नई दिल्ली। कांग्रेस के बागी नेता सचिन पायलट ने राजस्थान के पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा है कि वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज नहीं हैं। तो फिर सवाल उठता है कि गहलोत से नहीं तो वह किससे नाराज हैं? अपनी अहमियत बताने के लिए उन्हें ये कदम क्यों उठाना पड़ा?
सचिन ने इंडिया टुडे को दिए गए साक्षात्कार में कहा है कि-मैं कोई विषेशाधिकार भी नहीं मांग रहा। हम सभी चाहते हैं कि कांग्रेस ने राजस्थान के चुनाव में जो वादा किया था उसे पूरा करे। हमने वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ अवैध खनन का मुद्दा उठाया था। सत्ता में आने के बाद गहलोत जी ने इस मामले में कुछ नहीं किया। बल्कि वो वसुंधरा के रास्ते पर ही बढ़ रहे हैं। ”
सचिन ने विद्रोह के लिए जो तर्क दिया उससे कितने लोग सहमत होंगे? जिनको राजनीति की समझ नहीं है शायद वह सचिन की बात से सहमत हो जाए लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इससे कतई सहमत नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं- सचिन की समस्या केवल गहलोत को ही लेकर है। उनकी समस्या शायद राहुल गांधी को लेकर ज्यादा है। दरअसल राहुल गांधी का कम्फ़र्ट लेवल या तो अपनी टीम के उन युवा साथियों के साथ है जिनकी कि कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं या फिर उन वरिष्ठ नेताओं से है जो कहीं और नहीं जा सकते।
वह कहते हैं कि हकीकत यह है कि जिन विधायकों का इस समय अशोक गहलोत को समर्थन प्राप्त है उनमें अधिकांश कांग्रेस पार्टी के साथ हैं और जो छोड़कर जा रहे हैं वे सचिन के विधायक हैं। यही स्थिति मध्य प्रदेश में भी थी। जो छोड़कर बीजेपी में गए उनकी गिनती आज भी सिंधिया खेमे के लोगों के रूप में होती है, खालिस बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरह नहीं।
यह सौ फीसदी सच है कि राजस्थान में कांग्रेस आज सत्ता तक पहुंची है तो वह पायलेट की मेहनत का ही नतीजा है। इस बात को कांग्रेस आला हाईकमान से लेकर कार्यकर्ता तक जानते हैं। शायद इसीलिए जब राजस्थान की सत्ता में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही थी तो सचिन मुख्यमंत्री बनने की मांग किए थे। यदि वे मेहनत न किए होते तो शायद ये मांग कर भी न पाते। वो राहुल के कहने पर ही उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने।
जाहिर है जब राहुल के कहने पर सचिन उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तैयार हो गए तो फिर अब ऐसा क्या हो गया कि वह विद्रोह करने पर उतारू हुए ? तो क्या इस बार राहुल ने सचिन को मनाने की कोशिश नहीं की? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब बाकी है। दरअसल सचिन का यह कदम कांग्रेस के कमजोर प्रतिनिधित्व का नतीजा है। सचिन का यह कदम कमजोर कांग्रेस के खिलाफ है जहां कोई सुनवाई नहीं होती। शायद सचिन का यह विद्रोह अपनी आवाज हाईकमान तक पहुंचाने के लिए था।
कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। कांग्रेस में नए लोग आ नहीं रहे हैं और जो जा रहे हैं उनके लिए शोक की कोई बैठकें नहीं आयोजित हो रही हैं। सवाल यह भी है कि कांग्रेस पार्टी को अगर ऐसे ही चलना है तो फिर राहुल गांधी किसकी ताकत के बल पर नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देना चाह रहे हैं? वह अगर बीजेपी पर देश में प्रजातंत्र को ख़त्म करने का आरोप लगाते हैं तो उन्हें इस बात का दोष भी अपने सिर पर ढोना पड़ेगा कि अब जिन गिने-चुने राज्यों में कांग्रेस की जो सरकारें बची हैं वह उन्हें भी हाथों से फिसलने दे रहे हैं।
कर्नाटक, गोवा, मध्य प्रदेश और अब राजस्थान संकट में है। महाराष्ट्र को फिलहाल कोरोना बचाए हुए है। छत्तीसगढ़ सरकार को गिराने का काम जोरों पर है। संकट राजस्थान का हो या मध्य प्रदेश का, यह सब बाहर से पारदर्शी दिखने वाली पर अंदर से पूरी तरह साउंड-प्रूफ उस दीवार की उपज है जो गांधी परिवार और असंतुष्ट युवा नेताओं के बीच तैनात है। इस राजनीतिक भूकम्प-रोधी दीवार को भेदकर पार्टी का कोई बड़ा से बड़ा संकट और ऊंची से ऊंची आवाज भी पार नहीं कर पाती है। शायद इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिंया और पायलेट जैसे नेता कही और अपना भविष्य तलाशने को विवश हो रहे हैं।