कोरोना वायरस की दुनिया को चिट्ठी, लिखा- कुदरत ही तुम्हे बचा सकती है, बेशर्ते…

नई दिल्ली। कोरोनावायरस ने दुनिया का जीने का तरीका बदल दिया है। यह दौर हमें बताता है कि कुदरत का बेजा इस्तेमाल रोकने का वक्त आ चुका है। यह वक्त यह कह देने का है कि अब बहुत हो चुका। लोगों के अंदर की इसी आवाज को जगाने के लिए वन्यजीवों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ने हाल ही में एक पहल की। इस संस्था ने एक खूबसूरत वीडियो बनाया ताकि लोग यह समझ सकें कि सब कुछ खत्म होने से पहले हमें हमारा भविष्य चुनना होगा। दैनिक भास्कर इस पहल को सराहते हुए ग्लोबल वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन की मंजूरी के साथ यह वीडियो आप तक पहुंचा रहा है। गुजारिश है कि वीडियो में दिए संदेश को पढ़िए…

प्यारे इंसानो!
शुक्रिया! एक बेहतरीन मेजबान बनने के लिए।
मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे तुम जैसी घनेरी जिंदगी तक पहुंचने का मौका मिलेगा।
ज्यादातर वायरस अपने पहले मेजबान को ही जान पाते हैं।
जैसे कई तो बस घने जंगलों में बसते हैं।
चमगादड़ या किसी पक्षी की तरह और हां छिपकली भी।
हममें से ज्यादातर सिर्फ किसी दूर खड़े रेनफॉरेस्ट के सीलनभरे माहौल में मौजूद रहते हैं।
खूबसूरत और भरपूर जंगल और जीवों के साथ हम वायरस स्वस्थ वातावरण की जद में रहते हैं।
पर जब तुम जंगल काट देते हो, तो तुम हमारे मेजबान और हमें अपने करीब ले आते हो,
जब तुम तमाम जानवरों को अपनी लोभी भूख, मांस और झूठे इलाज के लिए पकड़ते हो,
तो तुम हम जैसे वायरस की अपने नैचुलर क्वारैंटीन से बाहर नए मेजबानों से मुलाकात करवाते हो,
अपनी तरह के मेजबानों से।

आठ अरब लोग और गिनती के सुपरहोस्ट।
चलते, उड़ते, तैरते, ह्यूमन मीट मार्केट।
वाह! भरोसा ही नहीं होता।

वजन में तुम इस धरती पर मौजूद सभी स्तनधारियों का एक तिहाई हिस्सा हो।
जो जानवर तुम बेवजह खुद के खाने को पालते हो,
उनका भार सभी जंगली स्तनधारी और पक्षियों के भार को पीछे छोड़ चुका है।
तुम्हारी गायें और सुअर हमें अपने जंगली जानवर मेजबानों से तुम तक पहुंचाने में मदद करते हैं।

स्वाइन फ्लू तो याद ही होगा?
और अब जब तुम हमारे नैचुरल वाइल्डलाइफ होस्ट को खत्म करने पर तुले हुए हो,
तुम हमें टाइटैनिक से बड़े जहाज जिंदगी बचाने को दे रहे हो।
वह जहाज तुम हो।
तो मैं क्यों न पहुंचूं?
मैं ऐसे हजारों-सैकड़ों वायरस को जानता हूं जो मेरी तरह इंतजार कर रहे हैं,
अपने आखिरी सुपरहोस्ट तक पहुंचने का।

तो अगर तुम्हारे शरीर की इस बीमारी ने हमारे-तुम्हारे हिस्से की इस धरती की
और ज्यादा बुरी बीमारियों को लेकर तुम्हारी आंखें खोली हैं,
तो तुम्हें एक जरूरी फैसला करना चाहिए।
लेकिन मेरा तुमसे जो बड़ा सवाल है वह ये है…
कि क्या मैं काफी हूं?
अगर सब कुछ खत्म कर देने वाले जंगल की वो आग काफी नहीं,
यदि पिघलते ग्लेशियर पर्याप्त नहीं,
यदि सूखा और तबाही लाने वाली बारिशें काफी नहीं,
तो फिर क्या वह फीकी परछाई जो मैंने तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के आसपास खींची है,
वह तुम्हारे विलुप्त होने की संभावना का सामना करने के लिए पर्याप्त होगी?

यदि मैंने तुम्हारी आंखें खोली हैं, किसी भी चीज को लेकर,
चाहे इस पर कि हम किस हद तक एक-दूसरे जुड़े हैं,
तो समझो कि इन गहरी बीमारियों का इलाज सिर्फ तुम इंसान ही चुन सकते हो,
तो उन बंजर पहाड़ियों पर दोबारा कोपलें उगा दो।
पक्षियों की चहचहाहट और बंदरों की आवाजों का संगीत सूने पड़े रेनफॉरेस्ट में दोबारा खींच लाओ।
पुरातन समंदरों, जंगल और घास के मैदान जो तुम्हारी परवरिश करते थे, अब तुम उनकी परवरिश कर डालो।
और हां, वादा करो जंगली जानवरों की खरीद-फरोख्त बंद कर दोगे।
अब जब धरती गहरी सांस लेने को रुकी है, तुम्हारे पास अद्भुत मौका है,
दुनिया में अपनी जगह को दोबारा गढ़ने और फिर से परिभाषित करने का।
ताकि प्रकृति का संतुलन फिर लौटा सकें।

भविष्य ऐसा हो, जिसमें आपकी जिंदगी पर हमारा काेई हमला न हो।
भविष्य में फिर कभी आपके दरवाजे बंद न हों।
बिजनेस, इकोनॉमी और सरकार परेशान न हो।
और हां अस्पतालों पर वक्त फिर कभी यूं भारी न पड़े।
वह कल जहां किसी के भी गुम हो जाने की आशंका न हो।
बिना जंगल तबाह किए, समंदरों को प्लास्टिक की घुटन में समेटे बगैर,
हवा में कार्बन भरे बिना और पैसों के लिए जंगली जानवरों के शिकार के बगैर।

ये प्रकृति ही है, जो तुम्हें बचा सकती है,
लेकिन पहले तुम्हें उसे बचाना होगा,
खुद को बदलकर, दुनिया को बदलकर।
तो बताओ मुझे, अपने लिए क्या भविष्य चुना है?
वक्त है उसे जीने का। वरना हम उसे तुम्हारे लिए जिएंगे।

…तुम्हारा कोरोना

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