योगेश कुमार गोयल
पिछले चार महीने से पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर जारी तनाव को कम करने के लिए मास्को में भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बनी पांच सूत्रीय सहमति के बाद कहा जा रहा है कि यदि तय बिन्दुओं के अनुरूप वार्ता आगे बढ़ती है तो इसके सार्थक परिणाम हो सकते हैं। अब दोनों सेनाओं के लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता की ओर सभी की नजरें केन्द्रित हैं लेकिन परेशानी यह है कि दोनों देशों के बीच कॉर्प कमांडर स्तर की वार्ताओं के पहले भी कई दौर हो चुके हैं।
चीन हर बार तनाव घटाने के लिए तय किए जाने वाले कई मुद्दों पर सहमति प्रकट करता रहा है लेकिन जब उसपर अमल की बात आती है तो वह सारा ठीकरा भारतीय सेना पर फोड़कर मुकर जाता है। हालांकि अब वार्ताओं के इन दौर के बीच चीन को भारत की ओर से स्पष्ट संकेत दिए जा चुके हैं कि चीनी सेनाओं द्वारा पीछे हटने की स्थिति में ही भारत पीछे हटने पर विचार करेगा। हाल ही में अमेरिकी अखबार न्यूजवीक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारतीय सैनिक निर्भीकता से नएपन का प्रदर्शन कर रहे हैं।
दरअसल हाल के दिनों में जिस प्रकार हमारे जांबाज सैनिकों द्वारा ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा किया गया है, उससे चीनी सेना पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा है। उसके पास पीछे हटने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है लेकिन उसकी फितरत हमेशा धोखे और वादाखिलाफी की रही है, इसीलिए भारत द्वारा एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखना बेहद जरूरी है।
चीनी सेना (पीएलए) पूर्वी लद्दाख में कायम गतिरोध पर सैन्य और राजनयिक वार्ता के जरिये बनी आम सहमति का बार-बार उल्लंघन करती रही है। घुसपैठ की कोशिशों के बीच चीन ने सीमा के आसपास अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ाया है और तमाम हथियार तैनात किए हैं। टकराव की आड़ में ड्रैगन एलएसी के करीब अपनी सैन्य तैयारियां बढ़ा रहा है और इसीलिए भारत द्वारा भी अब अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक पूरे इलाके में एलएसी पर सेना को हाई अलर्ट मोड पर रखा गया है।
वायुसेना द्वारा रात के समय भी गश्त बढ़ाकर पहले ही ड्रैगन को संदेश दिया जा चुका है कि वह पर्वतीय इलाकों में उसके किसी भी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। अपाचे और चिनूक जैसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर एलएसी के आसपास कड़ी निगरानी कर रहे हैं। सुखोई, जगुआर तथा मिराज जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान पहले से ही लद्दाख इलाके में तैनात हैं। इनके अलावा मिग-29के की स्क्वाड्रन भी वहां तैनात की जा चुकी है।
जमीनी और हवाई मोर्चे के अलावा भारत अब समुद्र में भी ड्रैगन की घेराबंदी करने में जुट गया है। उसे उसी की भाषा में जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना द्वारा बेहद गोपनीय तरीके से दक्षिण चीन सागर में अग्रिम मोर्चे के अपने युद्धपोत की तैनाती कर दी गई है। कुछ अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों और सैन्य विशेषज्ञों के मुताबिक युद्ध की स्थिति में भारत उत्तरी सीमाओं पर ड्रैगन पर भारी पड़ सकता है। दोनों देश आज जल, थल और नभ से परमाणु हमला करने में सक्षम हैं।
भारतीय नौसेना में 2013 में शामिल किए गए लगभग तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर लंबे तथा करीब 22 मंजिली इमारत जितने ऊंचे आईएनएस विक्रमादित्य युद्धपोत पर तैनात कामोव-31, कामोव-28, हेलीकॉप्टर, मिग-29-के लड़ाकू विमान, ध्रुव, चेतक हेलीकॉप्टरों सहित तीस विमान और एंटी मिसाइल प्रणालियों के चलते इसके एक हजार किलोमीटर के दायरे में दुश्मन के लड़ाकू विमान और युद्धपोत फटक भी नहीं सकते। 32 नॉट (59 किलोमीटर प्रतिघंटा) की रफ्तार से गश्त करने वाला यह युद्धपोत लगातार सौ दिनों तक समुद्र में रह सकता है।
इसके अलावा 2012 में रूस से करीब एक अरब डॉलर के सौदे पर दस वर्ष के लिए लीज पर ली गई भारतीय नौसेना की नाभिकीय ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी आईएनएस चक्र-2 परमाणु हमला करने में सक्षम है। समुद्र में इसकी रफ्तार 43 किलोमीटर प्रतिघंटा है और पानी के अंदर 600 मीटर गहराई तक लगातार तीन महीने तक रह सकने वाली यह पनडुब्बी पलक झपकते चीन और पाकिस्तान पर परमाणु हमला कर सकती है।
ग्लोबल फायरपावर के अनुसार दुनिया की शक्तिशाली वायुसेना के मामले में चीन तीसरे और भारत चौथे स्थान पर है। चीन के पास भारत के मुकाबले में दो गुना लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान हैं, भारत से दस गुना ज्यादा रॉकेट प्रोजेक्टर हैं लेकिन चीनी वायुसेना भारत के मुकाबले मजबूत दिखने के बावजूद भारत का पलड़ा उस पर भारी है। दरअसल भारतीय लड़ाकू विमान चीन के मुकाबले ज्यादा प्रभावी हैं।
पिछले कुछ दशकों में भारत ने चीन से लगी सीमा पर कई हवाई पट्टियों का निर्माण किया है, जहां से हमारे फाइटर जेट आसानी से उड़ान भर सकते हैं। हालांकि चीनी वायुसेना भी भारत से लगे सीमा क्षेत्र में आठ ठिकानों का उपयोग करती है लेकिन इनमें से अधिकांश नागरिक हवाई क्षेत्र हैं, जहां से चीन को हमला करने में परेशानी हो सकती है। भारत के राफेल, मिराज-2000 और एसयू-30 जैसे जेट विमान किसी भी मौसम में और कैसी भी परिस्थितियों में उड़ान भर सकते हैं जबकि चीन के जेट विमानों जे-11 और एसयू-27 में इतनी ताकत नहीं है।
चीन के पास एस-300 जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें हैं, वहीं भारत के पास ब्रह्मोस के अलावा कई दूसरी घातक मिसाइलें हैं। इसके अलावा भारत के पास दस सी-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट हैं, जो एक बार में 4200 से 9000 किलोमीटर की दूरी तक 40-70 टन के पेलोड ले जाने में सक्षम हैं।
बेलफर सेंटर के अध्ययन के अनुसार चीन ने भारत से लगी सीमा पर जे-10, जे-11 और एसयू-27 लड़ाकू विमानों को तैनात किया है लेकिन भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 और सुखोई एसयू-30 लड़ाकू विमानों को इन पर बढ़त हासिल है। मिराज-2000 और एसयू-30 ऑल-वेदर मल्टीरोल विमान हैं जबकि चीन का केवल जे-10 ही ऐसी योग्यता रखता है।
मिराज-2000, मिग-29, सी-17 ग्लोबमास्टर मालवाहक विमान, सी-130जे सुपर हरक्यूलिस मालवाहक विमान के अलावा सुखोई-30 जैसे लड़ाकू विमान करीब पौने चार घंटे तक हवा में रहने और तीन हजार किलोमीटर दूर तक मार करने में सक्षम हैं। इनके अलावा चिनूक और अपाचे जैसे अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर भी चीन से जंग में उस पर भारी पड़ेंगे। भारत की शक्तिशाली मिसाइल ब्रह्मोस भी युद्ध का नक्शा बदलने में मददगार हो सकती है, जिसकी रफ्तार 952 मीटर प्रति सैकेंड है और दुश्मन के रडार भी इसके सामने फेल हो जाते हैं।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक यदि 30 किलोमीटर के दायरे में दुश्मन के रडार इसका पता लगा भी लें, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि 30 सैकेंड से कम समय में इसे रोक पाना असंभव हो जाता है। आज का भारत इतना ताकतवर हो चुका है कि चीन को इसके साथ सीधी जंग का फैसला करने से पहले सौ बार सोचने पर विवश होना पड़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)