लखनऊ। अभी उत्तर प्रदेश में विराट गठबंधन के सहारे सरकार बनाने का दावा करने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अब अकेले पड़ गए हैं। उनके सभी साथी एक-एक कर उनका साथ छोड़ चुके हैं। पहले कई दलों को मिलाकर एक बड़ा गठबंधन बनाने की कवायद शुरू की गई थी। लेकिन अब वह खटाई में पड़ चुका है। मुस्लिम चेहरा के रूप में देश में अपनी अलग पहचान बना चुके ओवैसी को शुरू में राज्य में छोटे दलों का साथ जरूर मिला।
भाजपा से नाराज होकर एनडीए से बाहर होने वाले ओमप्रकाश राजभर ने ओवैसी के साथ एक मोर्चे का ऐलान किया था जिसमें छोटे छोटे दलों को जोड़ा गया था। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में भागीदारी मोर्चा का गठन किया गया था। लेकिन अब ओमप्रकाश राजभर भी समाजवादी पार्टी के साथ जा चुके हैं। जबकि कई और दलों ने अपना रास्ता अलग बना लिया है।
भागीदारी मोर्चा की कहानी
ओवैसी ने भी भागीदारी मोर्चा के तहत 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। इसको लेकर ओवैसी ने यूपी में अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी थी और लगातार भाजपा सरकार पर हमलावर थे। इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी और बसपा पर भी उन्होंने मुस्लिमों को धोखा में रखने का आरोप लगा दिया। लेकिन अब ओवैसी खुद अकेले पड़ गए हैं। जो भागीदारी मोर्चा बना था उसमें मुख्य पार्टी के रूप में ओमप्रकाश राजभर थे जो अब सपा के साथ हो चुके हैं। इसी मोर्चे में कृष्णा पटेल की पार्टी भी थी जो कि अब सपा के साथ हो गई हैं। चंद्रशेखर आजाद और शिवपाल यादव की पार्टी के बीच में गठबंधन की बातचीत चल रही है।
ओवैसी की चिंता
इसके अलावा अन्य छोटे-छोटे दलों ने भी अपना रास्ता ओवैसी से अलग कर लिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या ओवैसी इतनी आसानी से किसी के साथ गठबंधन को तैयार होंगे? क्या ओवैसी के लिए बसपा, सपा या कांग्रेस से गठबंधन करना इतना आसान होगा? वर्तमान परिस्थिति में देखे तो दोनों ही सवालों का जवाब ना है। सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां ओवैसी से गठबंधन करने से बचेगी। ऐसे में ओवैसी का इन पार्टियों के साथ गठबंधन का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। रही बात छोटी पार्टियों की तो उसमें ओवैसी को पहले ही झटका लग चुका है। ऐसे में सवाल यह है कि अब ओवैसी का आगे का प्लान क्या रहने वाला है?
ओवैसी का आगे का प्लान
उत्तर प्रदेश में विधानसभा के 403 सीटें हैं जबकि मुसलमानों का वोट प्रतिशत 18 के आसपास है। यूपी में अब तक ज्यादातर मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी या फिर बहुजन समाज पार्टी को ही मिलती रही है। 2017 में भी ओवैसी विधानसभा चुनाव में उतरे जरूर थे लेकिन उन्हें किसी ने नोटिस तक नहीं किया था। हालांकि, ओवैसी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट से यूपी में बात नहीं बनने वाली है।
यही कारण है कि उन्होंने अन्य दलों को अपने साथ जोड़ा था, लेकिन वह अलग हो चुके हैं। ऐसे में वैसे फिलहाल शिवपाल यादव की पार्टी के संपर्क में हैं। ओवैसी को लगता है कि अगर शिवपाल यादव के बाद समाजवादी पार्टी के साथ नहीं बनती है तो वह उनके साथ आ सकते हैं। इसके अलावा एआईएमआईएम ने कुछ सीटों को चिन्हित करके रखा है जहां वह अपने उम्मीदवार हर हाल में उतारेगी। इसके अलावा ओवैसी की पार्टी ने ऐसे कई नेताओं उसके साथ बातचीत कर रखी है जिन्हें अगर दूसरे दलों से टिकट नहीं दिया जाता है तो एआईएमआईएम टिकट देगी।