‘मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंग्लिशतानी सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’, इस गाने को सुनते ही हमारे ज़हन में चार्ली चैपलिन जैसी मासूम अदाओं वाले हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन नीली नीली आंखों वाले अभिनेता राज कपूर की यादें ताज़ा हो जातीं हैं। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी एक से बढ़कर एक नायाब फ़िल्मों के ज़रिये वह आज भी हम सब के बीच मौजूद हैं।
राज कपूर ने अपनी शुरूआती फ़िल्मों से लेकर अपने डायरेक्शन में बनने वाली फ़िल्मों में सामजिक ताने बाने के साथ लव स्टोरीज़ को इतनी ख़ूबसूरती के साथ बड़े परदे पर पेश किया कि उन्होंने आगे आने वाले फ़िल्म डायरेक्टर्स के लिए एक रास्ता तैयार कर दिया, जिस पर उनके बाद आए कई फ़िल्ममेकर्स चले।
वह हिंदुस्तान में अपने दौर के सबसे बड़े शोमैन थे। राजकपूर को हिंदुस्तानी ऑडीयंस के अलावा रूस की जनता ने भी काफ़ी पसंद किया। उनकी फ़िल्में रूस में भी बहुत पसंद की जातीं थीं। राज कपूर की फ़िल्मों की कहानियां आमतौर पर आम आदमी की ज़िंदगी की कहानी होती थीं और अपनी ज़्यादातर फ़िल्मों में वह ख़ुद ही लीड रोल में होते थे।
राज कपूर की पैदाइश 14 दिसंबर 1924 को पेशावर में हुई थी। वह एक पठानी हिन्दू परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके बचपन का नाम रणबीर राज कपूर था। उनके वालिद पृथ्वीराज कपूर एक नामी थिएटर आर्टिस्ट और मशहूर फ़िल्म एक्टर थे। उनकी मां का नाम रामशर्णी देवी कपूर था। राज कपूर के चार भाई और एक बहन थी। भाइयों में मशहूर अभिनेता शम्मी कपूर और शशि कपूर के अलावा दो भाई नंदी कपूर और देवी कपूर भी थे, जिनकी मृत्यु उनके बचपन में ही हो गईं थी। उनकी बहन का नाम उर्मिला सियाल कपूर था।
साल 1935 में महज़ 11 साल की उम्र में राज कपूर ने ‘इंकलाब’ फ़िल्म से एक बाल कलाकार के तौर पर अपनी अदाकारी का करियर शुरू किया। उस वक़्त राज कपूर बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियो में बतौर असिस्टेंट काम किया करते थे। उसके बाद उन्होंने फ़िल्म के सेट पर क्लैपर ब्वॉय का काम भी किया। ऐसा कहा जाता है कि राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर को ऐसा लगता था कि यह अपनी ज़िंदगी में कुछ बड़ा नहीं कर पाएंगे, बतौर एक्टर राज कपूर का फ़िल्मी करियर काफ़ी शानदार रहा। उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म बतौर लीड एक्टर वीनस ऑफ़ स्क्रीन कही जाने वाली ख़ूबसूरत एक्ट्रेस मधुबाला के साथ की थी।
राज कपूर हमेशा से एक फ़िल्म डायरेक्टर बनना चाहते थे, इसीलिए साल 1948 में महज़ 24 साल की उम्र में उन्होंने ख़ुद का बैनर “आर.के फिल्म्स” को बनाया और 1948 में अपने बैनर की पहली फ़िल्म आग का डायरेक्शन किया। इस फ़िल्म में राज कपूर के साथ नरगिस पहली बार किसी फ़िल्म में नज़र आईं थीं। इसके बाद तो नरगिस के साथ उन्होंने अपने करियर की कई शानदार फ़िल्में कीं। राज कपूर और नरगिस की रील लाइफ़ जोड़ी को दर्शक भी ख़ूब पसंद किया।
आइये जानते हैं उनकी पहली कलर्ड फ़िल्म संगम के बनने की कहानी जो की साल 1964 में रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म में राज कपूर के साथ वैजयंती माला और राजेंद्र कुमार लीड रोल में नज़र आए थे। बात उन दिनों की है जब फ़िल्म इंडस्ट्री के शोमैन कहे जाने वाले एक्टर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर राज कपूर अपनी ट्राईऐंगल लव स्टोरी पर आधारित फ़िल्म ‘संगम’ बना रहे थे, जिसके लिए उनके ज़हन में फ़िल्म के ‘सुन्दर’ नाम के किरदार के लिये ट्रेजिडी किंग कहे जाने वाले एक्टर दिलीप कुमार का नाम आया।
दिलीप कुमार उन दिनों अपनी फ़िल्मों की शूटिंग में काफ़ी मसरूफ़ रहते थे। राज कपूर और वह एक अच्छे दोस्त भी थे। उन्होंने राज कपूर से उनकी फ़िल्म की स्टोरी सुनी, लेकिन उनके लिए राज कपूर ने जिस किरदार को चुना था वह उन्हे पसंद नहीं आया। इसलिए दिलीप कुमार नें मना कर दिया। उसके बाद राज कपूर ने उस रोल के लिए इंडस्ट्री के सदाबहार कहे जाने वाले एक्टर देव आनंद से बात की लेकिन उनसे भी बात नही बन पाई। आख़िर में राज कपूर ने उस रोल को ख़ुद करने का फ़ैसला किया। फ़िल्म में बतौर अभिनेत्री उस दौर की मशहूर अदाकारा वैजयंती माला को कास्ट किया गया।
इसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान वैजयंती माला और राज कपूर के अफ़ेयर की ख़बरें भी आम हो गई थी, जिससे परेशान होकर राज कपूर की पत्नी कृष्णा राज उनका घर छोड़ कर बच्चों को लेकर होटल नटराज में रहने लगी थीं, क्योंकि इससे पहले राज कपूर और नरगिस के अफ़ेयर की ख़बरें भी फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत आम हो चुकी थी। लेकिन नरगिस के सुनील दत्त के साथ शादी करने के बाद उस रिश्ते पर पूर्ण विराम लग गया था। कहते हैं नरगिस के अचानक शादी करने के बाद राज कपूर बुरी तरह सदमे में चले गए थे।
फ़िल्म संगम की कहानी लिखी थी इंदर राज आनंद ने। फ़िल्म के गाने लिखे थे गीतकार शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने और फ़िल्म में संगीत दिया था मशहूर संगीतकार की जोड़ी शंकर-जयकिशन ने, जो कि आर. के. बैनर की फ़िल्मों का संगीत तैयार किया करते थे। फ़िल्म संगम राज कपूर के लिए हर मायने में बहुत अहम फ़िल्म थी, 1964 में रिलीज़ हुई संगम राजकपूर की पहली कलर्ड फ़िल्म थी।
चूंकि इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान राज कपूर और वैजयंती माला के अफ़ेयर की ख़बरों से नाराज़ होकर उनकी पत्नी राज कपूर का घर छोड़कर बच्चों को लेकर बॉम्बे के एक होटल में रहने लगीं थीं, इसलिए दिन भर फ़िल्म की शूटिंग करने के बाद शाम को राज कपूर अपनी पत्नी को मनाने उनके होटल पहुंच जाते थे। कृष्णा कपूर उनके इस वायदे पर उनके साथ घर लौटीं थीं कि इस फ़िल्म के बाद वह वैजयंती माला के साथ कोई फ़िल्म नहीं करेंगे और हुआ भी ऐसा ही उसके बाद उन दोनों ने कभी किसी फ़िल्म में साथ में काम नहीं किया।
वैजयंती माला ने भी इस फ़िल्म के बाद राज कपूर के ही फ़ैमिली डॉक्टर से शादी कर ली। कहते हैं कि उन्होंने यह शादी राजकपूर को नीचा दिखाने के लिए की थी। फिल्म संगम राज कपूर की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसकी शूटिंग यूरोप में हुई थी। 1964 में जब राज कपूर की संगम बड़े पर्दे पर रिलीज़ हुई तो उसने धमाल मचा दिया। फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई।
1965 में संगम ने फ़िल्मफ़ेयर के दो अवॉर्ड अपने नाम किए थे, जिनमें राज कपूर को बेस्ट डायरेक्टर के लिए तो वहीं वैजयंती माला को बेस्ट एक्ट्रेस के लिए फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड दिया गया। फ़िल्म के सभी गाने भी बहुत हिट हुए ख़ासकर फ़िल्म का एक मात्र वह गाना उन दिनों हर शख़्स की ज़ुबान पर रहता था, जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया था, गाने के बोल थे “ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर की तुम नाराज़ मत होना”। इस गाने को लिखा था गीतकार हसरत जयपुरी ने, बाकी के इस फिल्म के सभी गाने गीतकार शैलेंद्र ने लिखे थे।
राज कपूर को 11 फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड, 2 राष्ट्रीय पुरस्कार, ‘पद्म भूषण’ और ‘दादा साहेब फ़ाल्के’ के साथ ही ‘फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ से नवाज़ा गया। 2 जून 1988 को हार्ट अटैक पड़ने की वजह से 64 साल की उम्र में फ़िल्म इंडस्ट्री के पहले शोमैन राज कपूर ने इस फ़ानी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। उनके जाने के बाद साल 2001 में भारत सरकार नें उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। जब राज कपूर का निधन हुआ तो वह अपनी ड्रीम प्रोजेक्ट फ़िल्म हिना बना रहे थे। उनके निधन के बाद उनकी इस अधूरी फ़िल्म को उनके बेटे रणधीर कपूर ने पूरी की।