उत्कर्ष सिन्हा
बीते एक महीने से यूपी भाजपा में चल रही उथलपुथल को उसके सहयोगी छोटे दलों ने आपदा में अवसर बना लिया है। एक तरफ भाजपा का आला कमान यूपी में संगठन और सरकार के बीच संतुलन बनाने की कवायद कर रहा है तो दूसरी तरफ उसके ऊपर सहयोगी दलों के बढ़ते दबाव से निपटने की चुनौती भी आ गई है।
पहले अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिय पटेल ने अपना प्रस्ताव रखा और अब निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने खुद को उप मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर दी। संजय निषाद अपने सांसद पुत्र प्रवीण निषाद के साथ बीते दिनों अमित शाह से दिल्ली में मिले थे। बताया जाता है कि इस बैठक में उन्होंने प्रवीण निषाद के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मांगी थी और खुद के लिए यूपी में विधानपरिषद की सीट।
दिल्ली से लौटने के बाद संजय निषाद लगातार बयान देते रहे और हर बयान में उन्होंने कहा कि यूपी की 160 सीटों पर निषाद वोटों का प्रभाव है। और यदि भाजपा हमे सम्मान देगी तो हम भाजपा के साथ रहेंगे। इसके बाद निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) के मुखिया संजय निषाद ने उप मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी।
संजय निषाद फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा नहीं छोड़ रहे हैं जिसपर भाजपा को दवाब में लेने का अवसर हो।
संजय निषाद को राजनीति में मिली पहली सफलता ही बड़ी सफलता थी जब योगी आदित्यनाथ की छोड़ी हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर उनके बेटे प्रवीण निषाद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। बाद में वे समाजवादी पार्टी छोड़ कर भाजपा के साथ चले गए और प्रमीन ने अलग चनाव भाजपा के साथ खलीलाबाद से जीता।
संजय निषाद को गोरखपुर में अच्छा समर्थन हासिल है और वे जानते हैं कि भाजपा उनकी उपेक्षा नहीं कर सकती क्योंकि योगी के गढ़ में बिना निषादों के सीट जीतना मुश्किल है।
दूसरी तरफ लंबे समय से शांत रही अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने भी ठीक उसी वक्त अमित शाह से मुलाकात की जब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ आलाकमान से मिलने दिल्ली बुलाए गए थे। मोदी 2.0 सरकार में अनुप्रिया को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी थी और उनके पार्टी यूपी विधानपरिषद सदस्य आशीष सिंह पटेल भी योगी मंत्रिमंडल में जगह नहीं पा सके हैं ।
विधान सभा चुनावों को नजदीक आते देख अनुप्रिया ने भी भाजपा पर अपना दबाव बढ़ा दिया, अमित शाह से हुई मुलाकात में अनुप्रिया ने जिला पंचायत अध्यक्ष की तीन सीटों के साथ खुद और आशीष पटेल के लिए मंत्री पद की मांग की थी।
अनुप्रिया का दबाव कितना काम आया इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष की दो सीटे, मिर्जापुर और जौनपुर भाजपा ने अपना दल(एस) को दे दी।
2017 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में गैर यादव पिछड़े वोटों के लिए जो बिसात बिछाई थी उसमे अनुप्रिया पटेल और ओम प्रकाश राजभर जैसे गठबंधन के सहयोगियों की बड़ी भूमिका थी जिन्होंने कुर्मी और राजभर समाज के वोटों को भाजपा के पक्ष में ला दिया था । बाकी का काम यूपी के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और बसपा से आए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कर दिया था।
मगर सरकार बनते ही इन सारे नेताओं की भूमिका सीमित हो गई। भाजपा ने कुर्मी और राजभर जैसे महत्वपूर्ण वोटर ब्लाक में अपने नेताओं को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया । अपनी लगातार हो रही उपेक्षा से व्यथित ओम प्रकाश राजभर ने तो योगी सरकार से इस्तीफा दे कर गठबंधन छोड़ दिया लेकिन अनुप्रिया गठबंधन का हिस्सा बनी रही।
भाजपा के भीतर केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्या भी काभी सहज नहीं रहे। योगी और केशव के बीच की तल्खी की खबरे लगातार सामने आती रही। मामला इतना बढ़ा कि केन्द्रीय नेतृत्व को दोनों के बीच सुलह सफाई करने के लिए गंभीर हस्तक्षेप करना पड़ा।
इस बीच योगी सरकार पर भी जातिवाद के आरोप लगते रहे। असंतुष्टों का आरोप था कि सरकार में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा की जा रही है जबकि 2017 की जीत पिछड़े वर्ग के वटरों के लामबंदी का परिणाम थी।
ये बात सही भी है। यूपी में जब जब पिछड़े वर्ग का समर्थन भाजपा को मिल तभी उसकी सरकार बनी अन्यथा भाजपा का वोट प्रतिशत 25 से आगे नहीं बढ़ सका है।
अब जबकि सरकार के खिलाफ एक एंटी इन्कमबेन्सी भी दिखाई दे रही है ऐसे में पिछड़े वोटरों को साधे बिना यूपी के चुनावों में भाजपा की नाव पार नहीं लगेगी। इसीलिए भाजपा आलाकमान अपनी पार्टी सहित दूसरे पिछड़े नेताओं को मनाने में जुटा है।
और यही वो आपदा में अवसर है जिसकी तलाश अपना दल और निषाद पार्टी को लंबे समय से थी।