रायबरेली। लॉक डाउन में बड़ी संख्या में प्रावसियों अपने गावों की ओर आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर स्किल्ड है और उसी काम को करते आ रहे हैं। कोरोना के कारण जहां उनका काम बंद हुआ वहीं गांव में इस तरह के काम ज्यादा नहीं है। दूसरे प्रदेशों में निर्माण के काम में राजमिस्त्री के तौर काम कर रहे लोगों ने संकट के समय अब अपने पुश्तैनी काम को खड़ा कर लिया है। अब ऐसे कई लोग हैं, जो बाहर राजमिस्त्री का काम करते थे अब अपने-अपने घरों में मिट्टी के बर्तन बना रहे है। चूंकि कुम्हारी कला इनका पुश्तैनी पेशा है इसलिए इन्हें कोई दिक्कत नहीं और गर्मियों के मौसम में मिट्टी के बर्तनों की मांग भी खूब है। प्लास्टिक कम उपयोग होने की वजह से चाय के कुल्हड़ की भी बाजार में नियमित तौर पर जरूरत रहती है।
प्रवासियों के इस पुश्तैनी काम से जहां संकट के समय थोड़ी ही सही राहत मिली है वहीं बाजार के अनुरूप आपूर्ति भी हो पा रही है। लॉक डाउन में यह काम इन प्रावसियों के आय का अच्छा साधन भी साबित हो रहा है। जिले के जब्बारीपुर गांव के संतोष प्रजापति, रमेश, नन्दलाल आदि सभी प्रावसियों का कहना है कि गांव में निर्माण का काम ज्यादा नहीं है जिसके कारण वह अपना पुश्तैनी काम कर रहे है। इससे घर बैठने से अच्छा है कि कुछ आय हो जाती है।
महराजगंज में भी मिट्टी के बर्तनों की दुकान लगानेवाले सियाराम का कहना है कि गांव के बहुत लड़के बाहर से आये है जो इस काम मे उनकी मदद कर रहे हैं। ऊँचाहार क्षेत्र के आरखा निवासी जगन्नाथ,चंद्रभान,आदि भी बाहर से आये हैं और अब घरवालों के साथ इस काम में परिजनों का हाथ बटा रहें हैं। प्रावसियों द्वारा अपने पुश्तैनी कामों में हाथ बंटाने से जहां इन कामों को भी गति मिल रही है वहीं संकट के समय प्रावसियों को कुछ राहत भी।