खूबसूरत नजारों के साथ स्नोफॉल का भी मजा, तो स्पीति वैली है एकदम परफेक्ट

जहां दिवाली आते ही लोग घर की सफाई, सजावट, शॉपिंग और गिफ्टिंग की प्लानिंग में लग जाते हैं वहीं मैं, इस बार दिवाली दिल्ली से बाहर कहां मनाना है इसकी प्लानिंग में। 2020-21 में तो मजबूरी थी शहर क्या घर से भी बाहर नहीं निकल पाई, लेकिन इस साल अगर सब कुछ नॉर्मल रहा, तो दिवाली का जश्न कहीं और ही मनाना है ये सोच लिया था।

विश लिस्ट में सिक्किम, अंडमान, केरल ये तीन डेस्टिनेशन्स थे लेकिन ऑफिस में छुट्टी के लोचे के चलते समय पर बुकिंग नहीं कर पाई और जब तक छुट्टी फाइनल हुई तब तक इन तीनों जगहों के फ्लाइट रेट मेरी बजट से बाहर जा चुके थे। मूड वहीं पर खराब हो गया लेकिन आंखें अभी भी ऐसे ठिकानों को ढूंढ़ने में जुटी हुई थी जहां मैं अपनी दिवाली की छु्ट्टियां एंजॉय कर सकूं और वो बजट में भी।

जैसलमेर, गोवा, कुर्ग, उत्तराखंड जैसे ऑप्शन्स थे जहां घूमना मेरी जेब पर भारी नहीं पड़ता लेकिन इत्तेफाक से इंस्टाग्राम स्क्रॉल करते हुए मुझे स्पीति वैली के 2-4 ऑप्शन नजर आएं जिन्हें मैंने तुरंत सेव कर लिया। वैसे स्पीति घूमने की प्लानिंग मैंने जून में की थी, लेकिन वही दफ्तर की नौकरी (करने को दिल नहीं मगर करे जाए) वाला लोचा-ए-उल्फत।

तो जब कोई ऑप्शन नहीं बचा, तो मैंने सोचा कि चलो स्पीति वैली ही घूम लिया जाए। कम से कम दिवाली की छुट्टियां घर में बैठकर तो नहीं बितानी पड़ेंगी। फट्टाक से मैंने बाकी काम छोड़कर इंस्टाग्राम छानना शुरू किया जहां मेरे सेव्ड आइटम्स में कई ऐसे अकाउंट्स थे जो लगभग हर वीकेंड स्पीति वैली ग्रूप ट्रिप ले जाते रहते हैं। इनमें से एक से मैंने ट्रिप की पूरी डिटेल्स ली, बजट की बात की और बस हो गई पूरी सेटिंग….तो अगर आप भी बजट में स्पीति वैली की सैर करना चाहते हैं, तो इसके लिए बेस्ट ऑप्शन है Travelyara. क्यों? ये आपको आगे बताएंगे।

दिल्ली से 22 अक्टूबर शनिवार रात 10.30 बजे एसी वाल्वो बस शिमला के लिए रवाना हुई। जो सुबह 6 बजे शिमला पहुंचाने वाली थी। वैसे तो ये ग्रूप ट्रिप था लेकिन अभी तक मेरी ग्रूप के किसी भी व्यक्ति से जान-पहचान नहीं हुई थी। हालांकि कुछ लोग बस में ही सवार थे लेकिन हम सभी एक-दूसरे से अंजान थे। शिमला पहुंचते ही कुछ दूर पर स्पीति वैली ले जाने वाली टैंपो ट्रैवलर खड़ी थी। जिसकी छत पर एक मुस्कुराते हुई भईया हमारा स्वागत कर रहे थे। उन्होंने सबसे पहले टैंपो ट्रैवलर के पास खड़े लोगों का बैग लोड किए फिर अंदर बैठने का ऑर्डर दिया।

एक के बाद ट्रैवलर की ज्यादातर सीटें भर गई। ट्रैवलर में बैठने के बाद स्पीति वैली घूमने की फीलिंग आई। ट्रैवलर की सबसे आगे सीट पर बैठे जनाब में अपना इंट्रोडक्शन दिया कि हाय..माई नेम इज सूरज…मैं आपका ट्रिप कोऑर्डिनेटर हूं। तो सबसे पहले आपको बता दूं कि ये कोई लक्जरी ट्रिप नहीं है। तो बहुत ज्यादा एक्सपेक्टेशन मत रखना। अच्छा किया उसने ये पहले ही क्लियर कर दिया। वो क्या है ना कि ज्यादा बता कर कम मिले तो निराशा होती है लेकिन कम बताकर ज्यादा मिले तो उसकी खुशी ही अलग होती है।

फिर एक के बाद एक ट्रैवलर में बैठे लोगों ने अपना इंट्रोडक्शन दिया। ग्रूप ट्रिप की सबसे अच्छी बात होती है कि आपकी यहां कई तरह के लोगों से मुलाकात होती हैं। कोई आपका बहुत अच्छा दोस्त बन जाता है, तो कोई लाइफ पार्टनर। इस ट्रिप में दिपाली, अलविरा, प्रियल, नीति जैसे खूबसूरत चेहरे देखने को मिले, तो वहीं अनिल, बलदेव, प्रिंस और सूरज जैसे हैंडसम भी। तभी सूरज ने बोला कि यार अभी कुछ और लोग हमें ज्वॉइन करने वाले हैं और तभी चार और हैंडसम ट्रैवलर में सवार हुए। शिव, विद्या, सतीश और प्रभात।

अब ट्रैवलर फुल हो चुकी थी। शिमला में ब्रेकफास्ट का प्लान था फिर निकलना था आगे। नाश्ते की टेबल पर प्रभात, शिव, सतीश, विद्या और बलदेव से बात हुई। कुछ लोग उड़ीसा से आए थे, कुछ महाराष्ट्र, पुणे से, कुछ यूपी से तो कुछ दिल्ली से। उनसे बात करके लगा कि चलो ट्रिप बोरिंग तो नहीं जाने वाला। अच्छा एक का इंट्रोडक्शन तो रह ही गया…जो हमें स्पीति के खूबसूरत नजारों का दीदार कराने वाले थे और वो थे पप्पू भईया। बहुत ही जिंदादिल इंसान।

जिन्होंने स्पीति घूमाने के साथ-साथ फुल टू हमें एंटरटेन भी किया। पप्पू भईया का मौजूदगी ने नो डाउट ट्रिप को और ज्यादा मजेदार बना दिया। फाइनली नाश्ते के बाद कारवां रवाना हुआ स्पीति की ओर।

सबसे पहला पड़ाव था चितकुल। जिसे अब तक तस्वीरों में ही देखा था फाइनली अब मौका मिलने वाला था इसे पास से निहारने का। चितकुल भारत का अंतिम गांव है। जिसकी ऊंचाई लगभग 11,319 फीट है और यह हिमाचल की किन्नौर घाटी में बसा है। बासपा नदी के किनारे बसा यह गांव खूबसूरत होने के साथ ही बहुत शांत भी है।

भीड़भाड़, शोर-शराबे से दूर इस गांव में भले ही घूमने वाली जगहों की थोड़ी कमी दिखेगी लेकिन रिलैक्सिंग वेकेशन के लिए ये जगह एकदम बेस्ट है। तो अगर आप स्पीति वैली एक्सप्लोर करने निकले हैं, तो एक दिन तो कम से कम यहां जरुर बिताएं। हमारा भी यहां एक ही दिन का स्टे था। क्या कड़ाके की ठंड थी यहां। चितकुल पहुंचते-पहुंचते शाम हो चुकी थी और ठंड ऐसी की हाथ-पैर जमे जा रहे थे।

हमारा होटल बासपा नदी के पास में ही था। रात को डिनर, सुबह ब्रेकफास्ट कर हमें अगले डेस्टिनेशन के लिए निकलना था। तो बासपा नदी की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने का मौका सुबह मिला। नदी का साफ-सुथरा पानी, आसपास हरे-भरे पड़े और बर्फ से ढके पहाड़ को देखना वाकई शानदार अनुभव था। चितकुल में आपको भारत का आखिरी ढाबा देखने मिलेगा। जहां कई सेलिब्रिटीज़ भी आ चुके हैं। तो यहां आप चाय-नाश्ते कर सकते हैं।

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ढाबे के नजदीक ही नाग टेंपल भी है। जो यहां का एक प्राचीन मंदिर है। चितकुल आएं तो इन दोनों जगहों को देखना बिल्कुल भी मिस न करें। यहां रूककर हमारे ग्रूप ने भी जमकर मौज-मस्ती की, खूब सारी फोटोज क्लिक कराई और फिर निकल पड़े अपने दूसरे डेस्टिनेशन की ओर।

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टाबो

ये था हमारा दूसरा पड़ाव। टाबो पहुंचने का रास्ता इतना मनमोहक था कि इसे कैमरे में कैद करने का कोई मौका हमारा ग्रूप मिस नहीं कर रहा था। मोबाइल, Go Pro, DSLR जिसके पास जो था उसका भरपूर इस्तेमाल हो रहा था। फाइनली दिल्ली के शोर-शराबे और प्रदूषण से दूर टाबो में हम इस बार दिवाली का जश्न मनाने वाले थे। जो वाकई शानदार रही। यहां भी हमने दिवाली पूजन का जुगाड़ कर ही लिया।

थोड़ी मौजमस्ती के बाद डिनर किया और निकल लिए सोने। सुबह यहां की मोनेस्ट्री देखने का प्लान था। ग्रूप के कुछ लोग तड़के सुबह उठकर, तैयार होकर आसपास घूमने निकल पड़े। खैर घूमना कम से ज्यादा फोटो सेशन ज्यादा हुआ। लौटकर हमने होटल में ब्रेकफास्ट निपटाया। बैग ट्रैवलर पर लोड किए और फिर पूरा ग्रूप एक साथ निकला यहां की जगहों का दीदार करने। होटल के बिल्कुल पास में ही ओल्ड और न्यू मोनेस्ट्री थी। न्यू मोनेस्ट्री बाहर और अंदर से बेहद खूबसूरत थी। जहां हमने कुछ रील्स बनाएं। इसके बाद ओल्ड मोनेस्ट्री को कवर किया।

मोनेस्ट्री के अंदर फोटो खींचने और शोरगुल करने की सख्त मनाही थी। इसलिए यहां ज्यादा वक्त नहीं लगा। इसके बाद सूरज (ट्रिप कोऑर्डिनेटर) ने बताया कि एक और अच्छी जगह है जहां तक पहुंचने के लिए थोड़ी हाइकिंग करनी पड़ेगी, लेकिन वहां पहुंचकर आपको अलग ही नजारा देखने को मिलेगा और ऐसा ही हुआ। यहां से स्पीति का एक अलग ही नजारा नजर आ रहा था।

एक तरफ देखो तो सुनहरे पहाड़, तो एक तरफ बर्फ से ढ़के पहाड़, कहीं हरे-भरे जंगल तो कहीं बहती नदी का नजारा। ऐसा अद्भुत नजारा तो अक्सर फोटोज़ में ही देखने को मिलता है लेकिन मैं अभी इसे लाइव देख रही थी। हाइकिंग करके हम पहाड़ों पर बने गुफाओं को देखने पहुंचे। जिनकी बनावट लाजवाब थी। गुफाओं के अंदर कुछ-कुछ चीज़ें भी रखी थी। सर्दियों में बौद्ध भिक्षु इन गुफाओं में ही मेडिटेशन करते हैं ऐसा पता चला। टाबो की इन खास जगहों को देखकर हम बढ़े चले आगे की ओर।

काजा

स्पीति वैली ट्रिप में हमारा अगला डेस्टिनेशन था काजा। ये जगह भी बेहद शांत और खूबसूरत है। टाबो से काजा पहुंचते-पहुंचते रात हो चुकी थी। काजा पहुंचने से पहले ही सूरज हमें इतनी बार बोल चुका था कि यार यहां हम होमस्टे में रूकने वाले हैं, तो प्लीज मैनेज कर लेना। दो ही टॉयलेट होंगे, कमरे ज्यादा बड़े नहीं हैं फलाना-धिकाना। सबने होमस्टे को लेकर अपनी-अपनी धारणाएं बना ली थी, लेकिन जब हम वहां पहुंचे…तो नजारा ही अलग।

इतना खूबसूरत और वेल मेनटेन्ड होमस्टे कि कहना ही क्या। ग्रूप में शायद ही कोई होगा जिसने इस होमस्टे की तारीफ नहीं की। तो अगर आप काजा जाएं, तो Dhungkar Homestay अच्छा नहीं बल्कि बहुत ही अच्छा ऑप्शन है रूकने का। अंकल, आंटी, उनकी दो बेटियों ने हमारा बहुत ही अच्छे से स्वागत किया। रूम में सेट होने के बाद हम लोगों ने डिनर किया। पूरे दो दिनों बाद कुछ अच्छा खाने को मिला था। आत्मा संतुष्ट हो गई थी खाना खाकर। खाने के बाद थोड़ी गपशप हुई फिर सोने चले गए क्योंकि अगले दिन दो जगहें कवर करनी थी।

लांग्जा

काजा से लांग्जा गांव की दूरी सिर्फ 16 किमी. है। लांग्जा, स्पीति वैली का बहुत ही खूबसूरत गांव है। जो समुद्र तल से 14,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां का मुख्य आकर्षण है भगवान बुद्ध की मूर्ति। जो दूर से ही नजर आ जाती है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको पार्किंग एरिया से मात्र 10 मिनट की पैदल यात्रा करनी होगी। लांग्जा रंगों से भरा हुआ गांव है। स्टेच्यू के अलावा यहां मिट्टी के घर और प्राचीन मठ भी देखने लायक हैं।

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की मोनेस्ट्री

समुद्र तल से 4,166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित की मोनेस्ट्री हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का बहुत पुराना और मशहूर तिब्बती मठ है। जो एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां रहने वाले लोगों और बौद्ध भिक्षुओं ने इसे इस तरह से मेनटेन किया हुआ है कि देखकर लगता ही नहीं कि ये यह एक हजार साल पुराना है। इस मठ का निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ था। इस मठ में बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु, नन और लामा अपनी धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने आते हैं।

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शाम को लोकल मार्केट में हमने थोड़ी-बहुत शॉपिंग की, फिर होमस्टे लौटे। थकान तो थी लेकिन आधी थकान खाने खाते ही मिट गई और उसके बाद बची हुई थकान UNO (ऊनो) खेलकर। उस रात हमारे पूरे ग्रूप ने बहुत मस्ती की। सुबह काजा की बची हुई जगहों को घूमने का टेंशन न होता, तो शायद हम सोने की सोचते भी नहीं। अगली सुबह हम दो और ऐसी जगहें जाने वाले थे, जिसे देखे बिना स्पीति का ट्रिप अधूरा है। और वो था…

हिक्किम

हिक्किम में दुनिया का सबसे ऊँचा पोस्ट ऑफ़िस है। मात्र ₹30 में आप अपने किसी खास को पोस्टकार्ड भेज सकते हैं। यहां भी अच्छी-खासी भीड़ थी। पोस्टकार्ड भेजने के बाद कुछ एक क्लिक्स कराएं और फिर निकल लिए अपनी दूसरी मंजिल की ओर।

चिचम ब्रिज

यह पुल 14 हजार फुट की ऊंचाई पर सांबा-लांबा नाले पर बना है। यह एशिया का सबसे ऊंचा ब्रिज है। जिसे देखने और वहां फोटो खिंचवाने वालों की खचाखच भीड़ थी। तो हम ये मौका कैसे हाथों से जाने देते। हमने भी बहुत सारी फोटोज़ क्लिक कराई और कुछ फनी रील्स भी बनाई। यहां शायद हमारे ग्रूप ने सबसे ज्यादा मस्ती की। चिमम ब्रिज को देखना एक अलग ही तरह का एडवेंचर है। तो इसे यहां आकर तो देखना बनता है। चिचम के बाद यहां की एक-दो और जगहों को भी हमने एक्सप्लोर किया। फिर लौट चले होमस्टे की ओर। अगली सुबह हमें शिमला के लिए वापस निकलना था। होमस्टे पहुंचने के बाद सबने डिनर किया, उसके बाद अपना सबसे जरूरी काम निपटाया वो था ऊनो खेलना। सुबह पैकिंग-शैकिंग कर निकल लिए शिमला की ओर। रास्ते में बची-खुची मस्ती भी की।

सफर में आने की जितनी एक्साइटेड रहती है वापस जाने का उतना ही दुख। थैंक गॉड ट्रिप में किसी तरह की कोई भसड़ नहीं थी। आने-जाने से लेकर रूकने तक की A-one अरेंजमेंट थी। जिसके बाद ऐसा लगा कि स्पीति वैली ट्रिप के पूरे पैसे वसूल हो गए। इसका पूरा श्रेय Travelyara को जाता है। जिन्होंने ट्रैवलर्स के कंफर्ट का पूरा ध्यान रखा। तो अगर आप भी स्पीति वैली घूमने का प्लान कर रहे हैं, तो इनसे कनेक्ट कर सकते हैं इनके इंस्टाग्राम पर।

तो मेरा इस बार का दिवाली वेकेशन भी शानदार रहा। मिलते हैं जल्द आपसे ऐसी ही दूसरी अमेजिंग ट्रिप की मजेदार बातों के साथ।

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