गरीबों के ‘सपनों’ को बुलडोजर से मत उजाड़िए साहब! बड़ी मेहनत पर बनते हैं आशियाने

नई दिल्ली। शहरों की स्लम नीति पर जब भी तथ्य व विवेक आधारित अध्ययन हुए हैं, उन्होंने प्रायः यही संस्तुति की है कि स्लम बस्तियों व झोंपड़ी बस्तियों को उजाड़ा न जाए अपितु यथासंभव उसी स्थान पर विकास कार्य कर यहां रहने की व पर्यावरण की स्थितियों को सुधारा जाए। जल व स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतें पूरा करने के साथ यहां व आसपास के नजदीकी क्षेत्र में हरियाली को भी बढ़ाना चाहिए।

इसी तरह अनौपचारिक व लघु स्तर के रोजगारों पर हुए अध्ययनों ने बताया है कि छोटी दुकानों, ठेलियों, खोकों, रेहड़ियों, टी स्टाल व ढाबों से चलने वाले रोजगारों की रक्षा होनी चाहिए व इस रक्षा के अनुकूल ही नीतियां अपनानी चाहिए। वैसे तो ऐसी नीतियां सामान्यतः सभी समय के लिए होनी चाहिए पर हाल के समय में ऐसी निर्धन वर्ग का साथ देने वाली नीतियों की जरूरत तीन कारणों से और बढ़ गई है।

पहली वजह तो यह है कि कोविड व उससे जुड़े लॉकडाउन के दौर में वैसे ही लोगों की कठिनाईयां बहुत बढ़ गई है। बहुत से लोग बेरोजगार हो गए हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि विमुद्रीकरण जैसी अनेक प्रतिकूल नीतियों के कारण भी बहुत से कमजोर आर्थिक स्थिति के लोगों की कठिनाईयां बढ़ी हैं। तिस पर महंगाई ने व यूक्रेन युद्ध की बाद की स्थितियों ने आम निर्धन मजदूरों व छोटे उद्यमियों की कठिनाईयों को और बढ़ा दिया है।

अतः इस दौर में तो शहरों व कस्बों में आवास या आजीविका के साधनों की तोड़-फोड़ की कार्यवाही नहीं होनी चाहिए। तिस पर भीषण गर्मी के दौर में तो यह और भी अनुचित है। इसके बावजूद ऐसे दौर में ही कुछ समय पहले चंडीगढ़ में एक ही दिन में लगभग 5000 लोगों को बस्ती तोड़ कर बेघर कर दिया गया, जबकि वे लगभग 40 वर्ष पहले बसी बस्ती में रह रहे थे।

इसी समय दिल्ली में भी कई स्थानों पर तोड़-फोड़ की कार्यवाही आरंभ हो गई है। पिछले वर्ष भी गर्मी के दिनों में बहुत बड़ी तोड़फोड़ की कार्यवाही फरीदाबाद में हुई थी। यह समय निर्धन वर्ग व शहरी जरूरतमंदों की मदद का है उनकी कठिनाईयां बढ़ाने का नहीं।

कई तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच में अपनी मेहनत व हुनर के बल पर लोगों ने अपने रोजगार बनाए हुए हैं व अपने सिर पर छत की कोई व्यवस्था की हुई। जो सरकार इससे बेहतर जीवन की व्यवस्था इन मेहनतकशों के लिए नहीं कर सकती है, उसे कोई हक नहीं है कि इतनी कठिनाई से लोगों ने अपने लिए जो व्यवस्था स्वयं बनाई है उसे वह तहस-नहस करे।

अतः जगह-जगह बढ़ रही, अनेक शहरों को त्रस्त कर रही तोड़-फोड़ की कार्यवाहियों पर रोक लगनी चाहिए। हां यदि विशेष परिस्थितिश्सें में किसी अतिक्रमण को हटाना बहुत जरूरी हो जाता है तो इस स्थिति में पहले उचित व न्यायसंगत पुनर्वास की व्यवस्था सभी प्रभावित व्यक्तियों या परिवारों के लिए होनी चाहिए व उसके बाद ही अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही होनी चाहिए।

विभिन्न अध्ययनों में यह सामने आ रहा है कि शहरी बेरोजगारों की समस्या गंभीर हो रही है व विभिन्न शहरों में बेघर लोगों की संख्या बढ़ रही है। अतः जब यह समस्याएं पहले ही गंभीर हो रही हैं तो उनकी गंभीरता को बढ़ाने वाली कार्यवाहियों से सरकार को बचना चाहिए। प्रायः अनेक स्थानों पर देखा गया है कि जिन लोगों की आजीविका को नष्ट करके बेरोजगारी में धकेला जाता है वे कई बार धीरे-धीरे बेघरी की हालत में आ जाते हैं।

दूसरी ओर आवास टूटने से लोग बेघर बनते हैं। जलवायु बदलाव और प्रतिकूल मौसम के इस दौर में दुनिया भर में यह कहा जा रहा है कि बेघर लोगों की समस्याएं विशेष तौर पर अधिक होंगी। इस स्थिति में यदि सरकार लोगों को बेघर बनाने की कार्यवाही करती है तो यह बहुत अनुचित है व इस नीति को बदलना चाहिए।

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