कोरोना: अमेरिकी जासूसों के पास चीन के खिलाफ सबूत, WHO को भी क्लीन चिट मुश्किल

न्यूयॉर्क। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने देश की इंटेलिजेंस एजेंसीज को कोरोनावायरस के ओरिजन (यानी कहां से शुरुआत हुई) की सच्चाई पता करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए 90 दिन का वक्त दिया गया है। सवाल ये है कि बाइडेन ने इस मामले की जांच के आदेश अब क्यों दिए? ऐसा तो है नहीं कि चीन पर शक और WHO की जांच पर सवाल आज उठ रहे हैं? याद कीजिए, अमेरिका में पिछले साल नवंबर में हुआ राष्ट्रपति चुनाव।

तब राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार ताल ठोककर दावा किया था कि कोरोना चीनी वायरस है और अमेरिकी इंटेलिजेंस के पास इसके सबूत मौजूद हैं। उन्होंने सही वक्त पर इन सबूतों को सामने लाने का वादा भी किया था। बहरहाल, ट्रम्प चुनाव हार गए, उनके तमाम वादे और दावे धरे के धरे रह गए।

20 जनवरी 2021 को बाइडेन राष्ट्रपति बने। अब करीब चार महीने बाद वे फिर कोरोना के ओरिजन पर दोगुनी स्पीड से जांच करा रहे हैं। हैरानी चीन की चिढ़चिढ़ाहट को लेकर भी है। अब वो अमेरिका को साइंस और फैक्ट्स का ज्ञान दे रहा है। कुछ दिन पहले छोटे मुल्कों को कोरोना पर मदद की लॉलीपॉप थमा रहा था।

चीन पर शक क्यों होता है
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में वायरोलॉजिस्ट इयान लिपकिन कहते हैं- हो सकता है कि इस जांच के बाद भी हमें कुछ ज्यादा पता न लगे। ये भी हो सकता है, जितना अभी पता है, उससे ज्यादा कुछ न मिले। इयान ने पिछले साल की शुरुआत में चीन का दौरा किया था। वहां के पब्लिक हेल्थ ऑफिसर्स के बातचीत की थी।

चीन पर सवाल उठने की कुछ वजह हैं। पिछले साल जब कोविड ओरिजन पर सवाल उठे तो चीन ने बिना तथ्यों के ही इन्हें नकार दिया। इसके बाद वो WHO से जांच कराने पर तैयार हुआ। इसमें भी 13 चीनी एक्सपर्ट्स रखने का दबाव बनाया और कामयाब भी रहा। अब तो यह सवाल भी उठ रहे हैं कि सार्स वायरस भी कहीं चीन की ही करतूत तो नहीं थी?

WHO को भी डाटा एक्सेस नहीं
फरवरी 2020 में चीनी सरकार ने एक साइंटिफिक मिशन को मंजूरी दी, लेकिन, शर्त ये रखी कि जो भी जांच होगी, उसमें चीन के साइंटिस्ट्स जरूर रहेंगे। इतना ही नहीं, इंटरनेशनल कम्युनिटी को सबसे ज्यादा दूसरे तथ्य ने चौंकाया। इसके मुताबिक, इंटरनेशनल साइंटिस्ट को डाटा चीन के एक्सपर्ट्स ही मुहैया कराएंगे। चीन ने साफ कहा कि इंटरनेशनल टीम चीनी लैब्स की जांच नहीं कर सकेगी। जाहिर है, कुछ तो पर्दादारी है, कुछ तो छिपाया जा रहा है।

चीन की लैब्स के बारे में पहले भी खबरें आती रही हैं। साल दर साल इन लैब्स में दुर्घनाएं होती रही हैं। 2004 में बीजिंग के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का एक वैज्ञानिक गंभीर रुप से इन्फेक्टेड हुआ था। इससे दूसरे लोग भी संक्रमित हुए और साइंटिस्ट की मां ने तो जान गंवा दी। माना जाता है कि यह सार्स वायरस था।

जांच से पीछे क्यों हट जाता है चीन
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की रिपोर्ट में इस बात पर भी सवाल उठाया गया था कि जब भी वायरस की जांच करने की बात आती है तो चीन पीछे हट जाता है। ऑस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉबर्ट पॉटर ने यह भी बताया कि कोरोना वायरस किसी चमगादड़ के मार्केट से नहीं फैल सकता। यह थ्योरी पूरी तरह से गलत है।

लैब लीक थ्योरी पर सिर्फ चार पेज
डोनाल्ड ट्रम्प WHO पर उंगलियां उठाते रहे। उसकी फंडिंग भी बंद कर दी। हालांकि, बाइडेन ने इसे अब फिर शुरू कर दिया है। WHO ने जनवरी 2021 के आखिर में कोरोना ओरिजन की जांच शुरू की। उसकी टीम के पास करने को वैसे भी कुछ नहीं छोड़ा गया था। इसकी जांच रिपोर्ट मार्च 2021 में आई। कुल 313 पेज की इस रिपोर्ट से कुछ खास हासिल नहीं हुआ। जिस लैब लीक थ्योरी पर आज दुनिया में जांच की मांग उठ रही है, उस रिपोर्ट में इस थ्योरी को सिर्फ 4 पेज में समेट दिया गया था।

पिछले साल नवंबर में बाइडेन से कोरोना ओरिजिन पर सवाल पूछे गए थे। हालांकि, तब उन्होंने इस पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया था।
पिछले साल नवंबर में बाइडेन से कोरोना ओरिजिन पर सवाल पूछे गए थे। हालांकि, तब उन्होंने इस पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया था।

तो अब क्या उम्मीद
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के मुताबिक, अमेरिकी इंटेलिजेंस के पास लैब लीक या चीन की साजिश से संबंधित कुछ नई जानकारियां हैं। प्रेसिडेंट बाइडेन ने सार्वजनिक तौर पर नई जांच की घोषणा ऐसे ही नहीं की, बल्कि इसके पीछे यही नई जानकारियां होना है। अब इसके लिए कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग की मदद भी ली जा रही है। हालांकि, जांच एजेंसियों के बीच भी कोरोना ओरिजन को लेकर तस्वीर साफ नहीं है।

पहले केस का कन्फ्यूजन
अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की फैक्ट शीट कहती है- चीन में कोरोना की शुरुआत नवंबर 2019 के पहले ही हो चुकी थी। कुछ रिसर्चर बीमार पड़े थे। यही दावा ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ने भी तीन दिन पहले अपनी रिपोर्ट में किया गया था। स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने तैयार कराई थी और इसे जनवरी में रिलीज किया गया था। चीन के मुताबिक, पहला केस 8 दिसंबर 2019 को आया था। अमेरिका मानता है कि इससे कई महीनों पहले ही वायरस एक्टिव हो चुका था। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और स्वीडन के अलावा पेरिस ग्रुप ऑफ रिसचर्स भी इसी तरफ इशारा कर रहा है।

जांच नाकाम रहने की आशंका
बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन के एक अफसर के मुताबिक- हो सकता है जांच रिपोर्ट में कोई नया फैक्ट या डीटेल्स न मिलें। अगर ऐसा होता है तो यह चीन की वजह से होगा। क्योंकि, उससे सहयोग मिलना मुश्किल है। एक फायदा ये हो सकता है कि हम भविष्य में महामारियों से निपटने की तैयारी कर सकते हैं। एक बात और साफ हो सकती है कि चीन ने WHO से किस तरह सच्चाई छिपाई। हालांकि, लैब लीक थ्योरी पर राय बंटी हुई है। बाइडेन तो मार्च में ही अपने NSA जैक सुलिवान को यह आदेश दे चुके थे कि वे इंटेलिजेंस कम्युनिटी से इस मामले की तह तक जाने को कहें।

CNN का खुलासा
अमेरिकी न्यूज चैनल CNN ने पिछले साल कोरोना ओरिजन पर एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें इंटेलिजेंस एजेंसीज के हवाले से चीन पर बड़ा खुलासा किया गया था। इसमें कहा गया था कि चीन जो मार्केट से कोरोना फैलने का दावा कर रहा है, वो गलत है। यह वायरस किसी मीट मार्केट से नहीं फैला, बल्कि चीन की ही एक लैब से लीक हुआ है। हालांकि, चीन ने हमेशा की तरह इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।

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