देश में जो भी सरकारें आती हैं वो यही वादा करती हुई आती हैं कि समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम गरीब व्यक्ति को लाभांवित करने के लिए सत्तारुढ़ हो रही हैं और कार्यकाल पूरा करते हुए यह दावा करती चली जाती हैं कि उनकी लोकहिकारी योजनाओं से करोड़ों गरीब परिवार लाभांवित हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। बावजूद इसके आजादी के 70 साल बाद भी जब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बात जनता के सामने रखते हैं तो बताते हैं कि उनकी आयुष्मान भारत बीमा योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से देश के 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को पांच लाख रुपए प्रति परिवार स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य है। मतलब करीब 50 करोड़ लोग इस योजना के दायरे में आ जाएंगे, जिन्हें लाभांवित करने का बीड़ा मोदी सरकार ने बीमा योजना के तहत उठाया है। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि देश की आधी आबादी अभी भी इस कदर गरीबी में जिंदगी बसर करने को मजबूर है जो कि अपना इलाज भी बेहतर तरीके से करवाने में खुद को सक्षम नहीं पाती है। और यही हकीकत भी है, क्योंकि देश में चंद लोग तो तरक्की के पैमाने पर खरे उतरते हैं, लेकिन अधिकांश लोग बेरोजगारी के चलते आज भी बेगारी करने को मजबूर हैं।
वहीं जो लोग अपनी इज्जत और आबरु को ताक पर रख देते हैं वो या तो भीख मांगने लग जाते हैं या फिर गैरकानूनी कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं। इनमें उन भिक्षार्थियों को शामिल नहीं किया जा रहा है जो किसी न किसी तरह से माजूर और विकलांग हैं और भीख मांगने के अलावा जो कुछ और कर ही नहीं सकते हैं। ऐसे लोगों की जिम्मेदारी भी सरकार उठाने में खुद को सक्षम नहीं पाती है, बावजूद इसके दावा यह करती चली आ रही है कि उसने तमाम गरीबों को अमीर बनाने की पहल शुरु कर रखी है। इसलिए यहां समझ में यह नहीं आता कि जो योजनाएं गरीबों की भलाई और गरीबी दूर करने के लिए चलाई जाती हैं और जिनका परिणाम शत-प्रतिशत् बताया जाता है, फिर उनसे लाभांवित आखिर कौन होता है, क्योंकि यहां तो गरीबों की संख्या ज्यों की त्यों बल्कि यह कहा जाए कि लगातार बढ़ती ही चली जा रही तो गलत नहीं होगा। पहले कभी अशिक्षित और अकुशल बेरोजगारों की संख्या बहुतायत में हुआ करती थी तो समझ में आता था कि जिसने शिक्षा ही नहीं ग्रहण की और जो कोई काम करना ही नहीं जानता है उसे आखिर नौकरी या कोई किसी काम पर कैसे रख सकता है, लेकिन अब बेरोजगारों की संख्या यदि दिखाई देती है तो उसमें अधिकांश लोग उच्च शिक्षित और कार्य में दक्षता हासिल लोगों की तादाद ज्यादा होती है।
आखिर ऐसे योग्य लोगों को नौकरी या काम के लाले क्योंकर पड़ रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब युवा भारत को चाहिए ही चाहिए। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज का पढ़ा-लिखा युवा जानना चाहता है कि आखिर देश जब तरक्की कर ही रहा है तो देश के योग्य नौजवान को बेरोजगारी की मार क्योंकर झेलनी पड़ रही है और उसे मजबूरी में विदेश पलायन क्योंकर करना पड़ रहा है? इन सवालों के जवाब में सिर्फ यही कहा जाता रहा है कि जिस गति से रोजगार बढ़ता है उसकी चौगुनी गति से जनसंख्या बढ़ती है, इस कारण देश में बेरोजगारी और गरीबी प्रश्रय पाती है। दरअसल यह तो कहने और सुनने की बातें हैं, जबकि असल में जरुरतमंदों तक सरकारी मदद पहुंच ही नहीं पाती है और अधिकांश लाभ बिचौलिए ही उड़ा ले जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने इसका न सिर्फ एहसास किया बल्कि पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कहा भी कि केंद्र जरुरतमंद के लिए 1 रुपये जारी करता है, लेकिन वह जरुरतमंद तक पहुंचते पहुंचते 15 पैसे में तब्दील हो जाता है। मतलब बीच का तंत्र ऐसा है जो जरुरतमंद तक लाभ पहुंचने ही नहीं दे रहा है। इस पर चोट करने की आवश्यकता है, जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है और तरह-तरह की योजनाएं लाकर सरकारें गरीबों का दिल बहलाने की कोशिशों में लगी हुई हैं।
इसी कड़ी में प्रधानमंत्री मोदी जी की झारखंड से शुरु की गई आयुष्मान भारत बीमा योजना को भी रखा जा सकता है। इसके तहत बताया जा रहा है कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के मुताबिक, ग्रामीण इलाके के 8.03 करोड़ और शहरी इलाके के 2.33 करोड़ गरीब परिवारों को लाभांवित किया जाएगा। इसके लिए नेशनल हेल्थ एजेंसी ने नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस के तहत आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना की वेबसाइट और हेल्पलाइन को भी लांच कर दिया गया है। विचार करें कि जिस देश का गरीब बीमारी के समय में इलाज के लिए चार पैसे नहीं जुटा पाता है वो बीमा करवाकर अपने इलाज का इंतजार कैसे कर सकता है। खास बात यह है कि जिसने इलाज के लिए दबाएं खरीद लीं उसके पास दो वक्त के भोजन का इंतजाम करना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जो दवा मर्ज को दूर करने के लिए होती है वह भूखे-पेट मरीज के लिए जहर साबित हो जाती है।
ऐसे न जाने कितने मामले सामने आते हैं जबकि कहा जाता है कि दवा खाने के बाद मरीज की हालत और बिगड़ गई। दरअसल सोचने वाली बात यह है कि गरीब की असली बीमारी उसकी गरीबी ही है, जिसका हल किसी ने ईमानदारी से करने की कोशिश की ही नहीं। इसके पीछे की सोच यही है कि यदि गरीब आत्मनिर्भर हो जाएगा तो नेताओं की कौन सुनेगा और उनके वोट बैंक का क्या होगा। इसलिए सरकार की योजनाएं तो देखने-सुनने और सुनाने के लिए बहुत ही लाभकारी, जनहितकारी और लोकलुभावन वाली होती हैं, लेकिन उनका लाभ जरुरतमंद तक नहीं ही पहुंचता है, जिसका जीता जागता उदाहरण देश के वो 50 करोड़ लोग हैं जिन्हें सामने रखते हुए मोदी सरकार ने यह आयुष्मान योजना शुरु की है।