बागपत। 28 जनवरी को किसान नेता राकेश टिकैत की भावनात्मक अपील के बाद जिस तरह से किसान आंदोलन को संजीवनी मिली ठीक उसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आए दिन हो रहे किसानों के महापंचायतों ने इन इलाकों में राजनीतिक जमीन खो चुकी आरएलडी को संजीवनी दी है।
किसान आंदोलन के बहाने से आरएलडी नेता जयंत चौधरी भी अपनी खोई राजनीतिक जमीन पाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वह हर दिन महापंचायतों में शामिल हो रहे हैं और भाजपा को चुनौती देने के साथ माहौल अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में लगे हुए है।
28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर हाईवोज्टेज ड्रामा के बीच जिस तरह किसान नेता राकेश टिकैत ने माहौल को बदला ठीक उसी समय मौका गवाएं बिना आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने भी इसे लपक लिया।
29 जनवरी को सुबह-सुबह जयंत गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत से मिलने पहुंचे और आश्वासन दिया कि उनकी पार्टी उनके साथ है। मंच पर टिकैत के साथ खड़े जयंत ने किसानों का दर्द तो बांटा ही साथ ही मोदी पर भी तंज कसा।
रही-सही कसर मुजफ्फरनगर में आयोजित महापंचायत में पूरी हो गई, जब भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि चौधरी अजीत सिंह को हराना सबसे बड़ी भूल थी। पूरा का पूरा माहौल जयंत के पक्ष में बन गया।
तब से लेकर अब तक हुई महापंचायतों में जयंत चौधरी ने शिरकत की है। वह शिरकत करने के साथ-साथ मंच से भाजपा को चुनौती भी देते दिख रहे हैं।
मंच से वह भाजपा पर हमलावर होते हैं और आने वाले चुनावों में उसे सबक सिखाने की अपील करते हैं। फिलहाल अब ये साफ दिखाई दे रहा है कि जाट और मुसलिम फिर से नजदीक आ रहे हैं और इससे बीजेपी के खेमे में जबरदस्त हलचल है।
कृषि कानूनों के खिलाफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आए दिन कहीं न कहीं किसान महापंचायत हो रही है। इन महापंचायतों ने इस इलाके राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को जिंदा होने का मौका दे दिया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही इन किसान महापंचायतों में एक खास बात और है। वह यह कि इनमें जाट समुदाय की अच्छी भागीदारी देखने को मिल रही है, उनमें भी नौजवानों की संख्या ज़्यादा है।
मुजफ्फरनगर से लेकर बागपत और बिजनौर से लेकर मथुरा में हुई किसानों की महापंचायतों में उमड़ी भीड़ चर्चा का विषय बनी। शुक्रवार को शामली में हुई महापंचायत सबसे ज्यादा चर्चा में रही। इसका कारण था कि इस महापंचायत को प्रशासन की मंजूरी नहीं मिली थी, बावजूद इसके महापंचायत हुई और इसमें बड़ी संख्या में लोग भी जुटे।
दरअसल आरएलडी का आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही है। इसी इलाके से निकलकर चौधरी चरण सिंह देश का प्रधानमंत्री बने थे, इसीलिए लोग उन्हें इस इलाके का गौरव बताते हैं।
चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे उनके बेटे चौधरी अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी के लिए साल 2013 तक सब ठीक था, लेकिन उसी साल हुए साम्प्रादायिक दंगों ने माहौल उनके खिलाफ कर दिया।
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी को यहां से 4 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदू मतों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ। इसके साथ ही जाट और मुसलमान दोनों आरएलडी से दूर हो गए।
इसका नतीजा यह हुआ कि अजित और जयंत दोनों चुनाव हार गए, लेकिन किसान आंदोलन में जिस तरह जयंत चौधरी की सक्रियता दिख रही है और लोग महापंचायतों में उमड़ रहे हैं, उससे लगता है कि आरएलडी अपनी खत्म हो चुकी राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल कर सकती है।
दरअसल आरएलडी के पक्ष में नरेश टिकैत का बयान से जयंत को काफी फायदा हुआ है। मुजफ्फरनगर की महापंचायत में नरेश टिकैत ने कहा कि चौधरी अजित सिंह को हराना भूल थी। इससे यह साफ होता है कि आरएलडी के पक्ष में एक बार फिर जाटों के भीतर सहानुभूति है।
शामली की महापंचायत में जयंत चौधरी ने कहा कि भाजपा और कंगना रनौत किसानों को आतंकवादी कहते हैं और लोग आगे से इस अभिनेत्री की फिल्म न देखें। उन्होंने कहा, ‘अगर कोई किसान पर लाठी चलाएगा, उंगली उठाएगा तो हम उस उंगली को तोडऩे का काम करेंगे और हम उन्हें धमकी देना चाहते हैं।’
इतना ही नहीं इन महापंचायतों में जयंत का आक्रामक अंदाज किसानों को भी भा रहा है। उनके भाषण पर किसानों की ताली और उत्साह देखते बन रहा है।
शामली की महापंचायत में जयंत चौधरी योगी सरकार को चुनौती देते हुए कहा, ‘योगी जी आपका माथा बहुत बड़ा है, धारा 144 उस पर छपवा लो। हम तो नहीं रुके, ना आगे रुकेंगे, रोक लो अगर रोक सको तो।’
भाजपा की चिंता जायज है क्योंकि शामली के जिला प्रशासन ने इस इलाके में धारा 144 लगा दी थी और 3 अप्रैल तक जिले में किसी भी बड़ी सभा को करने पर रोक लगा दी है, बावजूद इसके महापंचायत का होना साफ दिखाता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब किसान आरएलडी के बैनर तले एकजुट हो रहे हैं।
आरएलडी ने कहा है कि वह भारतीय किसान यूनियन के साथ मिलकर कृषि कानूनों के विरोध में उत्तर प्रदेश में 5 फरवरी से लेकर 18 फरवरी तक लगातार बैठकें करेगी। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि योगी सरकार के प्रशासन और किसानों के बीच टकराव हो सकता है।
वरिष्ठï पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह 2022 के विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी और समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अगर किसान आंदोलन लंबा चलता है और जाट-मुसलिम आरएलडी के पक्ष में एकजुट होते हैं तो बीजेपी को यहां जबरदस्त सियासी नुकसान हो सकता है