जहीर अंसारी का ब्लागः गोबर का ठेका लेने क़वायद…

भैया का दरबार लगा था। ख़ूब सारे अधिकारी भैया जी घेरे बैठे रहे। भैया जी कभी मुस्कुरा देते तो कभी तमतमा जाते। अधिकारीगण मोटी- मोटी फ़ाइलें लिए भैया जी की चिचौरी कर रहे थे। केबिन के बाहर कुछ ठेकेदार टाइप के लोग बैठे थे। इन सब को भैया से कोने में बात करनी थी, इसलिए इंतज़ार में बैठे-बैठे मच्छर मार रहे थे। भैया जी के बड़े से बंगले में हरियाली बहुत थी। पेड़ पौधों की वजह से मच्छरों की आबादी में काफ़ी बढ़ोत्तरी गई थी। चूँकि भैया जी की औक़ात अफ़सरों को पता थी। इसलिए अधिकारीगण बिना दवाई के ही फ़ागिंग मशीन घूमवा दिया करते थे। मशीन में दवा हो तो मच्छर भागें। मच्छर रात-दिन भन-भन करते और भैया जी को चिढ़ाते। मानो तंज कस रहे कि और लो हर काम में कमीशन। जब तक तुम जैसे कमीशन खाकर जनता का ख़ून रहेंगे हम मच्छर जात यूँ ही दौंदरा मचाते रहेंगे।

Advertisement

 

 

हालाँकि यह बंगला भैया जी नहीं है, सरकारी बंगला है जो भाभी जी मिला है। भाभी जी निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं। भाभी जी सीधी-साधी, सभ्य और घरेलू क़िस्म की हैं, उन्हें ज़बरदस्ती राजनीति का चोला पहनाया गया। उन्हें प्रशासनिक कामकाज की बारिकियाँ और राजनीतिक दाँव-पेंच की समझ नही है। वो तो कभी-कभी रस्मअदायगी के लिए इस बंगले में आया-जाया करती हैं। बाक़ी टाइम भैया जी का दरबार लगता है। भैया जी यहीं से प्रशासनिक कामकाज और योजनाओं की रूपरेखा बनाया करते हैं। भैया जी निहायत ईमानदार क़िस्म के पत्नी-सहायक थे। लेनदेन की भनक मच्छरों तक भी नहीं लगने देते थे। बंगले से बाहर निकलने से भैया जी सफ़ेद झक कुर्ता धारण कर लेते ताकि कहीं कोई ये न कह दे ‘दाग़ अच्छे’ हैं।

 

 

मैं भैया जी का बहुत पुराना मुँह लगा चिलुआ रहा हूँ। मैं धड़ाक उनके केबिन में घुस गया। भैया जी ने मेरी तरफ़ देखा और थोड़ा मुँह सिकोड़ा फिर बाहर प्रतीक्षा करने का इशारा किया। शायद उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा कि उनके सामने बड़े पेट वाला ठेकेदार बैठा था। ठेकेदार का जितना बड़ा पेट था उतना बड़ा ही उसका काम था और उतना ही कमीशन देता था। मैं ठहरा छूटकू सा ठेकेदार। नाली-नर्दा, पुलिया-कुलिया का ही काम कर पाता हूँ। जब भैया जी छोटे नेता थे तब इन कामों को दिलाने में भी खुरचन लेने में संकोच न करते थे। कई बार तो खुरचन लेने घर आ जाया करते थे।

 

 

थोड़ी ही देर में भैया जी ने मुझे बुला लिया। उन्हें मालूम है कि देर हुई तो मैं चटाई फैला दूँगा और पुराने-किस्से कहानियाँ बकना शुरू कर दूँगा। बोले प्यारे, बहुत दिन में नज़र आए। कैसे आना हुआ। कोई कहानी अटक गई क्या ? भैया जी लग्ज़री कुर्सी पर झूलते हुए बोले। मैंने कहा.. कहानी-वहानी नहीं अटकी है। ठेकेदारी छोड़े मुद्दत हो गई। इलाक़े की हालत देखकर सोचता हूँ फिर ठेकेदारी शुरू कर दूँ। अबे फटीचर अब इस उम्र में क्या करेगा, कौन सा तेरे पास माल-टाल है, जो ठेकेदारी करेगा। बकवास करता है साला। भैया जी ने पुरानी दोस्ती के नाते मुझ पर रौब झाड़ा। मैंने कहा.. बात तो सही कह रहे हो। भाभी जैसी मेरी बीवी की क़िस्मत न थी वरना तुम्हारी जगह मैं बैठा होता। तुम्हारे कारण ही तो मेरी पत्नी की टिकिट कटी थी। न कटती तो मैं भी आज पत्नी की आड़ में झाड़ गाड़ता। तुम्हारे जैसे मैं भी ठेके तय करता और मलाई छानता। इतने सुनते ही भैया जी को उबाई आ गई। बड़ा सा मुँह बाते हुए आने का मक़सद पूछा। मैंने कहा कि इलाक़े में आवारा जानवर, सुअर और कुत्ते बहुत हो गए हैं। रात-दिन सड़कों और बाज़ारों में विचरण करते रहते हैं।  मैं बात पूरी कर पाता बीच में भैया जी ने टोकते हुए कहा, हाँ-हाँ पता सब पता है। हाँका गैंग का ठेका हो चुका है, अब कुछ नहीं हो सकता।

 

 

मैंने कहा जी मुझे पता है कि हाँका गैंग का ठेका लाखों में हुआ है। 365 दिन में से 165 तो छुट्टी में निकल जाते हैं। 50 दिन ठेकेदार की टीम गोल रहती है। सिर्फ़ 2 सौ दिन के लिए लाखों रुपए ठेकेदार को दिए जा रहे हैं। उसके बाद भी हाँका गैंग अपने काम को अंजाम नहीं दे रही है। कितना हिस्सा आपके पॉकेट में जा रहा है, यह जनचर्चा का विषय बना हुआ है। इतना सुनना था कि भैया जी का पारा एकदम बुलबुले मारने लगा। चीख़ते हुए बोले कि यहाँ ज्ञान बघारने की आवश्यकता नहीं है और न ही बकवास सुनने की फ़ुर्सत। अब निकल लो यहाँ से। भैया जी का मूड बिगड़ते देख मैंने गच्च पलटी मारी। कहा कि मैं हाँका गैंग का ठेका लेने नहीं आया था बल्कि आवारा जानवरों, सुअरों और कुत्तों का मैला उठाने का ठेका माँगने आया था। इनकी गंदगी की वजह से इलाक़े में बदबू और संक्रमण फैल रहा है। इस नई स्कीम से जनता ख़ुश हो जाएगी और साफ़-सफ़ाई भी बनी रहेगी। इस स्कीम को स्वच्छता मिशन में शामिल कर लीजिए। करोड़ों रुपए का बजट मिल जाएगा। इस स्कीम की सबसे ख़ास बात यह है कि कितने आवारा जानवरों का मैला उठाया जा रहा है, कोई माई का लाल इसका लेखा-जोखा नहीं रख सकता। जानवरों को भी तो दस्त लगती है। इसका अलग से क्लेम कर लिया जाएगा। इस काम के लिए ठेके की जो राशि तय होगी उसका फिफ़्टी पर्सेंट आपका।

 

 

भैया जी के चेहरे पर क़ातिलाना मुस्कुराहट पसर गई। गहरी साँस लेने के बाद बोले ‘आइडिया’ बुरा नहीं है। इस बार के बजट में आवारा जानवरों का गोबर और गंदगी उठाने के लिए पर्याप्त राशि का प्रावधान किया जाएगा। इलाक़े की स्वच्छता और नागरिकों को संक्रमण से बचाने का यह पुण्य कार्य अति आवश्यक है। भैया जी बजट तब आएगा तब आएगा, आप तो इसी साल के पूरक बजट में इसे शामिल कर लो। सदन में बहुमत आपका और अफ़सर आपका। आख़िर मामला जनहित का है।  हम्म, ठीक सलाह। भैया जी ने ऐसा कहा जैसे मैंने बड़ा हल निकाल दिया। तो भैया जी मैं इसका ठेका पक्का मानू। जाकर संसाधन जुटाऊँ, टीम बनाऊँ और तैयारी करूँ। विपक्ष को लालीपॉप दिखाऊँ। यह कहते हुए मैं उठा और निकलने लगा। भैया जी ने इशारे से पास बुलाया और बहुत ही हौले से कान में बोले। सुनों इस बात की ख़बर मच्छरों को भी नहीं होनी चाहिए कि इस ठेके में मेरा भी ‘इन्वोल्वमेंट’ है। चूँकि मुझे विधानसभा का चुनाव लड़ना है इसलिए तुमसे ‘सेट’ हो गया, वरना मैं ‘पंजी’ तक किसी से नहीं लेता। ओके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here