कैबिनेट मंत्री राकेश सचान की जा सकती है विधायकी? कानून की लटकी तलवार

लखनऊ। आर्म्‍स एक्‍ट मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद यूपी के कैबिनेट मंत्री राकेश सचान की विधायकी पर कानून की तलवार लटक गई है। मंत्री इसी स्थिति से बचने के लिए काफी समय से प्रयास कर रहे थे। उनके खिलाफ चल रहे सभी चार मुकदमे वापस लेने का प्रस्ताव दो अलग-अलग सरकारों में बना और उस पर प्रक्रिया भी शुरू हुई लेकिन अंतत: ऐसा नहीं हो सका और आर्म्‍स एक्‍ट के एक मामले में उन्‍हें दोषी करार दिया गया।

मंत्री के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए पहली बार सपा सरकार में मुकदमा वापसी की फाइल चली। न्यायालय ने सरकार का अनुरोध नहीं स्वीकार किया। वर्तमान सरकार में पांच जुलाई 2022 को डीएम को पत्र लिख मुकदमों का पूरा ब्योरा मांगा गया था। अब आर्म्‍स एक्‍ट मामले में दोष सिद्ध हो जाने के बाद मंत्री और उनके अधिवक्ताओं की टीम विधायकी बचाने के लिए देश के वरिष्ठ कानूनविदों से भी राय ले रही है।

विशेष सचिव निकुंज मित्तल ने जिलाधिकारी कानपुर को लिखे पत्र में राकेश सचान के खिलाफ चल रहे आर्म्स एक्ट समेत चारों मुकदमे 297/1985, धारा 332, 353, 508, 362/1990 धारा 147,148,448, 506, 328/1996 धारा-30 आर्म्स एक्ट और 729/1991 धारा-20/25/30 आर्म्स एक्ट की वापसी को कहा है।

विधायकी पर खतरा 
जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दो साल से ऊपर सजा होने पर विधानसभा की सदस्यता जा सकती है। राकेश सचान केस में अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। सोमवार को राकेश सचान अदालत में हाजिर होंगे तो सबसे अहम बिंदु अदालत के फैसले और उनकी सजा की अवधि होगी। अगर उनको दो साल से ऊपर की सजा सुनाई जाती है तो सदस्यता पर खतरा मंडरा सकता है।

इससे बचने के लिए उनके समर्थक और कानूनी सलाहकार देर रात कर खुद मंथन करते रहे और उन्होंने देश के कुछ जाने-माने कानूनविदों से भी मशविरा किया। कैबिनेट मंत्री को अदालत के आदेश और सजा से ज्यादा फिक्र विधायकी को लेकर है। यही कारण है कि पिछले चौबीस घंटे में इस केस के बारीक से बारीक बिंदु पर पूरी सतर्कता बरती जा रही है।

जनप्रतिनिधित्व कानून की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी कानून की वजह से हमीरपुर के विधायक अशोक सिंह चंदेल और उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर की विधायकी सजा के बाद समाप्त हो गई है।

उस रात दर्ज हुए थे ट्रिपल मर्डर समेत चार मुकदमे
राकेश सचान जिस शस्त्र अधिनियम के मुकदमे में आरोपित हैं, उसका इतिहास एक ट्रिपल मर्डर वाली गैंगवार समेत दो अन्य मुकदमों से जुड़ा है। यह सारा घटनाक्रम 13 अगस्त 1991 का है। उस शाम बर्रा चौराहे पर गैंगवार में तीन हत्याएं हुईं इनमें एक पक्ष के दो और दूसरे पक्ष के एक युवक की मौत हुई थी।

यह सभी उन दिनों छात्र राजनीति से जनता दल की मुख्यधारा की राजनीति में आए राकेश के परिचित थे। पुलिस दस्तावेजों के मुताबिक राकेश सचान एक वैन में ट्रिपल मर्डर के मौके पर पहुंचे। रोकने पर उन्होंने वैन बाईपास की ओर दौड़ा दी। पुलिस ने घेर कर गाड़ी रोक ली। जहां उनके पास से एक रायफल बरामद हुई। उनके साथ मौजूद दिनेश से एक बंदूक पाई गई। दोनों पर शस्त्रत्त् अधिनियम के तहत मुकदमे दर्ज हुए। ड्राइवर पर अलग से मोटर व्हीकल एक्ट का केस दर्ज किया गया।

ऐसे हुई थी गैंगवार 
बर्रा में सचान गेस्ट हाउस के पास पर नौजवानों का अड्डा लगता था। 13 अगस्त की शाम वहां नृपेन्द्र सचान, जयकुमार जैकी (वर्तमान विधायक बिंदकी) कुछ साथियों संग बैठे थे अचानक उन पर हमला हुआ दोनों पक्षों के बीच गोलियां चलीं। इलाके में सनसनी फैल गई। पुलिस पहुंची तो पता चला कि जय कुमार जैकी घायल थे। नृपेन्द्र सचान की मौत हो चुकी थी। दूसरे पक्ष से कमलेश सचान और राकेश सचान की मौत हो चुकी थी।

दोनों पक्ष राकेश सचान के परिचित थे, लिहाजा वह वैन में वहां पहुंचे। तत्कालीन एसपी अरुण कुमार ने राकेश सचान को पकड़ कर बुरी तरह लाठियां बरसाईं और रायफल बरामदगी पर शस्त्रत्त् अधिनियम में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह देखने पहुंचे थे उर्सला
घटना के एक दिन बाद घाटमपुर में तत्कालीन पीएम वीपी सिंह की चुनावी रैली थी। इसकी तैयारी में राकेश सचान भी जुटे थे। अगले दिन रैली में वीपी सिंह जब घाटमपुर पहुंचे तो वहां राकेश नहीं मिले। बताया गया कि राकेश को पुलिस ने जेल भेज दिया है। रैली के बाद वीपी सिंह ने राकेश सचान से मिलने की इच्छा जताई। इलाज के लिए राकेश को उर्सला में भर्ती कराया गया था। वीपी सिंह राकेश को देखने उर्सला पहुंच गए। राकेश का पूरा बदन फूला हुआ था।

दस महीने से कोर्ट में पेश नहीं हुए थे कैबिनेट मंत्री
आर्म्स एक्ट के जिस मुकदमे को लेकर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री राकेश सचान विवादों के घेरे में आए, उसमें वह दस महीने से पेश नहीं हुए थे। 31 साल से चल रहे इस मुकदमे में पांच अदालतें बदलीं। राकेश सचान पर तत्कालीन नौबस्ता थानाध्यक्ष ब्रजमोहन उदैनिया ने 13 अगस्त 1991 की आधी रात के बाद यानी 14 अगस्त 1991 को दो बजे मुकदमा दर्ज कराया था। इस मुकदमे की पत्रावली के मुताबिक थानाध्यक्ष ने कहा था कि गोलीबारी के बाद घटना स्थल पर यूएमटी-1728 नंबर की वैन से पहुंचे लोगों को पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो वह भागने लगे।

इस पर वह और उनकी टीम ने पीछा कर बाईपास पर सभी को पकड़ लिया। इनमें राकेश सचान के पास रायफल, उनके सहयोगी दिनेश चंद्र सचान के पास लाइसेंसी दोनाली बंदूक मिली। दोनों असलहे किसी दूसरे के नाम थे जो वहां मौजूद नहीं थे। उनके लाइसेंस भी यह लोग नहीं दिखा सके। वैन चालक विनोद वर्मा के खिलाफ एमवी एक्ट का मुकदमा लिखाया। इसमें बताया गया कि वह ड्राइविंग लाइसेंस और गाड़ी के कागज नहीं दिखा पाए।

पुलिस के छह गवाह 
इस मामले में विवेचक जयपाल सिंह ने पांच दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल कर दी। उस वक्त के नियमों के मुताबिक शस्त्र अधिनियम का मुकदमा चलाने के लिए डीएम से अनुमति लेना अनिवार्य होता था। इस मामले में डीएम से 10 अक्टूबर 1991 को अनुमति ली गई। मुकदमे में थानाध्यक्ष ने लिखा कि रात में कोई आम आदमी गवाही के लिए नहीं मिला, जिसके सामने असलहों की जब्ती दिखाई जाती।

उस समय मौजूद पुलिस टीम ही गवाह बनी। वादी ब्रजमोहन उदैनिया, एसआई सीबी सिंह, एसआई राजकुमार तिवारी, सिपाही अश्विनी कुमार और सिपाही राजाराम गुप्ता के अलावा एफआईआर के लेखक इन्द्रबहादुर सिंह ने अदालत में 2007-2008 के बीच गवाही दी। गवाही होने के बाद भी मुकदमा 14 साल तक चलता रहा।

आखिरी बार राकेश सचान अक्टूबर 2021 में कोर्ट में हाजिर हुए थे। उसके बाद कई तारीखें पड़ी पर हर बार हाजिरी माफी का प्रार्थनापत्र पेश किया जाता रहा। शनिवार 06 अगस्त को इस मामले में करीब 10 महीने बाद राकेश सचान तारीख पर एसीएमएम तृतीय की कोर्ट में पेश हुए थे। जहां से फैसला लेकर भागने का आरोप लगा। इस संबंध में शनिवार की रात कोर्ट पेशकार की ओर से पुलिस को तहरीर दी गई, जिस पर अभी तक रिपोर्ट नहीं दर्ज की गई है।

कोर्ट से मिले पत्र पर एसीपी कोतवाली को जांच सौंपी है। जांच में जो भी तथ्य सामने आएंगे, उन्हें कोर्ट के संज्ञान में लाया जाएगा। कोर्ट से जो भी निर्देश मिलेंगे, उसके आधार पर कार्रवाई होगी।
बीपी जोगदंड, पुलिस कमिश्नर

मैं कोर्ट से फैसला लेकर नहीं भागा। यह सरासर झूठ है। इस संबंध में मीडिया में चल रहीं खबरें निराधार हैं। हर कोर्ट में सीसी कैमरे होते हैं। पुलिस या कोर्ट इनकी फुटेज जांच सकती है। मैं सुनवाई में गया था और स्वास्थ्य खराब होने पर हाजिरी माफी का प्रार्थनापत्र देकर चला गया। मुझे कोई फैसला होने की जानकारी नहीं है। कोर्ट जो भी फैसला करेगा, उसका सम्मान करूंगा।
राकेश सचान, एमएसएमई मंत्री

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