यशोदा श्रीवास्तव
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के साथ दो लोकसभा और पचास में से 47 विधानसभा सीटों के उपचुनावों के तिथि की घोषणा हो गई है। उपचुनावों के लिए अलग तिथि तय की गई है जो विधानसभा के आम चुनावों की तिथि से अलग है। चौंकाने वाली बात यह है यूपी में मुख्यमंत्री योगी की प्रतिष्ठा वाली विधानसभा सीट मिल्की पुर का उपचुनाव भी नहीं हो रहा है।
यूपी के अयोध्या लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले मिल्कीपुर विधानसभा सीट से सपा के विधायक रहे अवधेश प्रसाद भाजपा को हराकर यहां से सांसद चुन लिए गए हैं। अयोध्या की हार से भाजपा तिलमिलाई हुई है। भाजपा अवधेश प्रसाद की छोड़ी हुई विधान सभा सीट मिल्की पुर जीतकर अयोध्या की हार की भरपाई करना चाहती है। मुख्यमंत्री योगी खुद इस सीट की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं।
यहां करोड़ों की विकास योजनाओं की सौगात भी दे दी गई है। सपा यहां से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे को चुनाव लड़ाने की घोषणा कर चुकी है। इस विधानसभा सीट का चुनाव स्थगित होना भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है जबकि इस चुनाव की तैयारियों पर सपा का झटका है।
यूपी की मिल्कीपुर विधानसभा की सीट सहित अन्य प्रदेशों के दो अन्य विधानसभा सीटों के चुनाव रोके गए हैं। इसमें गुजरात की भी एक विधानसभा सीट शामिल हैं।
साथ ही पश्चिम बंगाल की बशीरहाट लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव नहीं होगा। इसके पीछे तर्क है कि इन सीटों पर कोर्ट में याचिका विचाराधीन है जिस वजह से यहां चुनाव नहीं कराए जा सकते।
हालांकि ऐसे किसी चुनावी याचिका के बहाने विधानसभा या लोकसभा सीट का उपचुनाव रोकना समझ से परे है। पश्चिम बंगाल के बशीरहाट लोकसभा से चुने गए सांसद के निधन के बाद वह सीट रिक्त हुई है लेकिन उसके पहले स्वर्गीय सांसद के निकटवर्ती प्रतिद्वंदी ने कोई याचिका दाखिल कर रखी है जिसे लोकसभा के इस सीट पर चुनाव रोकने का आधार माना गया।
बता दें कि यदि किसी याचिका के चलते चुनाव कराने में कानूनी बाधा आती हो तो चुनाव आयोग को मध्य प्रदेश के दतिया विधानसभा सीट का संज्ञान लेना चाहिए जहां 2008 में दायर एक चुनाव याचिका के बाद आज तक एक भी चुनाव नहीं रोका गया। दतिया में पराजित उम्मीदवार राजेंद्र भारती ने भाजपा के विजयी उम्मीदवार मध्य प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ याचिका दायर कर रखी है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट होते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अभी भी विचाराधीन है। लेकिन यहां चुनाव नहीं स्थगित किए गए।
खैर यह तो चुनाव की प्रक्रिया का मुद्दा है जिस पर सवाल उठते रहेंगे,बहस मुबाहिसा होती रहेगी। असल सवाल महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों पर कांग्रेस की रणनीति का है। अभी हरियाणा में अपने लोकल क्षत्रप की ऐंठन की सजा कांग्रेस को जीती बाजी हारकर मिली है।
तो क्या कांग्रेस वैसी ही गलती इन दोनों प्रदेशों के अपने क्षत्रपों के आगे नतमस्तक होकर दोहराएगी या अपने विवेक का भी इस्तेमाल करेगी? कांग्रेस इंडिया गठबंधन की बड़ी भागीदारी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस गठबंधन में शामिल दल उसके रहमो-करम पर हैं।
हरियाणा में वेशक राहुल गांधी सपा और आम आदमी पार्टी को साथ लेकर चलना चाहते थे लेकिन उनकी हरियाणवीं क्षत्रप भूपेंद्र हुड्डा के सामने नहीं चली। हरियाणा हारने के बाद भाजपा और उसके आईटी सेल के निशाने पर हुड्डा तो हैं नहीं,राहुल गांधी,प्रियंका और सोनिया गांधी हैं।
कांग्रेस को अनुशासन की सीख भाजपा से लेनी चाहिए। उसे देखना होगा कि भाजपा ने एक झटके में मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीस गढ़ में चर्चित चेहरों को परे कर नए, नौसिखुओ को मुख्यमंत्री बना दिया और किसी ने चूं तक नहीं किया। भाजपा की वरिष्ठतम नेता वसुंधरा राजे तक को मन मसोस कर रह जाना पड़ा।
महाराष्ट्र में 288 और झारखंड में 81 सीटों पर चुनाव है। कांग्रेस आलाकमान को यहां स्थानीय क्षत्रपों की राय पर उतना ही ध्यान देना होगा जितना जरूरी हो। बाकी नफा नुकसान का फैसला उसे खुद करना होगा।महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के बीच उसके तीन बड़े नेता मिलिंद देवड़ा,अशोक चौहाण और संजय निरूपम साथ छोड़ गए।
फिर भी आलाकमान के लिए गए सूझबूझ के फैसले से पार्टी वहां समझौते के तहत लोकसभा की 17 सीटों पर लड़कर 13 सीट जीतने में कामयाब हुई। इसी तरह उसे विधानसभा के चुनाव में भी सूझबूझ का परिचय देना होगा। यही सूझबूझ झारखंड में भी कांग्रेस को दिखाना होगा।
राहुल गांधी शायद ही चुके हुए किसी कांग्रेस नेता के घर जाकर दो घंटे बिताए हों। लेकिन हाल ही वे दिल्ली में कांग्रेस के निष्प्रयोज्य हो चुके कमल नाथ के घर जाकर पूरे दो घंटे का समय दिए। यह वही कमलनाथ हैं जिसकी हठवादिता से कांग्रेस मध्य प्रदेश में हारी है।
इतना ही नहीं सारा देश जानता है कि विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार के बाद कमल नाथ और उनका बेटा नुकुल नाथ भाजपा में जाने की तैयारी कर चुके थे।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की लुटिया डुबोने वाले कमल नाथ के दिल्ली आवास पर जाकर राहुल गांधी का दो घंटे समय बिताने का संदेश यह गया कि गांधी परिवार अपने पूर्वजों के वक्त के दगाबाज सगे संबंधियों के मोहपाश से उबर नहीं पा रहा।
निसंदेह राहुल गांधी कांग्रेस में नई राह बनाने में कामयाब हो रहे हैं,इसी के साथ उन्हें पार्टी में अभी भी मौजूद गुलाम नबी,ज्योतिरा दित्य,आरपीएन सिंह और भी तमाम उन चेहरों को पहचानना होगा जो उनके पिता,दादी के शासन काल के बाद 2004 से 20014 तक भी कांग्रेस शासन में मलाई काटे और जब पार्टी बुरे दौर में आई तो तमाम तोहमतों के साथ किनारा कर गए। राहुल गांधी को स्वयं में इस फक्र की अनुभूति होनी चाहिए कि देश देख रहा है कि यह राहुल गांधी की कांग्रेस है।