लखनऊ। चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं मायावती को इस चुनाव में लोग ढूंढ रहे हैं। चुनाव से चंद दिनों पहले मायावती पूरी तरह से खामोश हैं। जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव विजय यात्रा रथ निकाल रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी महिलाओं के बीच जनाधार मजबूत कर रही हैं। प्रचार के लिए भाजपा ने पूरी हाईकमान को यूपी में उतार दिया है। सिर्फ बसपा प्रमुख चुनाव में सक्रिय नहीं हैं।
आइए आपको बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो ने पिछले 90 दिन में कहां और क्या किया..
23 दिसंबर: अयोध्या जमीन घोटाले की जांच की मांग के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
6 दिसंबर: बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
30 नवंबर: पार्टी कार्यालय में चुनाव पर पदाधिकारियों के साथ बैठक की।
26 नवंबर: बसपा ने भी संविधान दिवस के कार्यक्रम का बहिष्कार किया।
24 नवंबर: पार्टी ने पिछले कार्यकाल में किए विकास कार्यों का फोल्डर जारी किया।
23 नवंबर: चुनाव बैठक की। कार्यकर्ताओं को जुटने का संदेश दिया।
19 नवंबर: कृषि कानून वापस लेने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
9 नवंबर: बीजेपी के चुनावों वादों पर घेराबंदी करने के लिए बैठक की।
9 अक्टूबर: काशीराम की पुण्यतिथि पर प्रेस कॉन्फ्रेंस और जनसभा की।
ट्विटर के जरिए ये मुद्दे उठाए:
- कृषि कानूनों के असर का आकलन होना चाहिए था। किसानों की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाना चाहिए।
- महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में कांग्रेस की तरह भाजपा भी गंभीर नहीं है। लोकसभा व विधानसभाओं में उनके लिए 33% आरक्षण का मामला लंबित पड़ा है।
- नोएडा से बलिया तक 8-लेन के गंगा एक्सप्रेस-वे के जरिए दिल्ली को पूर्वांचल से सीधे जोड़ने की पैरवी बसपा कर रही थी।
अमित शाह ने चैलेंज दिया…बाहर निकलिए
मायावती की चुनावी साइलेंस पर अमित शाह ने भी चुटकी ली। गुरुवार को मुरादाबाद में शाह ने कहा ‘बहनजी की तो अभी ठंड ही नहीं गई है। ये भयभीत हैं। बहनजी, चुनाव आ गए हैं। थोड़ा बाहर निकलिए, बाद में ये न कहिएगा। मैंने प्रचार नहीं किया था।’
काशीराम स्मारक स्थल पर 9 अक्टूबर को परिनिर्वाण दिवस मनाया
बड़ी चुनावी रैलियों के लिए पहचानी जाने वाली मायावती ने 9 अक्टूबर को काशीराम स्मारक स्थल पर परिनिर्वाण दिवस मनाया था। इसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। हालांकि, इसको चुनावी रैली नहीं माना जा सकता है।
वहीं ब्राह्मणों से जोड़ने के लिए मायावती ने पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को जिम्मेदारी दी हुई है। सतीश की पत्नी कल्पना मिश्र का भी ब्राह्मण समाज की महिलाओं को संबोधित करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर डाले जा रहे हैं।
बड़े चेहरे छिटकने से चुनावी मुश्किलें बढ़ी
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती ने 19 सीटें जीती थीं। कोर वोट बैंक ओबीसी के सहारे चुनावों में तेवर दिखाने वाली मायावती के लिए ये चुनाव थोड़ा मुश्किल भी है।
बसपा के कई बड़े चेहरे पार्टी से छिटक चुके हैं। इंद्रजीत सरोज और लालजी वर्मा ने बसपा का साथ छोड़ दिया। वहीं, हाल ही में हरिशंकर तिवारी भी अपने बेटों और भांजे को सपा की साइकिल पर सवार कर चुके हैं।
कहीं साइलेंस की वजह CBI और ईडी जांच तो नहीं
सवाल उठता है कि मायावती चुनाव प्रचार में कहीं सक्रिय क्यों नहीं हैं? कहा जा रहा है कि उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर CBI और ईडी की आय से अधिक संपत्ति के मामलों के कारण वो दबाव में हैं।
2017 में मेरठ, अलीगढ़ से की थी प्रचार की शुरुआत
साल 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए उन्होंने ब्राह्मणों को जोड़ने की कोशिश की। 2017 में दलित-ब्राह्मण एकता के नाम पर सम्मेलन भी करवाए गए। मेरठ के थाना टीपी नगर में वेद व्यासपुरी के सेक्टर दो मैदान और अलीगढ़ के बन्ना देवी इलाके में जीटी रोड के पास प्रदर्शनी स्थल से उन्होंने चुनाव प्रचार की शुरुआत की थी। 22% एससी आबादी उनका कोर वोट है। आरक्षित सीटों पर मायावती हमेशा ही मजबूत रहीं हैं।