बेशक जनसंख्या नियंत्रण भारत की पहली जरूरत और सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए किन्तु सवाल ये भी है की क्या इस विषय पर कोई राष्ट्रीय नीति से काम होगा या सभी राज्य अपनी-अपनी ढपली बजाकर राजनीति करते नजर आएंगे ?आप समझ गए होंगे की मैंने ये बात क्यों की है ? दरअसल देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की सरकार ने अपनी जनसंख्या नीति की घोषणा कर दी है .मै इस पहल का खुले दिल का स्वागत करते हुए फिर मूल सवाल पर आता हूँ कि-क्या जनसंख्या नियंत्रण राज्य की जरूरत है राष्ट्र की जरूरत? इसके लिए नीति कौन बनाएगा ,केंद्र या राज्य ?
जनसंख्या नियंत्रण पर देश में हमेशा से चर्चा भी होती रही है और कोशिशें भी की जाती रहीं हैं किन्तु अभी तक जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. अभी ये काम जनता के स्व-विवेक पर छोड़ा गया है लेकिन जनसंख्या की रफ्तार रुक नहीं रही है और साल-दर-साल स्थिति विस्फोटक होती जा रही है.हमारे तमाम संसाधन जनसंख्या के दबाब में हैं. हम अपनी आबादी की कोई जरूरत पूरी करने में समर्थ नहीं हैं.यहां तक कि सरकारें अपनी आबादी को दो जून की रोटी तक मुहैया करने की स्थिति में नहीं हैं ,आंकड़े भले ही कुछ भी कहते रहे.
भारत में जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती नई नहीं है. इस चुनौती का समान करते हुए हम 130 करोड़ हो चुके हैं और बहुत जल्द इस मामले में दुनिया में अग्रणीय चीन से भी आगे निकल सकते हैं ,यानि अगली जनगणना तक हमारी आबादी १५० करोड़ हो जाये तो किसी को हैरानी नहीं होना चाहिए .आंकड़े बताते हैं कि भारत में तमाम कोशिशोने के बावजूद जनसंख्या की बाढ़ थम नहीं रही . हमारे ही देश में वर्ष 1991, 2001 और 2011 के दशक में प्रति दशक क्रमशः 16.3 , 18.2 व 19.2 करोड़ जनसंख्या और बढ़ी है।इस लिहाज से जनसँख्या नियंत्रण हमारी प्राथमिकता होना चाहिए .
मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रतिस्पर्द्धा अपनी ही पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है .मोदी जनसंख्या नीति की घोषणा कर पाते इससे पहले ही योगी ने अपने सूबे के लिए जनसंख्या नीति की घोषणा कर दी है .राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए इस जनसंख्या नीति से क्या ध्वनित होने लगा है ये आप यूपी की नयी जनसंख्या नीति पढ़कर ही जान सकते हैं .
सवाल ये है कि क्या यूपी की जनसंख्या नीति में जिस तरह से बच्चों की सीमा तय कार सरकारी सुविधाओं में कटौती आदि के प्रावधान किये हैं उन्हें लागू करना आसान होगा ?क्या इस कोशिश को देश में नागरिक स्वतंन्त्रता के सतह ही पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक नहीं माना जाएगा ?
जनसंख्या नियंत्रण संविधान कि समवर्ती सूची में शामिल विषय है या नहीं,इस पर विवाद बाद में होगा,लेकिन अभी तो मुझे लगता है कि यूपी वाले दिल्ली वालों से आगे निकलने की हड़बड़ी में हैं.यदि ऐसा न होता तो यूपी वाले अपनी जनसंख्या नीति घोषित ही न करते .मेरे ख्याल से आज देश में शायद ही ऐसा कोई राज्य हो जो जनसंख्या नियंत्रण के खिलाफ हो फिर इस विषय पर केंद्रीय नीति की प्रतीक्षा किये बिना अपनी नीति जारी कर दी .इस समय यूपी की आबादी 19 करोड़ से ज्यादा है कायदे से तो अब तक इस राज्य के दो-तीन और टुकड़े हो जाना चाहिए था,किन्तु ये आज का विषय नहीं है .
योगी जी अपने राज्य के लिए घोषित जनसंख्या नीति के अनुरूप काम कर पायेंगे इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं हैं ,क्योंकि हाल ही में सबने देखा है कि योगी जी की अगुआई में राज्य में पंचायत चुनाव में जो खून आलूदा विजय प्राप्त की है उसको देखते हुए जन संख्या नियंत्रण के लिए नई नीति को सख्ती से लागू किया जा सकता है.
योगी जी की ही तरह एक जमाने में कांग्रेस के एकमात्र राजकुमार स्वर्गीय संजय गांधी ने कोशिश की थी ,लेकिन वे कामयाब नहीं हुए उलटे ये कोशिश कांग्रेस के गले की हड्डी बन कर रह गयी.कांग्रेस बदनाम हुई सो अलग और सत्ता से दूर रखी गयी सो अलग.जनसंख्या नियंत्रण से पहले ही प्रदेश में जो हालात बने हुए नजर आ रहे है वे अच्छे नहीं हैं .
जनसंख्या नियंत्रण के लिए बेहतर है कि योगी जी अपने सूबे के लिए बनाई गयी अपनी जन संख्या नीति केंद्र सरकार को सौंप दे .केंद्र यदि सचमुच जनसंख्या नियंत्रण के प्रति गंभीर है तो उसे संसद के आने वाले सत्र में ही एक प्रभावी क़ानून बनाकर पेश कर दे .
चीन ने भी जनसंख्या नियंत्रण करके देख लिया लेकिन कोई ख़ास नतीजा सामने नहीं आया . अब एक ही रास्ता हैं कि या तो यूपी अपनी नीति पर सख्ती अमल करे या फिर इस मुद्दे पर केंद्रीय सरकार पर जोर डाला जाए .हमारी मौजूदा सरकार जब जबरन किसानों के हित में तीन कानून बना सकती है तो जनसंख्या नियंत्रण के लिए क़ानून क्यों नहीं बना सकती ?
मेरी स्पष्ट मान्यता है कि जनसंख्या नियंत्रण के बिना हम न विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं और न समृद्धि का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.अपनी आबादी को रोटी,कपड़ा और मकान के साथ ही रोजगार मुहैया करना भी हमारी प्राथमिकता है .सबको शिक्षा ,सबको स्वास्थ्य भी जनसंख्या नियंत्रण के बाद ही मुमिकन है .
हाल की कोविद महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं के माले में हमारी तैयारियों की पोल खोलकर रख दी है .हमारे पास न तो अपनी आबादी के लिए शुद्ध पीने का पानी है और न दो जून रोटी ,ऐसे में अब एक ही विकल्प है जनसंख्या नियंत्रण .शर्त यही है कि सरकार इस मुद्दे पर राजनीति न करे.हिन्दू-मुसलमान न सोचे .
मौजूदा सरकार के पिछले कार्यकाल के निर्णयों को देखे तो पाएंगे कि सबके पीछे राजनीतिक मकसद सबसे आगे था और इसीलिए सारे फैसले न सिर्फ विवादास्पद हुए बल्कि उनके खिलाफ जनता सड़कों पर भी आई .कहने का आशय ये है कि जनसंख्या नियंत्रण के फैसले को राजनीतिक लाभ से एकदम दूर रखा जाये .इस विषय पर जनजागरण के नाम पर हम बहुत समय बर्बाद कर चुके हैं.
जन जागरण के लिए सात दशक कम नहीं होते ,अब भी यदि जनता जाग नहीं रही हैं तो हमें सख्त और अनिवार्य क़ानून बनाकर आगे बढ़ना चाहिए भले ही ऐसा करने के लिए संविधान में संशोधन आवश्यक हो .सौभाग्य से इस समय देश और उत्तर प्रदेश का नेतृत्व उन नेताओं के हाथों में है जिन्होंने देश की जनसँख्या नियंत्रण अपनी भूमिका खुद चुनी है .प्र्धानमंत्री निसंतान हैं और योगी जी बाल ब्रम्हचारी ,इसलिए दोनों यदि प्रतिस्पर्द्धा के बजाय मिल-बैठकर काम करें तो कुछ ठोस नतीजा सामने आ सकता हैं .