गुलजार साहब ने लिखा, ‘मुझे लगता है के इस वक्त हमारे डॉक्टर्स और नर्सेस वो काम कर रहे हैं जो हमारे सिपाही, जंग के वक्त अपने देश के लिए करते हैं… हमने देखा है कि किस तरह गोलियों की बौछार में वो अपनी जान ख़तरे में डाल कर भी देश की हिफ़ाज़त करते हैं। आप भी वही कर रहें हैं, अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी, महामारी की इस खतरनाक, इस मोहलिक और इस जानलेवा बौछार में अपने देशवासियों की हिफ़ाज़त कर रहे हैं।
उनकी क़ुरबानी, और उनका ये हौसला और भी बड़ा है, क्योंकि उनके पास तो वो बुलैटप्रूफ़ जैकेट भी नहीं हैं, ना हाथ में बंदूकें हैं, ना हाथ में इंजेक्शन हैं के वे दुश्मन की इस महामारी पर वार कर सकें।
हमारे डॉक्टर्स खुद इस महामारी के शिकार होते जा रहे हैं, लेकिन अपनी जंग, अपना युद्ध लड़े चले जा रहे हैं।
हमारे पास कुछ भी नहीं है के हम उनको दे सकें, मुहैय्या करा सकें- ना कोई टैंक है, ना असला है जो हम पहुंचा सकें इस लड़ाई को लड़ने के लिए.. कोई दवा भी अगर है तो वो भी, वो ही पैदा करेंगे, वो ही लड़ेंगे, वो ही अपनी जान पे खतरा भी लेंगे, अपनी जान भी देंगे और देशवासियों की हिफ़ाज़त करेंगे…
इस बहादुरी के लिए हम उनके मशक़ूर हैं, हम सिर्फ़ दुआएं दे सकते हैं उनकी ज़िंदगी के लिए, मुबारकबाद भी देते हैं लेकिन उनका शुक्रिया भी अदा करते हैं और वाकई दिल से हम आप सबका शुक्रिया अदा करते हैं… आप हमारे लिए, हमारी जानें बचाने के लिए अपनी जान को एक शील्ड की तरह, एक ढाल की तरह इस महामारी में सामने रखे हुए हैं
हम अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने के लिये बड़े मुश्ताक़ होते हैं क्योंकि उसमें एक रुतबा है, एक अज़मत है…
हम बहुत मशक़ूर हैं आपके, बहुत-बहुत शुक्रिया… हम आपके साथ हैं और जो कर पायेंगे वो करेंगे ज़रूर…
शुक्रिया!!’
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