जवां हो उठती हैं रातें… मलेशिया है बेहद ही खूबसूरत जगह

मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कदम रखते ही मुझे लगा कि मैं यूरोप, आस्ट्रेलिया या अमेरिका जैसे किसी विकसित देश की धरती पर खड़ी हूं। क्रोम और शीशे से बना यह हवाई अड्डा विश्व के सबसे आधुनिक हवाई अड्डों में एक है। चमकते हुए ग्रेनाइट के फर्श, नवीनतम तकनीक से लैस सभी सुविधाएं तथा डयूटीफ्री सामानों से भरी चमचमाती हुई दुकानें यहां आने वाले हर पर्यटक को सहज ही प्रभावित कर लेती हैं।

मुझे लगा कि जब इतने ही दिनों में मलेशिया इतनी तरक्की कर सकता है तो हम क्यों नहीं? पर इस प्रश्न का जवाब सोचने से पहले ही मुझे पता लगा कि क्वालालम्पुर से पिनांग जाना है और वहां पहुंचने के लिए लगभग 40 मिनट की उड़ान फिर भरनी है। अभी भारतीय समय के अनुसार सुबह के पांच बजे थे, पर हवाई अड्डे की घड़ी सुबह साढ़े सात का समय दिखा रही थी यानी मलेशिया व भारत के समय में ढाई घंटे का अंतर था। मैंने स्थानीय समय के अनुसार अपनी घड़ी मिलाई और पिनांग जाने वाले विमान में बैठ गई।

सुपारी के पेड़ों वाला द्वीप

मलेशिया पर्यटन विभाग की ओर से गए हम आठ लोग थे जिनका स्वागत बहुत ही गर्मजोशी से पिनांग हवाई अड्डे पर टूर गाइड लेना व एडी ने किया। हवाई अड्डे से अपने होटल मुतियारा बीच रिसोर्ट तक जाते हुए लेना व एडी ने हमें पिनांग के बारे में तमाम जानकारियां दीं। पिनांग की खूबसूरती की एक झलक हमें रास्ते में ही मिल गई। हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा पिनांग एक द्वीप है जिसका आकार एक तैरते हुए कछुए की तरह है। पिनांग की खूबसूरती से प्रभावित होकर ही ब्रिटिश रचनाकार सॉमरसेट मॉम ने लिखा था, यदि किसी ने पिनांग नहीं देखा, तो उसने संसार नहीं देखा।

मुझे भी यहां आकर लगा कि मॉम ने कुछ गलत नहीं लिखा है। पूर्वी देशों के सबसे सुंदर शहरों में गिना जाता है पिनांग, जिसका नाम इस द्वीप पर बहुतायत से पाए जाने वाले सुपारी के पेड़ों के कारण पड़ा। मलय भाषा में पिनांग पान की सुपारी को कहते हैं। पूरब का मोती कहा जाने वाला यह द्वीप 1786 में सुदूर पूर्वी देशों में ब्रिटिश राज्य का पहला व्यापारिक केंद्र बना, पर आज यह पूरब और पश्चिम के मिलन का एक आकर्षक बिंदु है। चूंकि विश्व के लगभग सभी देशों से पर्यटक यहां वर्ष भर आते रहते हैं, अतः यहां की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्त्रोत पर्यटन है। पर्यटन संबंधी सुविधाएं यहां बहुत विकसित हैं और कई अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों का विकास भी काफी अच्छा है।

असर चीनी संस्कृति का

कई वर्षो तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहने के कारण यहां की पुरानी इमारतों में ब्रिटिश स्थापत्य की झलक दिखती है। साथ ही चीनी संस्कृति का प्रभाव आज भी यहां के लोगों पर देखा जाता है। लेना व एडी ने चीनियों द्वारा बनाए गए कुआन यिन तेंग, वाट चैया मांगकालाराम तथा अन्य बौद्ध मंदिरों को दिखाते हुए बताया कि पिनांग की राजधानी जॉज टाउन में चीनियों द्वारा बनाए गए ऐसे कई बौद्ध मंदिर हैं, जहां एक विशेष जाति के चीनी लोग विभिन्न त्योहार मनाने के लिए आज भी इकट्ठे होते हैं।

इन मंदिरों पर बनी अत्यंत महीन चीनी पें¨टग व लकड़ी की नक्काशी से सजे पैनल इस देश के कलाकारों की प्रतिभा का परिचय देते हैं। थाईलैंड की स्थापत्य कला से प्रभावित वाट चैया मांगकालाराम मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटने की मुद्रा में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।

एक अनुभव अनोखा सा

मीलों तक फैले रेतीले मैदान व नारियल के पेड़ों की कतारों से सजे पिनांग के समुद्र तट विदेशी पर्यटकों को वर्षो से आकर्षित करते आ रहे हैं। दो दिन की पिनांग यात्रा के दौरान लेना व एडी हमें यहां के लगभग सभी दर्शनीय स्थलों पर ले गए, हमने स्थानीय भोजन का स्वाद लिया और बटरवर्थ तथा पिनांग के द्वीप के बीच चलने वाली फेरी में बैठकर द्वीप के चारों ओर फैले नीले पानी की सैर की। इस फेरी में लगभग 100 से अधिक गाड़ियां लोड की जा सकती हैं और 20-25 मिनट में समुद्र के जरिये अपनी गाड़ी में बैठे-बैठे आप पिनांग द्वीप तक आ-जा सकते हैं। यह मेरे लिए एक अनोखा अनुभव था।

चीन, ब्रिटेन, थाईलैंड, बर्मा आदि देशों से प्रभावित पिनांग के इतिहास की जानकारी लेते और यहां के शौकीन व बहुत ही मिलनसार लोगों की यादें दिल में लेकर हम पिनांग ब्रिज से होते हुए क्वालालम्पुर की ओर चल दिए। यह ब्रिज पिनांग द्वीप व मलेशिया प्रायद्वीप को जोड़ने वाला विश्व का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज है। यहां इस ब्रिज से जाते हुए पिनांग द्वीप की आखिरी झलक हमें मिल रही थी।

ऐतिहासिक इमारतो के शहर में

क्वालालम्पुर जाते हुए हम मलेशिया के एक और राज्य पेराक से गुजरे जिसका मलय भाषा में अर्थ है चांदी। इस राज्य का यह नाम यहां पाई जाने वाली टिन की खानों के कारण पड़ा जिसका पेराक के इतिहास और अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव रहा। पेराक की राजधानी ईपोह भी साफ सुथरे पार्क, चैड़ी सड़कों व आकर्षक ऐतिहासिक इमारतों के कारण दर्शनीय है। क्वाला कांगसार पेराक का शाही शहर है और यहां की प्राचीन खूबसूरत इमारतों में उबूदिहाह मसजिद व इस्कंदारियाह महल खास हैं।

उबूदियाह मसजिद का निर्माण पेराक के 28वें सुलतान इदरीस मुर्शिदुल अदजाम शाह प्रथम के जमाने में शुरू हुआ पर इसके पूरा होने में काफी अड़चनें आई। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान हाथियों द्वारा यहां के इटैलियन मार्बल के फर्शो को तोड़ दिया गया और इसका उद्घाटन 1917 में हो सका। लगभग 100 वर्ष से भी अधिक पुराना रबर का पेड़ भी क्वाला कांगसार में दर्शनीय है। इसके अलावा पेराक की लाइमस्टोन गुफाएं और उनमें बौद्ध चित्रकला व बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं भी देखने लायक हैं।

लेटे हुए भगवान बुद्ध की 24 मीटर लंबी प्रतिमा के दर्शन करने हों, जो मलेशिया में सबसे लंबी प्रतिभा है, तो थाई बौद्ध मंदिर मेकप्रसित जाएं। यह ईपोह से तीन किलोमीटर उत्तर की ओर है। परिवार सहित आने वाले पर्यटकों के लिए आधुनिक राइड व झूलों से लैस बुकिट मेराह थीम पार्क भी यहां है, जो 600 हेक्टेयर में फैले लेक टाउन रिसोर्ट का एक हिस्सा है। पेराक टांग, सैम पोह टांग, शाही मसजिद, जैपनीज गार्डन, दारुल रिदजुआन संग्रहालय, ताम्बुन, सुंगकाई हिरण फार्म, क्वाला वोह जंगल पार्क, लता इस्कंदर वाटर फॉल आदि भी परोक के मुख्य दर्शनीय स्थलों में से हैं।

रोशनी के बाग में

क्वालालम्पुर देखने की उत्सुकता ने हमें चैथे दिन मलेशिया की राजधानी पहंुचा दिया। गार्डन सिटी ऑफ लाइट्स कहे जाने वाले अपने शहर को यहां के लोग प्यार से केएल कहते हैं। 88 मंजिलों वाले विश्व के सबसे ऊंचे फ्री स्टैंडिंग टॉवर्स पेट्रोनाज ट्विन टॉवर्स क्वालालम्पुर में प्रवेश करते ही दिखने लगते हैं। इस्लाम के पांच स्तंभों से प्रेरित यह इमारत मलेशिया की पहचान है।

रात को ये टॉवर्स इतने खूबसूरत दिखते हैं कि इनकी ओर से आंखें हटाने की इच्छा नहीं होती। क्वालालम्पुर सिटी सेंटर के बीचोंबीच निर्मित पेट्रोनाज टॉवर्स मलय व आधुनिक आर्किटेक्चर का बेमिसाल नमूना है। इसके भीतर पेट्रोनाज फिलहारमोनिक हॉल है तथा पेट्रोनाज परफॉर्मिग आर्ट्स ग्रुप भी। क्वालालम्पुर में हमने विश्व की चैथी सबसे लंबी (421 मीटर) तथा एशिया की सबसे ऊंची मीनार क्वालालम्पुर भी देखी, जिसके भीतर जाकर ऑब्जर्वेटरी डेक से आप पूरे क्वालालम्पुर तथा क्लैंग वैली का नजारा देख सकते हैं।

यहां के रिवॉल्विंग रेस्टोरेंट में कई तरह के स्वादिष्ट भोजन का मजा लेते हुए आप क्वालालम्पुर की एक-एक इमारत, पार्क, संग्रहालय व घर आदि दूरबीन से देख सकते हैं। क्वालालम्पुर टॉवर दूरसंचार नेटवर्क, रेडियो व टीवी स्टेशन की ट्रांसमिशन टॉवर भी है।

और जवां हो उठती हैं रातें

क्वाला का अर्थ है संगम और लम्पुर यानी दलदली भूमि। गोम्बक व क्लैंग नदियों के संगम पर बसा यह शहर सन् 1800 के लगभग टिन के व्यापार का केंद्र था। आज यह मलेशिया की संघीय राजधानी होने के साथ-साथ व्यापार, राजनीति, मौज-मस्ती व अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का केंद्र है। अत्याधुनिक शहर होते हुए भी यहां के लोगों व इमारतों में औपनिवेशिक युग की झलक साफ दिखती है।

यातायात के आधुनिक साधनों में यहां लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम व रैपिड ट्रांजिट मोनो रेल सिस्टम हैं। टैक्सी भी चलती है, जो सस्ती व सुविधाजनक है। क्वालालम्पुर की अधिकतर सड़कों के किनारे पेड़ व झाड़ियां हैं, जिन पर लगी लाइटें जब रात को जलती हैं तो सारा शहर जगमगा उठता है।  जगमगाती इमारतों और लगातार चल रहे ट्रैफिक को देखकर लगता है जैसे यहां रातें और भी जवां हो उठती हैं। सड़कों के किनारे बने तमाम पब, कॉफी हाउस व डिस्कोथेक यहां के जीवन का सामान्य अंग हैं। शहर के कुछ क्षेत्रों में पब अधिक हैं। यहां सारी रात लोग मौज-मस्ती करते हैं।

स्वाद की दुनिया निराली

मलेशिया में आप भोजन के भी विभिन्न स्वाद ले सकते हैं। मलय, चाइनीज व भारतीय व्यंजनों की खुशबू से ही मुंह में पानी आ जाता है। शाकाहारी भोजन करने वालों के लिए तो थोड़ी दिक्कत आती है, पर मांसाहारियों के लिए एक से एक वेरायटी मौजूद है। स्थानीय भोजन का स्वाद यदि आप न लेना चाहें तो कॉस्मोपॉलिटन स्वादों से लैस यूरोपीय, जापानी, थाई व वियतनामी भोजन भी कर सकते हैं।

शाकाहारियों के लिए बहुत से स्थानीय फल हैं, जिनमें चीकू, अमरूद, अमरख, कटहल और लौकाट जैसे भारतीय फल भी हैं। कटहल की तरह दिखने वाला डयूरियन नामक फल मलेशिया में फलों का राजा कहा जाता है। रैम्ब्यूटान, लांगसात, मैगोस्टीन, कैरामबोला, केला भी सड़कों के किनारे बिकते देखे जा सकते हैं। पिनांग में लकसा, नासी कंदर ओर चीएन, पीसेन्बोर, रोटी जालार जैसे हॉकर फूड भी सड़क के किनारे लगी फूड स्टॉलों पर बिकते हैं।

उत्सवधर्मी संस्कृति यह

क्वालालम्पुर के बाहर भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जहां जाकर इस देश की बहुआयामी सभ्यता, संस्कृति व इतिहास को जाना जा सकता है। कहीं मलेशिया के मूल निवासी मलय अपनी पारंपरिक वेशभूषा में दिखते हैं तो कहीं भारतीय, चीनी, थाई व वियतनामी लोग। बाटू केव्ज में वार्षिक थाईपुसम त्योहार के दौरान एक लाख से अधिक हिंदू श्रद्धालु आते हैं।

क्वालालम्पुर शहर से 13 किलोमीटर दूर बाटू की लाइमस्टोन गुफाओं के मुख्य मंदिर गुफा की छत की ऊंचाई करीब 100 मीटर है और हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से सजी है। इस गुफा तक पहुंचने के लिए 272 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। इन गुफाओं की पूजनीय व दर्शनीय दोनों ही रूपों में प्रसिद्धि है। सनवे लगून भी केएल मुख्य शहर से कुछ ही दूर है, जहां का अम्यूजमेंट पार्क एक टिन की खान का विकसित रूप है।

अनोखा विरोधाभास लिए मलेशिया के विभिन्न राज्यों व आकर्षक, ऐतिहासिक व रंगीन शहरों के तमाम दर्शनीय स्थल देखकर एक हफ्ते बाद हम सब भारत वापस आने की तैयारी में थे। क्वालालम्पुर एयरपोर्ट पहुंचने पर यहां की डयूटी फ्री दुकानों से कुछ सामान खरीदकर भारत ले जाने की इच्छा से मैंने इन दुकानों में प्रवेश किया। गर्मजोशी और मुस्कान भरे चेहरों ने मेरा स्वागत तो किया पर मुझे यहां हर चीज मंहगी लगी।

शायद इसलिए क्योंकि हम पिनांग के सड़क के किनारे लगने वाले नाइट मार्केट व क्वालालम्पुर के मशहूर बी.बी. प्लाजा व सुई वांग मॉल तथा चाइना टाउन से काफी कम दामों में बहुत सारी चीजें पहले ही खरीद चुके थे। भारतीयों की तरह मलेशिया के लोग भी मोल-भाव की आदत से वाकिफ व मजबूर हैं। घड़ी, बैग, चॉकलेट, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, जूते व स्थानीय हैंडीक्राफ्ट के कुछ नमूने हम सभी ने खरीदे। मलेशिया की करेंसी रिंगिट मलेशियन के कुछ सिक्के व नोट हमारे पास उस देश की पहचान के रूप में रह गए।

मिसाल उदारता की

इसलाम को राष्ट्र धर्म के रूप में मानने वाले पर अन्य सभी धर्मो को भी समान आदर देने वाले इस देश की विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े लोगों ने सलामत दातांग कहकर जिस तरह हमारा स्वागत तहे दिल से किया, उसी तरह उन्हीं की राष्ट्रीय भाषा बहासा मलायु में हमने तरीमा का सीह कहकर उन्हें उनके आदर सत्कार के लिए धन्यवाद दिया। मलेशिया को देखकर व याद कर मुझे आज भी टीवी के उस विज्ञापन का ध्यान आता है जो कहता है, मलेशिया, सचमुच एशिया है यह सौ फीसदी सच है।

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