खामोश! गैंगरेप ही तो हुआ है, ये रूटीन है रूटीन

लखनऊ. बदायूं फिर चर्चा में है. फिर एक महिला की इज्जत तार-तार की गई है. इज्जत लूटने के बाद उसकी साँसों की डोर भी तोड़ दी गई है. पुलिस एक बार फिर भाग-दौड़ में लगी है. अपराधी भी पहचान लिए गए हैं. सियासी अखाड़ों में जोश काफी बढ़ गया है. सत्ता और विपक्ष के बीच फिर से हार-जीत वाली कबड्डी शुरू हो गई है.

धीरे-धीरे मरने वाली महिला के घर वालों की आँखों के आंसू सूखने लगेंगे. पुलिस दौड़ते-दौड़ते या तो थक जायेगी या किसी नये केस में बिजी हो जायेगी. अपराधी वह सुरक्षित रास्ते तलाश लेंगे जिसके ज़रिये आत्मसमर्पण कर सकें और अपने लिए शानदार पैरवी वाले वकील तलाश सकें. सियासी अखाड़ों में भी फिर कोई नया मुद्दा नये जोश के साथ नयी कबड्डी के लिए तलाश लिया जाएगा.

दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में निर्भया के साथ हुई हैवानियत देश भूला नहीं है. दरिंदों ने दौड़ती बस में न सिर्फ उसकी इज्जत तार-तार की थी बल्कि अपना मन भर जाने के बाद उसके गुप्तांग में लोहे का राड घुसेड़ दी थी. वही उसकी मौत की वजह बन गई थी.

दिल्ली में निर्भया के साथ हुई हैवानियत के बाद संसद से सड़क तक कोहराम था. उस हैवानियत के खिलाफ बीजेपी आरपार की लड़ाई को बेताब थी. सरकार को क़ानून बनाकर रेप करने वालों के लिए फांसी की सजा तय करनी पड़ी थी.

क़ानून बन जाने का नतीजा क्या हुआ? क्या महिलाओं के हिस्से में सुरक्षा आ पायी? क्या बलात्कारी डर से दहल पाए? फांसी का फंदा आसाराम से लेकर कुलदीप सिंह सेंगर किसी को छू भी नहीं पाया. यूपी एसटीएफ के आईजी की रिपोर्ट बताती है कि यूपी में हर दिन दस बलात्कार होते हैं.

बदायूं का ताज़ा मामला भयावाह इसलिए है क्योंकि यह गैंगरेप एक 50 साल की आंगनबाड़ी सहायिका के साथ हुआ है. गैंगरेप का इल्जाम महंत, उसके शिष्य और ड्राइवर पर है. गैंगरेप के बाद उसके गुप्तांग में लोहे की राड डालकर उसकी किडनी और फेफड़ों को नुक्सान पहुंचाया गया. पत्थरों से उसकी पसली, फेफड़ा और और उसके पैरों को तोड़ दिया गया. महिला की मौत के बाद महंत की बोलेरो में लाश रखकर महिला के दरवाज़े पर ही फेंक दिया गया.

उत्तर प्रदेश की मुस्तैद पुलिस ने इस भयावाह घटना के बाद 18 घंटे तक घटनास्थल पर जाना भी मुनासिब नहीं समझा. हंगामा बढ़ा तो तीन डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है कि महिला के गुप्तांग में राड या सब्बल डाला गया था. उसकी मौत ज्यादा खून बहने और सदमा लगने से हुई.

इतनी बड़ी वारदात के बाद भी महंत सत्यनारायण, चेला वेदराम और ड्राइवर जसपाल में से दो पकड़ में आये हैं जबकि मुख्य आरोपित अभी भी खुली हवा में सांस ले रहा है. पुलिसिया भाषा में कहें दबिश जारी है.

साल 2014 के जून महीने में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी. इसी बदायूं में दो सगी बहनों के साथ गैंगरेप के बाद उनकी हत्या कर लाशें पेड़ पर टांग दी गई थीं. उन बहनों को इन्साफ दिलाने के लिए नेताओं ने रात-दिन एक कर दिया था. सरकार ने घबराकर सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी थी.

अलीगढ़ में महिला जज के सरकारी आवास में घुसकर बदमाशों ने रेप की कोशिश की थी. रेप नहीं कर पाए तो जज को कीटनाशक पिला दिया था. उन पर चाकू से वार भी किये गए. यह सब तब हो गया जबकि जज के घर के बाहर सुरक्षा के लिए पीएसी की गारद लगी थी.

महिला जज के साथ इतनी शर्मनाक वारदात के बाद भी पुलिस की वर्दी की क्रीज़ पर कोई शिकन नहीं आयी. महिला जज के साथ हुए रेप और हत्या के प्रयास के बाद पुलिस की रिपोर्ट पढ़कर किसी को भी शर्म आ जायेगी. पुलिस ने लिखा कि यह पारिवारिक विवाद का मामला लगता है. इस रिपोर्ट पर सियासत को ज़रा भी शर्म नहीं आयी. अदालत के मुंह में भी दही जमा रहा. उसी का नतीजा है हाथरस गैंगरेप. उसी का नतीजा है बदायूं का ताज़ा मामला.

बदायूं में दो बहनें पेड़ पर लटकी मिली थीं तब मेनका गांधी ने खूब हंगामा मचाया था. तब राम विलास पासवान बदायूं पहुँच गए थे. उन्होंने मामला लोकसभा में भी उठाया था. तब आईजी एसटीएफ ने बताया था कि यूपी में हर दिन दस बलात्कार होते हैं.

मतलाब साफ़ है कि दस बलात्कार तो यूपी का रूटीन है. रूटीन को पुलिस कैसे बदल सकती है. सरकार भी इसे बदलने की पहल क्यों करे. यूपी में तो कांग्रेस की भी हुकूमत रही. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की भी हुकूमत रही. भाजपा की अब हुकूमत है तो शोर क्यों हो इसकी तो पहले भी हुकूमत रही.

पहले वाली हुकूमतों को कुछ नहीं कहा. पुराने थानेदारों को कुछ नहीं कहा. पुराने बलात्कारियों को फांसी नहीं दी. चिल्लाओ कितना चिल्लाओगे. बहुत चिल्लाओगे तो यह मामला भी सीबीआई को दे देंगे. जांचें पहले भी हुई है. फिर जांच हो जायेगी. बेहतर होगा कि खामोश रहो. गैंगरेप ही तो हुआ है. ये कोई नया अपराध थोड़े है. यह रूटीन है रूटीन.

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