गुरु की थाती को 25 वर्ष तक सहेजते रहे स्वामी भवानीनंदन, बढ़ती रही ख्याति

गाजीपुर। जनपद के जखनियां तहसील में बेसो नदी के तट पर स्थित ​हथियाराम मठ के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था के साथ ख्याति बढ़ती जा रही है। इस मठ के वर्तमान पीठाधीश्वर व महामण्डलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति जी निरंतर धार्मिक अनुष्ठानों के साथ सामाजिक कार्य, धर्म प्रचार, राष्ट्रधर्म के निमित्त कार्यो में जुटे रहते हैं। इनके पीठाधीश्वर पद पर आसीन होने के 25 वर्ष होने पर ‘महामंडलेश्वर रजत जयंती समारोह’ मनायी जा रही है।
आजीवन रहना होता है ‘ब्रह्मचर्य’ 
हथियाराम मठ करीब 700 वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ है। इस पीठ पर आसीन संत ‘यति सन्यासी’ कहे जाते हैं। यहां की गद्दी पर आसीन होने वाले पीठाधीश्वर को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन व निरंतर 12 वर्ष तक फलाहार का सेवन करना पड़ता है। इसके साथ ही दैनिक हरिहरात्मक पूजन व धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही सामाजिक शैक्षणिक जिम्मेदारी का पालन करना होता है।
इस गद्दी की परंपरा दत्तात्रेय, शुकदेव तथा शंकराचार्य से प्रारंभ होती है। यह देश की प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है। इस मठ की शाखाएं देश के कोने-कोने में फैली हुई है, जिसके वर्तमान में लाखों शिष्य हैं।
श्री सिंह श्याम यति से प्रारम्भ हुई पीठ की संत परंपरा 
मठ का प्रमाण सामान्य जनश्रुति, प्राचीन हस्तलिपि, लिखित पुस्तक तथा भारतीय इतिहास में मिलता है। श्री सिंह श्याम यति से इस पीठ की संत परंपरा प्रारंभ हुई। जनश्रुतिओं के अनुसार लगभग 700 वर्ष पूर्व संत मुरारनाथ जी ने वटवृक्ष रोपण कर सिद्धपीठ की स्थापना की।
हाथियों के झुण्ड में गायब होते थे संत
बेसो नदी के तट पर स्थित घने जंगलों के मध्य जहां हाथियों के झुंड विचरण किया करते थे। मान्यता है कि एक विशालकाय शरीर वाले संत अचानक से हाथियों के झुंड में गायब हो जाते थे, जिन्हें बाद में हाथी वाला बाबा कहा जाने लगा और धीरे-धीरे यह क्षेत्र हथियाराम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
26वें पीठाधीश्वर हैं महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति 
इस पीठ पर महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति 26वें पीठाधीश्वर के रूप में नेतृत्व कर रहे हैं। ये सिद्धपीठ हथियाराम की गद्दी पर फाल्गुन शुक्ल पंचमी तद्नुसार 23 फरवरी 1996 को 25 वें पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति महाराज द्वारा चयनित किये गए। जिन्हें बाद में जूना अखाड़ा ने महामण्डलेश्वर की उपाधि प्रदान की।
व्याकरणाचार्य की उपाधि से विभूषित 
 श्री यति जी का जन्म उत्तराखंड की देवभूमि है। किंतु पूर्व आश्रम में आपने वेद और व्याकरण की शिक्षा गुरुकुल पद्धति से काशी में रहकर प्राप्त की। जहां अध्ययन कॉल में अपने विद्वता के दम पर व्याकरणाचार्य की उपाधि से विभूषित किये गए। अपने चरित्र अनुशासन व कर्तव्यनिष्ठ दिनचर्या के चलते इन्हें छात्र जीवन से हथियाराम मठ के तत्कालीन महन्थ व जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी का सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
 श्री यति जी महाराज सनातन धर्म की ध्वजा लेकर धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा देश के कोने-कोने में भटके हुए लोगों को मानवता की राह दिखाते रहते हैं। ये सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर पद की बागडोर संभाले और लगातार 12 वर्षों तक द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान किये।
कठिन तपस्या के बाद बने महामण्डलेश्वर
सिद्धपीठ कि कठिन आचार संहिता के तहत निरंतर 12 वर्ष फलाहार व्रत का पालन, चातुर्मास महायज्ञ, शारदीय व वासन्तिक नवरात्रि, महाशिवरात्रि पूजन, रामहित धर्म यात्रा के साथ ही सामाजिक गतिविधियों में अग्रणी भूमिका के चलते इन्हें प्रयागराज में अर्धकुंभ के दौरान प्राचीन सरस्वती घाट पर 4 जनवरी 2007 को जूना अखाड़े द्वारा महामंडलेश्वर चुना गया।
देशभर में है हथियाराम मठ की शाखाएं 
हथियाराम मठ की शाखाएं देशभर में फैली हुई है। हरिद्वार के ज्वालापुर में शंकर आश्रम, इंदौर में विश्वनाथ धाम, हल्द्वानी में महालक्ष्मी अष्टादास का विख्यात मंदिर, वाराणसी में चार, बलिया, मऊ के साथ ही हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार आदि प्रांतों के साथ ही विदेशों में भी बड़ी संख्या में शिष्य है।
 धर्माथ संदेश को लेकर रामहित धर्मयात्रा के साथ ही नवरात्रि महोत्सव, शिवरात्रि महोत्सव तथा चातुर्मास महायज्ञ व नित्य हरिहरात्मक पूजन सिद्धपीठ को विशेष बनाते हैं।
वाराणसी में शुरू करायी गंगा आरती
काशी के प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर “गंगोत्री सेवा समिति” की स्थापना कर गंगा आरती शुरु करायी। इस समिति के श्री यति जी महाराज संस्थापक संरक्षक रहे।
सैकड़ों विद्यालयों की रखी आधारशिला  
पूर्वांचल में जहां भी इनके नाम से शिलापट्ट हैं, इनके सामाजिक दायित्व का प्रमाण देते  हैं। ये 25 वर्ष के कार्यकाल में कई धार्मिक व सामाजिक कार्यों व सिद्धपीठ के अधिष्ठात्री देवी वृद्धाम्बिका देवी “बुढ़िया माई”, सिद्धेश्वर महादेव व लक्ष्मी नारायण भगवान के आशीर्वाद से सिद्धपीठ का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पर प्याऊ की स्थापना, नागेश्वर के लुडाई माता मंदिर में धर्मशाला निर्माण, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थल पर धर्मशाला निर्माण, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग आश्रम मार्ग का निर्माण, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थल पर शंकराचार्य आश्रम में भोजन कक्ष निर्माण के साथ ही ओमकारेश्वर, केदारनाथ, बैद्यनाथ धाम, महाकालेश्वर, सोमनाथ, बाबा विश्वनाथ, मल्लिकार्जुन, घृष्णेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के साथ ही परली वैद्यनाथ, पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल में चतुर्मास महायज्ञ के साथ ही तमाम धार्मिक अनुष्ठान व सामाजिक लोककल्याण की गतिविधियों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। इनके द्वारा प्रायः सभी ज्योतिर्लिंगों पर रचनात्मक कार्य किए गए।
हथियाराम मठ द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाएं
काशी में विश्वनाथ गुरुकुल संस्थान कर्णघण्टा, विश्वनाथ गुरुकुल शिक्षण संस्थान, महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय हथियाराम मठ, गुरुकुल विद्यालय हथियाराम तथा विश्वनाथ शिक्षण संस्थान इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थापित है।
 जबकि इसके इतर गाजीपुर जनपद के वृंदावन हुरमुजपुर, तिरछी दुल्लहपुर, गोडीहरा बुढ़ानपुर, बघरा आजमगढ़, जमीरपुर आजमगढ़ सहित मऊ बलिया के विभिन्न जनपदों में शिष्यों द्वारा सिद्धपीठ के संत महात्माओं के नाम से विद्यालय स्थापित किए गए हैं।
राजनीति नहीं, सनातन धर्म के लिए है सिद्धपीठ
सिद्धपीठ हथियाराम मठ के वर्तमान पीठाधीश्वर व महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज पर 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए कई बार ​आग्रह किया गया।
 भाजपा नेतृत्व चाहता था कि श्री यति जी गाजीपुर लोकसभा से चुनाव लड़ें। ऐसे में इस कार्य के लिए उन्हें राजी करने के निमित्त राजनैतिक सामाजिक क्षेत्र के दिग्गजों के साथ ही भाजपा के अनुषांगिक संगठनों से जुड़े संत महात्माओं द्वारा भी काफी प्रयास किए गए। लेकिन बड़ी अडिगता के साथ श्री भवानीनंदन यति जी महाराज ने कहा ‘राजनीति हमारा धर्म नहीं है। सिद्धपीठ हमें वैदिक सनातन धर्म के पालन का संदेश देता है जिसका निर्वहन करना ही हमारा दायित्व है।
 हालांकि उनके इस निर्णय से भाजपा के कुछ दिग्गज उनसे असंतुष्ट हुए लेकिन उन्होंने सिद्धपीठ की महत्ता को बरकरार रखते हुए चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया।

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