लखनऊ। देश आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है। 16 अगस्त को देश के पूर्व पीएम भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि है। दो साल पहले 16 अगस्त 2018 को उनका देहांत हुआ था।
अटल बिहारी वाजपेयी की गिनती उन चंद नेताओं में होती थी जो कभी दलगत राजनीति के बंधन में नहीं बंधे। हमेशा उन्हें सभी पार्टियों का भूरपूर स्नेह और प्यार मिला। देश के तमाम नेता उन्हें आज याद कर रहे हैं।
तीन बार बने प्रधानमंत्री
ये बात साल 1996 की है, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेने के महज 13 दिनों बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। फिर वह 1998 में दोबारा प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए। कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं हुआ तो तीसरी बार 1999 में फिर से अटल जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 2004 तक प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने पांच साल तक का कार्यकाल पूरा किया। संसदीय चुनाव की बात करें तो वायपेयी जी को लखनऊ की जनता ने 5 बार लोकसभा में सांसद बनाकर भेजा। साल 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में वह लखनऊ से लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए।
बहुमुखी प्रतिभा से धनी थे वाजपेयी
बहुमुखी प्रतिभा के धनी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं लोगों के दिलों को जितना करीब से छूती थी, उतनी ही गहराई से उनका भाषण भी लोगों के दिलों में दाखिल होता था। कहा जाता है कि उनका ओजस्वी भाषण हर किसी का दिल जीत लेता था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देने वाले पहले विदेश मंत्री
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने बतौर विदेश मंत्री हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) में सभी का दिल अपने ओजस्वी भाषण से जीत लिया था। ये बात 4 अक्टूबर 1977 की है, जब उन्होंने हिंदी में यूएन के बीच अपना भाषण दिया था। पूरी महासभा उनके भाषण के बाद तालियों से गूंज उठी थी।
कविता और राजनीति के सहारे सादगी से गुजरा जीवन
अटल बिहारी वाजपेयी मूल रुप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे, बटेश्वर उनका मूल गांव था लेकिन उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। पिता श्री कृष्ण वाजपेयी स्कूल मास्टर और कवि थे। पिता से ही उन्हें कविता की चाहत मिली और लेखनी शुरू की। अटल जी भी अपने पिता के भांति ही कवि बने। अगर पूरा जीवन देखें तो अटल जी का जीवन बेहद सादगी से भरा हुआ था। राजनीति के दलदल में जाकर भी उनका चरित्र सदैव उज्जवल रहा और कविता ने उनकी लोगों को उनसे बांधे रखा।