मासना चेक पॉइंट लेबनान और सीरिया के बीच इंटरनेशनल बॉर्डर है। यहां से सीरिया की राजधानी दमिश्क करीब 50 किमी दूर है। बॉर्डर के एक तरफ तो लेबनानी जनरल सिक्योरिटी के जवान हैं, लेकिन दूसरी तरफ चेक पोस्ट खाली है। इजराइल के हमलों के दौरान सीरिया भागे लेबनानी लौट रहे हैं।
उनके लौटने की वजह है, 8 दिसंबर को सीरिया में हुआ असद सरकार का तख्तापलट। सीरिया में अब हयात तहरीर अल शाम (HTS) नाम के संगठन का कब्जा है। ये ISIS और अल कायदा से जुड़ा रहा है और एक घोषित आतंकी संगठन है।
करीब ढाई महीने पहले भी 5 अक्टूबर को मैं मासना चेक पॉइंट पर था। तब इजराइल लगातार लेबनान पर बमबारी कर रहा था। लोग सीरिया भाग रहे थे, लेकिन अब नजारा उलटा है। सीरिया के लोग असद के जाने से खुश तो हैं, लेकिन HTS भी सवालों के घेरे में है।
बॉर्डर पर कारों की लंबी लाइन है। मासना से थोड़ा आगे बढ़ने पर HTS लड़ाका हमें रोकता है। जैसे ही वो प्रेस कार्ड देखता है, मुस्कुराकर कहता है- ‘वेलकम टू न्यू सीरिया…।’
दिल्ली से दमिश्क तीन देश और 5,690 किमी का सफर HTS के लड़ाके 6 दिसंबर को दारा शहर जीतने के बाद दमिश्क की तरफ बढ़े और दो दिन बाद उस पर कब्जा कर लिया। विद्रोही गुटों ने 24 साल से कायम असद की सत्ता को सिर्फ 11 दिन में हरा दिया। 27 नवंबर से उन्होंने इदलिब से अभियान शुरू किया और 8 दिसंबर को वे दमिश्क में थे।
हालांकि, मेरे लिए दमिश्क पहुंचना आसान नहीं रहा। एयरपोर्ट बंद, एम्बेसी बंद, तो ऐसे में वीजा कहां से मिले और जाएं कैसे, यही सबसे बड़ा सवाल था।
सीरिया का बॉर्डर 5 देशों से सटा हुआ है- तुर्किए , इराक, जॉर्डन, इजराइल और लेबनान। सीरिया में तख्तापलट के बाद से ही इजराइल ने बॉर्डर पर मौजूद गोलान हाइट्स के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया है। उधर से जाने का फिलहाल कोई रास्ता नहीं है।
इराक बॉर्डर से लगे सीरियाई हिस्से पर आतंकी संगठन ISIS के कई गुटों का कब्जा है। वहां से दाखिल होने का ऑप्शन ही नहीं था। तुर्किए का बॉर्डर राजधानी दमिश्क बहुत दूर है और ये भी बार-बार बंद हो रहा है।
ऐसे में लेबनान से सीरिया में दाखिल होना थोड़ा आसान लगा। अक्टूबर में इजराइल-हिजबुल्लाह की जंग के दौरान मैंने इस बॉर्डर से रिपोर्ट भी की थीं। तय किया कि लेबनान के रास्ते ही सीरिया जाएंगे।
इस्तांबुल, बेरूत और फिर दमिश्क का सफर मैंने दिल्ली के IGI इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बेरूत की फ्लाइट ली। फ्लाइट कनेक्टिंग थी, तुर्किए की राजधानी इस्तांबुल स्टॉपेज था। यहां कुछ घंटे रुकने के बाद मैं लेबनान की राजधानी बेरूत के लिए निकला।
बेरूत जा रही फ्लाइट में भी माहौल बदला हुआ नजर आया। अक्टूबर में जब मैं इसी रूट से बेरूत गया था, तो वहां इजराइली बमबारी जारी थी और फ्लाइट की ज्यादातर सीटें खाली थीं। इस बार ये किसी आम फ्लाइट की तरह ही थी। सीटें भरी हुईं हैं, अच्छी खासी चहल-पहल और बेफिक्र दिख रहे महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, कामकाजी लोग नजर आ रहे हैं।
करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद विंडो से बेरूत शहर दिखने लगा। पिछली बार की तरह इस बार बेरूत के ऊपर काला धुआं नहीं, बल्कि साफ आसमान था। बेरूत एयरपोर्ट से निकलने के बाद मैं उसी दाहिया से गुजरा, जो कभी हिजबुल्लाह का गढ़ था। जंग के निशान अब भी बाकी हैं, चारों तरफ टूटी इमारतों का मलबा पड़ा है।
रास्ते में हर जगह हिजबुल्लाह के पुराने चीफ हसन नसरल्लाह के पोस्टर लगे हैं। साथ में नए चीफ नईम कासिम के पोस्टर भी दिख रहे हैं। हम बेरूत से सीरिया की तरफ अल-मासना बॉर्डर चेक पॉइंट की तरफ बढ़ रहे थे।
बेरूत से करीब 80 किमी दूर अल-मासना चेक पोस्ट दमिश्क तक जाने वाले हाईवे पर आखिरी चेक पॉइंट है। दो घंटे तक पहाड़ी रास्तों पर सफर कर हम अल-मासना चेक पॉइंट पर पहुंचे। बॉर्डर पार करने के पहले कैब के लिए एक्स्ट्रा डीजल लिया। सीरियन करेंसी भी ले ली। हमें पता चल गया था कि तख्तापलट के बाद से सीरिया में कैश और फ्यूल की सप्लाई कम हो गई है।
बॉर्डर पर दोनों तरफ भीड़, जंग से बचकर भागे रिफ्यूजी अपने देश लौट रहे लेबनान और सीरिया के बीच कई बॉर्डर चेक पॉइंट हैं, लेकिन तख्तापलट के बाद से सिर्फ अल-मासना चेक पॉइंट ही खुला है। पूरे इलाके में कारें ही दिख रही थीं।
बैग और लोगों से भरी गाड़ियां सीरिया से लेबनान की तरफ भी आ रही हैं। ये लोग अब तक सीरिया में रह रहे थे, लेकिन वहां हुए बदलाव के बाद लौट रहे हैं। शायद उन्हें पहले से युद्ध में फंसा अपना देश ज्यादा सेफ लगने लगा है।
दूसरी तरफ लेबनान से सीरिया जाने वाले रास्ते में भी सामान और लोगों से लदी गाड़ियां दिख रही थीं। ये लोग असद सरकार के सताए हुए थे और अब सीरिया अपने घरों को लौट रहे हैं।
चेक पॉइंट पर हमने लेबनानी जनरल सिक्योरिटी का स्टांप लगवाया और कागजी कार्रवाई के बाद बॉर्डर पार कर लिया। यही वो जगह थी, जहां से आगे की एंट्री पर हमारा पूरा प्लान टिका था। परमिशन मिलते ही राहत महसूस होने लगी।
भारी ट्रैफिक के बीच हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। हमें पहले ही हिदायत मिल गई थी कि चेक पॉइंट के आसपास वीडियो या फोटो नहीं लेना है। करीब एक किमी आगे बढ़ने पर हम बफर जोन में पहुंच गए। ये नो मेंस लैंड है, जहां सीरिया और लेबनान दोनों की फौजें नहीं होती।
हिजबुल्लाह और इजराइल जंग की कवरेज के दौरान भी हम इस इलाके में आए थे। तब इजराइल ने एयर स्ट्राइक कर हाईवे उड़ा दिया था। इससे सीरिया और लेबनान के बीच कनेक्टिविटी टूट गई थी। अब स्ट्राइक वाली जगह हुआ गड्ढा भर दिया गया है।
बफर जोन से गुजरते हुए कई ऐसे लोग दिखे, जो लेबनान से पेट्रोल-डीजल ला रहे थे। सरकार गिरने के बाद सीरिया में पेट्रोल-डीजल महंगे हो गए हैं। इसलिए ये लोग लेबनान से फ्यूल लाकर सीरिया में बेच रहे हैं।
यहां से सीरिया में एंट्री कस्टम पर सरकारी अफसर नहीं, असद को हराने वाले HTS के बंदूकधारी लड़ाके बफर जोन पार करते ही जगह-जगह सीरिया का नेशनल फ्लैग दिखने लगता है। एंट्री गेट के ऊपर बशर-अल-असद का फटा पोस्टर लगा था। असद की फोटो पर कालिख पुती है। 8 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों ने बशर-अल-असद से जुड़े प्रतीकों पर अपना गुस्सा उतारा था।
सीरिया में दाखिल होने पर कस्टम डिपार्टमेंट के गेट पर बंदूक लिए एक लड़ाके ने हमें रुकने का इशारा किया। हम रुके और शीशा नीचे करके कहा- ‘सहाफी-सहाफी’ …
जर्नलिस्ट को अरबी भाषा में सहाफी कहते हैं। ये सुनते ही बंदूकधारी मुस्कुराया और बोला- ‘यल्ला हबीबी.. Welcome to new Syria.’
हमारे ड्राइवर ने उससे अरबी में बात की। वो बोला-
मैं हयात तहरीर अल-शाम का फाइटर हूं। मुझे इस चेकपॉइंट पर तैनात किया गया है। सीरिया में आपका स्वागत है। असद भाग गया है, अब फिक्र की बात नहीं।
कस्टम गेट से आगे की सड़क सूनी पड़ी है। सूखे पहाड़ों से गुजरते घुमावदार रास्ते पर हर जगह असद की आर्मी और विद्रोही गुटों की झड़प के निशान दिख रहे थे। लोगों के नाम पर सिर्फ नकाबपोश बंदूकधारी हैं। ये आर्मी की गाड़ियों और बाइक से घूम रहे हैं।
HTS के ये लड़ाके सीरिया की राजधानी दमिश्क में मिले। सिक्योरिटी का जिम्मा अब इन्हीं लड़ाकों के पास है।
रास्ते में असद आर्मी के टूटे टैंक, सैनिक इन्हें छोड़कर भागे आगे बढ़ने पर हमें एक टैंक और आर्मी की जीप दिखी। टैंक के आगे के कुछ हिस्से टूटे हुए थे। जीप के सारे कांच टूटे थे। हम यहां रुके और टैंक को करीब से देखा। अब तक समझ आ चुका था कि विद्रोही गुटों और आर्मी के बीच कोई बड़ी जंग नहीं हुई।
असद की आर्मी, विद्रोही गुटों के आने की खबर सुनकर अपने टैंक और गाड़ियां छोड़कर भाग खड़ी हुई। विद्रोही लड़ाकों ने इन टैंकों और गाड़ियों पर कब्जा कर लिया। दमिश्क पर जीत की खुशी में इन्हीं पर चढ़कर खुशी में फायरिंग की।
हम फिर दमिश्क के रास्ते पर आगे बढ़े। ये रास्ता पहाड़ों से गुजरता है। पहाड़ की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद हमें एक शहर नजर आने लगा। हमारा ड्राइवर बोला- We have reached Damascus my brother, यानी हम दमिश्क पहुंच गए मेरे भाई।
दमिश्क में सब नॉर्मल, पुरानी सरकार के अधिकारी भागे हमें लगा था कि दमिश्क में आपाधापी का माहौल होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखा। सड़कों पर ट्रैफिक है। सारी इमारतों पर सीरिया का झंडा लगा है। तख्तापलट की खुशी में लोगों ने जगह-जगह सीरियाई झंडे लगा रखे हैं।
अब हमें इंफॉर्मेशन मिनिस्ट्री जाना था। वहां हयात तहरीर अल-शाम के लोगों से मिलना था। अब तक हमारे पास सीरिया में एंट्री और यहां काम करने की परमिशन नहीं थी। परमिशन लेते किससे, पुरानी सरकार के सारे अधिकारी भाग गए हैं।
हम आईटी मिनिस्ट्री पहुंचे, तो वहां कुछ लड़के मिले। उन्होंने हमारा स्वागत किया और बोले- ‘Welcome to home, you are in new Syria.
यही बात हमसे बॉर्डर पर लड़ाके ने कही थी। इन बातों से लग गया कि असद सरकार गिरने के बाद सीरिया पहले जैसा नहीं रहा। अब ये नया सीरिया है।