नई दिल्ली। कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी गारंटी कानून को लेकर पिछले एक साल से किसान आंदोलन चल रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। इस बीच Bloomberg की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार कृषि कानूनों की तरह ही श्रम कानून को भी टालने के मूड में है।
दरअसल सरकार अपनी लोकप्रियता को खतरे में नहीं डालना चाहती है। ऐसे में सरकार के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन को हवा देने से रोकने के लिए किसान कानून के बाद श्रम कानून को लेकर भी सरकार बड़ी सावधानी से कदम रख रही है। श्रम मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि नए श्रम कानून टालने को लेकर सरकार ने चार बार समय सीमा बढ़ाई है।
हालांकि पहले तीन बार टालने के वक्त इसकी अगली तारीख भी बताई जाती रही लेकिन चौथी बार टालने के दौरान अगली तारीख की घोषणा नहीं की गई है। ऐसे में अब श्रम कानून कबतक लागू होगा उसकी कोई स्पष्ट तारीख सामने नहीं आई है। इसको देखते हुए संकेत मिल रहे हैं कि सरकार कृषि कानून की तरह श्रम कानून को भी टालने के मूड में है।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि अगले साल के शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार चुनाव बाद ही कानूनों को लागू करने पर विचार करेगी। बता दें कि साल 2019 और 2020 में सरकार द्वारा श्रम कानून को लेकर विधेयक पारित किये गए थे। हालांकि इसके खिलाफ 10 ट्रेड यूनियन विरोध में हैं।
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यूनियन ने उन नियमों पर आपत्ति जताई है जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति और बर्खास्तगी के नियम कंपनी के लिए आसान हैं। विरोध के स्वर उठने और चुनावी माहौल को देखते हुए सरकार अभी श्रम कानून को लागू करने के मूड में नजर नहीं आ रही है।
बता दें कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को आक्रामक विरोध देखने को मिल रहा है। ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से पहले माना जा रहा था कि पार्टी को चुनावी राज्यों में तगड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।