वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद होने के बाद देशभर में गुस्से का माहौल है। हमेशा की ही तरह एकबार फिर से चीन को सबक सिखाने के लिए वहां के प्रोडक्ट्स के बायकाट करने की मांग तेज हो गई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब चीनी प्रोडक्ट्स के खिलाफ इस तरह की बात कही जा रही हो बल्कि ये अब एक आम चलन सा बन गया है।
हम लम्बे समय से इस तरह के अभियान को चला रहे हैं लेकिन सच्चाई तो ये है कि न तो भारत में चीनी प्रोडक्ट्स बैन हुए न ही इनकी बिक्री कम हुई। हालांकि थोड़ा बहुत नुकसान चाइना को हुआ जरुर है लेकिन यह न के बराबर है। तो ऐसा क्यों है और इसका रास्ता क्या हो सकता है उसके लिए हमें कुछ बातों को समझना आवश्यक है।
हम आपको बता दें कि जो लोग चीन के उत्पादों के बहिष्कार की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोगों के मुंह में कोरोना महामारी के चलते जो मास्क लगा हुआ है वो भी चीनी ही है। सच तो यह है कि हमारे बच्चों के खिलौनों से लेकर घर में इस्तेमाल होने वाले सामनों तक सभी में चीनी प्रोडक्ट्स ही शामिल हैं।
फार्मा कंपनी हो या फिर आपकी गाड़ी का इंजन या फिर मोबाइल फोन और तो और मनोरंज के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एप इन सबके लिए हम चाइना पर ही निर्भर हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है।
इसकी हालिया रिपोर्ट में जानकारी सामने आई है कि भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं जिसकी क़ीमत एक अरब डॉलर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तकनीकी क्षेत्र में निवेश की प्रकृति के कारण चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है।
इतना ही नहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि, भारत की दवा बनाने वाली कंपनियां क़रीब 70 फ़ीसदी एपीआई चीन से आयात करती हैं। वहीं टेलिविजन कारोबार पर चीन का 45% कब्जा है। देश में सौर ऊर्जा का मार्केट साइज 37,916 मेगावाट का है, जिसमें चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 90% है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत चीनी कच्चे माल को प्राथमिकता देता है क्योंकि यह बहुत सस्ता है और सामग्री वहां आसानी से उपलब्ध है। इसके आलावा उत्पादन के वास्ते न तो हमारे पास फैक्टरियां तैयार हैं, न कुशल-अकुशल लेबर।
इस सबके बावजूद अगर हम फिर भी चीन के प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करना चाहे तो भी ये हमें ही करना होगा क्योंकि हमारी सरकार चीन के आयात पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। दरअसल डब्ल्यूटीओ नियमों के कारण अब किसी देश से आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है चाहे उस देश के साथ हमारे राजनयिक, क्षेत्रीय या सैन्य समस्याएं क्यों न हो।
इतना ही नहीं यह भी समझना जरुरी है कि, भारत अपने कुल निर्यात का 8% चीन को भेजता है जबकि चीन अपने कुल निर्यात का केवल 2% भारत को भेजता है। इस प्रकार यदि भारत चीन के उत्पादों को बंद करता है तो चीन भी ऐसा ही करेगा जिससे ज्यादा नुकसान चीन का ना होकर भारत का होगा। लेकिन एक तरीका है जिससे चीन को सबका सिखाया जा सकता है।
चीन के उत्पादों को भारत में घुसने से भारत सरकार तो नही रोक सकती लेकिन हम भारतीय खुद से इन प्रोडक्ट्स का बहिष्कार कर अपने दुश्मन को हरा सकते हैं। बता दें कि भारत सरकार भी अगर चाहे तो एंटी डंपिंग ड्यूटी लगा कर चीन की कंपनियों की कमर तोड़ सकती है। एंटी डंपिंग ड्यूटी एक प्रकार का शुल्क है इसे लगाने से चीनी प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ जाएगी और भारतीय कम्पनी उनसे मुकाबला कर सकेंगी।