गठबंधन की होड़: भाजपा ने निषाद पार्टी-अपना दल का हाथ थामा, सपा चाहती है प्रसपा का साथ

चुनावी राजनीति का चक्र अक्सर बड़े चेहरों के इर्द गिर्द घूमता है, मगर इस बार यूपी में चुनावी चालें छोटे चेहरों के भी चक्कर लगाएंगी। बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने बाकायदा इसकी शुरुआत कर दी है। दोनों दलों ने तय किया है कि वो सूबे के छोटे दलों से दिल मिलाएंगे। उन्हें अपने साथ लाएंगे और छोटे दलों के सहारे ही यूपी में सरकार बनाएंगे। लिहाजा सपा और भाजपा एक दुसरे को मात देने के लिए छोटे दलों पर बड़ा दांव लगा रहें है।

शुक्रवार को यूपी की सियासत में सामाजिक समीकरणों को साधने में जुटे सियासी दलों की दो तस्वीरें सामने आई। एक तरफ भाजपा ने निषाद पार्टी के साथ अपने गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया तो दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी के विधायक राम अचल राजभर व लालजी वर्मा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ नजर आए।

समझिए कहां किसका कितना प्रभाव

1.निषाद पार्टी का निषाद, केवट, मल्लाह, बेलदार और बिंद बिरादरियों में अच्छा असर माना जाता है। गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, जौनपुर, संत कबीरनगर, बलिया, भदोही और वाराणसी समेत 16 जिलों में निषाद समुदाय के वोट जीत-हार में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। संजय निषाद दावा करते हैं कि प्रदेश की 100 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर निषाद वोट जिताने या हराने की ताकत रखता है।

2. आरएलडी- जयंत चौफरी की RLD इस बार पश्चिम में बड़ी ताकत के साथ उभर रही है। कहा जा रहा है कि पश्चिम के जाटों के प्रभाव वाले 130 सीटों पर RLD का प्रभाव है।

3. अपना दल (एस)

पटेल और कुर्मी का प्रभाव विंध्याचल, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के कुछ इलाकों में है कुर्मी से ज्यादा पिछड़ा वर्ग में सिर्फ यादवों की आबादी है, जो कुल पिछड़ा आबादी का करीब 40 फीसदी हिस्सा है।अपना दल का वाराणसी-मिर्जापुर-प्रतापगढ़-रॉबर्ट्सगंज क्षेत्र में सीधा प्रभाव है। इस लिहाज से 30 से 35 सीटों पर प्रभाव है।

4. PSPL – यादव लैंड में शिवपाल की भूमिका बड़ी है। इस क्षेत्र में शिवपाल यादवों को प्रभावित करते है। शिवपाल यादव यूपी के 10 से 15 सीटों पर प्रभाव रखते है।

जिसका दल छोटा उसका भी बड़ा नाम है

भाजपा ने 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में विभिन्न जाति आधारित छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बड़ी कामयाबी हासिल की थी। पार्टी उसी सफलता को फिर से दोहराना चाहती है। इसीलिए एक बार फिर छोटे दलों से गठबंधन की कवायद शुरु है।

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का बड़े दलों के साथ गठबंधन का अनुभव बेहद बुरा रहा है, लिहाजा सपा भी अब छोटे दलों को साथ लाने में जुटी है। मौजूदा समीकरणों को देखते हुए सूबे में छोटे-छोटे दलों की पूछ परख बढ़ गई है। हर बड़ा दल इन छोटे दलों पर डोरे डाल रहा है और उनकी डिमांड भी बढ़ती जा रही है। इसके पीछ वजह भी है।

UP की सियासत में छोटे दलों की बड़ी भूमिका

विधानसभा चुनाव में छोटे दल भले ही अब तक कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा सके हैं लेकिन कई सीटों पर क्षेत्रीय और जातीय आधार पर हार जीत का समीकरण तय करते हैं । यही कारण है कि भाजपा से लेकर सपा तक छोटे दलों के साथ जोड़ने में जुटी है। 2017 में अपना दल-9,सुभासपा-4, आरएलडी और निषाद पार्टी एक-एक सीट जीतने में सफल रही थी। इसके अलावा पीस पार्टी 2.5 लाख और AIMIM को करीब 2 लाख वोट मिले थे।

भाजपा का छोटे दलों के साथ बड़ी जीत की दावा

भाजपा निषाद पार्टी और अपना दल के साथ अपने पुराने गठबंधन पर औपचारिकता मुहर लगा चुकी है। यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने ओमप्रकाश राजभर को साथ लेने के सवाल पर कहा था कि प्रदेश संगठन तमाम छोटे दलों से बात कर रहा है। सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने और हर जाति के प्रतिनिधित्व के लिए ऐसे दलों को साथ जोड़ना पड़ता है।

कहा जा रहा है कि भाजपा इस बार अपने पुराने सहयोगियों के अलावा कुछ नए साथी भी तलाश रही है। बिहार की जदयू और वीआईपी पार्टी से भी भाजपा की बात चल रही है। इसके अलावा ओमप्रकाश राजभर को साधने की कोशिश हो रही है। हालांकि राजभर की भागीदारी संकल्प मोर्चा बड़ा आकार ले रहा है इसमें अब तक 10 दल शामिल हो चुके हैं।

अखिलेश का छोटे दलों से बढ़ेगा कुनबा

उधर अखिलेश यादव लगातार कह रहें है कि 2017 के विधानसभा में कांग्रेस और 2019 के लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा। इससे सपा को बड़ा नुकसान हुआ। लिहाजा इस बार पार्टी का बड़े दलों से मोहभंग हो गया है और वो छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर चुनावी मैदान में उतरेंगी।

सपा का महान दल जैसे छोटे दलों के अलावा आरएलडी से गठबंधन हो चुका है। औपरचारिक ऐलान होना बाकी है। सूत्रों के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भीम आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के साथ अखिलेश यादव की गठबंधन और सीटों के बंटवारे को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है।

इसके साथ ही चाचा शिवपाल यादव की पार्टी पीएसपीएल से भी गठबंधन की बात चल रही है। अखिलेश यादव कह चुके है कि छोटे दलों को जोड़ कर बड़ी जीत हासिल करेंगे।

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