस या प्रीमियम का प्रावधान भी होगा।
- आपत्ति क्या है? यह बिल कीमतों के शोषण से बचाने का वादा तो करता है, लेकिन कीमतें तय करने का कोई मैकेनिज्म नहीं बताता। डर है कि इससे प्राइवेट कॉर्पोरेट हाउसेस को किसानों के शोषण का जरिया मिल जाएगा। बिल के आलोचकों को डर है कि खेती का सेक्टर असंगठित है। ऐसे में यदि कॉर्पोरेट्स से लड़ने की नौबत आई, तो उनके पास संसाधन कम पड़ जाएंगे।
3. एसेंशियल कमोडिटी (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस
- क्या है मौजूदा व्यवस्था? भारत इस समय ज्यादातर कृषि वस्तुओं में सरप्लस में है। एसेंशियल कमोडिटी एक्ट की वजह से कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट में निवेश कम होने की वजह से किसानों को लाभ नहीं मिल पाता। जब बम्पर फसल होती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। खासकर, यदि फसल जल्दी सड़ने वाली है।
- कानून से क्या होगा? इस कानून से कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी। यह किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं के लिए भी कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगा। स्टॉक लिमिट तभी लागू होगी, जब सब्जियों की कीमतें दोगुनी हो जाएंगी या खराब न होने वाली फसल की रिटेल कीमत 50% बढ़ जाएगी। अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाया गया है। इससे उत्पादन, स्टोरेज, मूवमेंट और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म हो जाएगा। युद्ध, प्राकृतिक आपदा, कीमतों में असाधारण वृद्धि और अन्य परिस्थितियों में केंद्र सरकार नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगी।
- क्या है आपत्ति? पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का कहना है कि खाद्य वस्तुओं पर रेगुलेशन खत्म करने से एक्सपोर्टर्स, प्रोसेसर्स और कारोबारी फसल सीजन में जमाखोरी करेंगे। इससे कीमतों में अस्थिरता आएगी। फूड सिक्योरिटी पूरी तरह खत्म हो जाएगी। राज्यों को यह पता ही नहीं होगा कि राज्यों में किस वस्तु का कितना स्टॉक है। आलोचकों का कहना है कि इससे आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी बढ़ सकती है।
सरकार क्या कह रही है?
- केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि यह तीनों ही प्रस्तावित कानून भारत में किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेंगे। सरकार का फोकस किसानों को आत्मनिर्भर बनाने पर है। इसके लिए हर गांव में गोदाम, कोल्ड स्टोरेज बनाने की योजना पहले ही घोषित हो चुकी है। किसान रेल भी शुरू की है। ताकि किसानों को उनके माल की ज्यादा कीमत मिल सके। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि खेती से जुड़े विधेयक मोदी