लखनऊ। प्रदेश की योगी सरकार ने इस साल सबसे ज्यादा 139 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए के तहत कार्रवाई की है। एनएसए के तहत की गई कार्रवाई में ख़ास बात ये है कि इनमें से आधे से ज्यादा मामले गोहत्या से संबंधित है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले बरेली परिक्षेत्र में आए हैं।
प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि साल 2020 अगस्त तक यूपी पुलिस ने 139 लोगों पर एनएसए के तहत कार्रवाई की है। इसमें गोहत्या के सबसे ज्यादा 76 मामले शामिल है। बरेली जोन करीब 44 लोगों पर एनएसए के तहत मामले दर्ज किये गये हैं।
बरेली ज़ोन में दर्ज किये गये मामलों में 37 लोगों पर जघन्य अपराधों के लिए जबकि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामलों में अब तक छह लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया गया है। साल की शुरुआत में ही एक दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां नागरिक संशोधन विधेयक यानी सीएए के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों से जुड़ी हुई हैं जिनमें गोरखपुर के डॉक्टर कफ़ील ख़ान का मामला भी शामिल है।
एनएसए के तहत कार्रवाई उस समय की जाती है जब प्रशासन को लगता है कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था के लिए ख़तरा बन सकता हैं। इस कानून के तहत व्यक्ति को बारह महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। लेकिन तीन महीने से अधिक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंज़ूरी लेनी जरुरी होती है।
पत्रकारों से बातचीत में अवनीश अवस्थी बताते हैं कि, ‘गोहत्या एक बेहद संवेदनशील मामला है। इसकी वजह से कई समस्याएं खड़ी होती हैं। इसलिए सरकार बहुत ही सख़्त क़दम उठा रही है। साथ ही क़ानून को और सख़्त कर रही है और ऐसे मामलों में सख़्त कार्रवाई भी की गई है। आज कहीं भी दंगे नहीं हो रहे हैं। ये सब उसी का नतीजा है।’
अवनीश अवस्थी के अनुसार सीएम योगी ने साफ़ निर्देश दिए हैं कि उन आपराधिक मामलों में एनएसए लगाया जाए, जिनसे सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इससे अपराधियों के मन में भय पैदा होगा और आम आदमी को ख़ुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करेगा।
गोकशी के मामलों में एनएसए के अलावा इस साल अब तक उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत भी 1700 से अधिक मामले दर्ज किए गये हैं। जबकि करीब चार हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।
गोकशी के मामलों में सरकार द्वारा दिखाई गई तत्परता को लेकर अक्सर कई बार सवाल खड़े किये गये हैं। इस मामलें में एनएसए लगाने को लेकर कई जानकारों का कहना है कि गोकशी एक ऐसा मामला है जो कई बार साम्प्रदायिक दंगों का रूप ले लेता है। इसीलिए ऐसे मामलों में एनएसए एक मजबूत आधार बनता है।
इस मामलें में यूपी में पूर्व डीजीपी रह चुके डॉक्टर वीएन राय का कहना है कि, गोकशी की वजह से कई बार सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, जिससे शांति-व्यवस्था भंग होती है, इसलिए एनएसए की कार्रवाई कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। लेकिन इसका इतना प्रचार-प्रसार करना भी ठीक नहीं है।’
उनका कहना है कि, ‘किसी के घर पर गोमांस या कोई मांस पाया गया तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करना जरुरी है लेकिन उसका विरोध करके जो लोग दंगा भड़काने की कोशिश करते हैं, उन पर भी एनएसए लगना चाहिए। लेकिन मुझे इस बात की जानकारी नहीं की ऐसे लोगों पर एनएसए लगा है। तो इस स्थिति में सरकार की नीयत पर सवाल उठता है। ऐसे मामलों में ज़्यादातर धार्मिक आधार पर ही कार्रवाइयां हुई हैं।’
वहीं बरेली परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक राजेश कुमार पांडेय का कहना है कि गोकशी के मामलों में एनएसए लगाने की कार्रवाई कोई पहली बार नहीं हो रही है। इससे पहले भी कई बार कार्रवाई हुई है। जब मैं अलीगढ़ में एसएसपी था, तब दो बड़ी घटनाएं हुईं। क़ानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी कि अभियुक्तों पर एनएसए लगाना पड़ा।
पाण्डेय कहते हैं कि इस तरह की घटनाएं क़ानून व्यवस्था के लिए कई बार बड़ा ख़तरा बनी हैं। इऩकी वजह से पथराव आगजनी हुई है, थाना घेरा गया है, पुलिस पर आरोप लगे हैं। और हां, एनएसए की कार्रवाई प्रशासन ने की है तो उसे एडवाइजरी बोर्ड ने भी कंफ़र्म किया है।’
प्रदेश के बिजनौर जिले में भी पुलिस ने अगस्त के अंत तक 11 लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया है और इन सभी लोग गोकशी के मामले में ही गिरफ़्तार किया गया। अफ़ज़लगढ़ थाने के आसफ़ाबाद चमन गांव में एक ही परिवार के छह लोगों को इस मामले में चार महीने पहले गिरफ़्तार किया गया था जिनमें दो लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए के तहत कार्रवाई की गई है।