जिसकी जिन्दादिली से होता था हमें गुमां… कैसे कहूं वो शख्स आसमानी हो गया…

मो. आरिफ नगरामी/सन्देश तलवार

उत्तर भारत की सबसे बडी शिक्षण संस्था इरम एजुकेशनल सोसायटी लखनऊ इन दिनों गम में डूबी हुई है। उल्लेखनीय है कि संस्था के प्रबंधक डॉ ख्वाजा सैयद रजमी यूनुस का मैक्स अस्पताल नई दिल्ली में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 50 बरस के थे और काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्होंने दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में 09 मई की सुबह 9ः 00 बजे आखरी सांस ली। उनके घर में उनकी माता, उनकी पत्नी उनके बच्चे, तीन भाई ख्वाजा सैयद बजमी यूनुस, ख्वाजा सैयद फैजी यूनुस एवं ख्वाजा सैयद सैफी यूनुस है। डॉ ख्वाजा सैयद रजमी यूनुस का निधन इरम एजुकेशनल सोसायटी एवं इरम युनानी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के लिए बहुत बड़ी क्षति है।

वह एक शख्स जो सारे शहर को वीरान कर गया,

क्या खूब आदमी था वह एक शख्स जो सारे शहर को वीरान कर गया

ऐसे किरदार अपने अन्दर सेवाभाव और दानधर्म की ऐसी खुशबू रखती हैं कि उनसे जो भी मिलता है उनका कायल हो जाता है, और जब जब इस खुशबू के झोेंके चलते हैं उस किरदार के यादों के दिए जल उठते है। और सारा माहौल रोषन हो जाता है। उन्हीं हरदिल अजीज और प्यारी शख्सियत मेें एक अहम नाम इरम एजूकेशनल सोसायटी के मैनेजर, ख्वाजा रज्मी यूनुस का है। हमेशा खुशमिजाज दिखने वाले डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस की जिन्दगी और उनकी शख्सियत मेें इतना कुछ जरूर था कि वह हमेशा याद किये जाएंगे।

शहर के गणमान्य नागरिकों, राजनेताओं व विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने दिवंगत डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब को अश्रुपूरित आँखों से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अंतिम विदाई दी। एक शायर ने खूब कहा है कि

“इन आँसुओं को बह लेने दीजिये,
दर्द में ये दवा का काम करते हैं,
सीने में सुलग रहे हैं अँगारे जो,
ये उन्हें बुझाने का काम करते हैं !”

दिवंगत डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब ने अपनी छोटी जिन्दिगी मेें समाज और शिक्षा की सेवा के साथ समाजी और दानधर्म की सरगर्मियों के मैदान मेें बहुत गहरे निशान छोडे हैं। दिवंगत रज्मी साहब को समाजी कामों का सलीका भी था और कुछ करने की ख्वाहिश भी उनमेें हमेशा अंगडाईयां लेती रहती थीं।

डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस की जिन्दगी कठिनाइयों से भरी थी। तालीम खत्म हुयी तो उन्होने अपने पिता इरम एजूकेशनल सोसायटी के संस्थापक और पूर्व मैनेजर दिवंगत डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस के शिक्षा मिशन को कायम करने और फिर आगे बढाने मेें दिल व जान से उनका साथ दिया।

Eram Arabic Diploma Centre, Indira Nagar Lucknow - NGOS in Lucknow - Justdial

डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस की खून पसीने की मेहनत की बदौलत बहुत ही कम अर्से मेें लखनऊ और बाराबंकी मेें इरम कान्वेंट स्कूलों का एक जाल फैल गया, और ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस द्वारा स्थापित की गई इरम एजेकेशनल सोसायटी उत्तर भारत की सबसे बडी और मशहूर संस्था बन गयी। इरम सोसायटी को उस बुलंद पायदान पर पहुंचाने मेें डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस ने अपने बुजुर्ग पिता का भरपूर साथ दिया।

शिक्षा की सेवा के साथ ही साथ डाॅ0 रज्मी यूनुस ने अपने आप को समाजी कामों के भी नाम कर दिया। अपनी मेहनत की वजह से उन्हेें देश भर में शोहरत भी मिली और इज्जत भी। मगर इस जद्दोजेहद मेें वह अपनी बिगडती हुयी सेहत को भूल गये। उनकी हालत बिगडती जा रही थी लेकिन उन्होने बीमारी से हार नहीं मानी ।

वह लगातार इरम एजूकेशनल सोसायटी की तरक्की के साथ साथ मुल्क के हर लडके ओर लडकी को शिक्षित बनाने के लिये अपने भाईयों डाॅ0 ख्वाजा बज्मी यूनुसए ई0 ख्वाजा फैजी यूनुस और ईं0 ख्वाजा सैफी यूनुस के साथ संस्था के काम और सभी फर्ज पूरे करते रहे।

Eram Unani Medical College Lucknow: 2020-21 Admission, Fee, Course,

अपने लिए जिए तो क्या जिए
ए दिल तू जी जमाने के लिए

डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस के निधन के बाद जिस मेहनत और सलीके के साथ इन चारों भाईयों ने आपसी प्यार के साथ मिल जुलकर इरम सोसायटी को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दियाए वो काबिले तारीफ है। जब दिवंगत डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस साहब ने इरम यूनानी मेडिकल कालेज एण्ड हास्पिटल की स्थापना की तो वहां का सारा कामकाज डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस के मजबूत हाथों मेें दे दिया।

About Eram Society – ERAM UNANI MEDICAL COLLEGE & HOSPITAL

उसके बाद डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब ने जिस मेहनत के साथ इरम यूनानी मेडिकल कालेज को आगे बढाया वह एक शानदार मिसाल है। आज इरम यूनानी मेडिकल कालेज का जिक्र देश के बेहतरीन यूनानी मेडिकल कालेजों में होता है। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस की मृत्यु इरम यूनानी मेडिकल कालेज के विद्यार्थियों के लिये ऐसा दुख है जिसकी याद कभी भुलाया नहीं जा सकता।

डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब मरहूम ने अपने खानदान की शिक्षाओं और संस्कारों पर कायम रहते हुये न जाने कितने जरूरतमंदों की जरूरतों को बहुत ही खामोशी के साथ पूरा किया। न जाने कितनी लडकियों की शादियां करा दीं न जाने कितने विद्यार्थियों की फीस अपनी जेब से दी।

जहां तक हमारा देखना है कि डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस साहब की तरह डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुसए डाॅ0 ख्वाजा बज्मी यूनुस, ईं0 ख्वाजा फैजी यूनुस और ईं0 ख्वाजा सैफी यूनुस के दरवाजे पर अगर कोई जरूरतमंद गया तो उसकी जरूरत को पूरा करना ख्वाजा फैमिली ने हमेशा अपना फर्ज समझा।

डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस दिल के बहुत धनी थे वह अपने स्टाफ की हर मदद के लिये हमेशा तैयार रहते थे। हर साल रमजान मुबारक के आखिरी दिनों में सोसायटी के तमाम स्टाफ को कपडा और नकद रू0 बतौरे ईद अपनी जेब से देते थे।

बहुत ही खुशमिजाज, हर छोटे बडे लोगों से दोस्ताना मिजाज दिखाने वाले और मिलनसार शख्सियत के मालिक थे। बडे पद पर होते हुए भी डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब किसी के भी सलाम करने से पहले ही वह खुद सलाम कर लिया करते थे और हाल चाल पूछा करते थे।

जिन्दगी और मौत का फेसला तो खुदा ने अपने ही कब्जे में रखा है। यह दुनिया तो एक सराय है, एक न एक दिन हर जीव को दुनिया से जाना ही है। इतिहास उठा कर देखिये आपको हर दौर मेें ऐसी हस्तियां मिल जायेंगी जिन्होंने जिन्दादिली से काम लेकर समाज की तरक्की के लिये हर तरीके से ऐसे काम अन्जाम दिये जो रहती दुनियां तक याद रखे जायेंगें। ऐसा ही एक नाम डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस का है।

हजारों साल नरसिग अपनी बेनूरी पर रोती है
तब जाकर होता है चमन में दीदावर पैदा

हर व्यक्ति जानता है कि जब कयामत के दिन बारगाहे ईलाही में हाजिर होगा तो पांच सवालात के जवाब दिये बेगैर एक कदम भी आगे नहीं बढा सकेगे। पहला तुमको जिन्दगी मिली थी तो कैसी गुजारी, अपनी जवानी कैसे और कहां खर्च की। धन सम्पत्ति कहां से कमाई, क्या खर्च किया। जो शिक्षा हासिल की उस पर अमल कितना किया, और दूसरे तक कितना पहुंचाया। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस के चेहरे पर जो खुशदिली हर वक्त नुमाया रहती थी उससे यह अन्दाजा लगाना मुशकिल नहीं कि उन्हेांने इन सवालात के जवाब तलाश कर लिये है।

उनकी जिन्दगी का मकसद सिर्फ यह रहा कि अल्लाह के बन्दों मेें जितनी भी खुशियां बांटी जा सके और जो भी सेवा हो सके इसमें कोई कसर न उठाई जा सके। न नाम मषहूर कराने की ख्वाहिश और न पैसे की हवस, जो मिल गया अल्लाह का शुक्र अदा किया। जो न मिल सका सब्र कर लिया। जो शिक्षा हासिल की उस पर जहां तक हो सका अमल किया। और जहां तक हो सका विद्यार्थियों और जरूरतमंदों मेें ही बांटते रहे। ऐसे लोगों के लिये यकीनन जन्नत का परवाना लिये कोई फरिश्ता पहले से तैयार रहता है।

जिससे मिल कर जिन्दिगी से इश्क हो जाये वह लोग
आपने शायद न देखे हों मगर ऐसे ही थे।

समाज व परिवार से जब कोई अपना बेहद खास सगा संबंधी एकाएक सभी परिजनों के दिलोदिमाग को झकझोर कर दुनिया को छोड़ जाता है, तो वह दुःख बेहद असहनीय व अकल्पनीय होता है। वैसे तो सर्वशक्तिमान ईश्वर के आगे किसी की भी कोई इच्छा नहीं चलती, विधाता के द्वारा तय किये गये स्थान व समय पर हर किसी व्यक्ति को दुनिया से अलविदा कहना होता है, लेकिन व्यक्ति अगर अपनी आयु पूरी करके सामान्य ढंग से दुनिया से रुखसत हो जाये, तो उसके परिवार व चाहने वालों को दुःख-दर्द का अहसास बहुत कम होता है, लेकिन अगर वह अल्पायु में आकस्मिक दुनिया से चला जाता है, तो सभी के लिए इस तरह की कष्टकारक स्थिति को झेलना बहुत असहनीय होता है।

लेकिन व्यक्ति चाहें कितना भी ताकतवर हो जाये, वह ईश्वर के आगे हमेशा बेबस होता है, उसके पास हर हाल में विकट से विकट परिस्थिति में भी ईश्वर की इच्छा को मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है। प्रभु की इच्छा के आगे किसी का भी कोई बस नहीं चलता है। हम सभी जानते हैं कि ईश्वर की इच्छा ही सर्वोंपरि है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है, वह कभी भी नहीं मरती है, शरीर तो मात्र एक साधन है, लेकिन फिर भी मन अपने के आजीवन विछोह को मानने के लिए आसानी से तैयार नहीं होता है।

प्रसिद्ध शायर ख़ालिद शरीफ़ ने कहा है कि

“बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया ।”

दुःख की इस घड़ी में शायर राहत इंदौरी साहब की चंद पंक्तियों के माध्यम से मैं कोटि-कोटि नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ-

“अब ना मैं हूँ ना बाक़ी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे..”

जिंदगी में आपकी कमी हमेशा खलेगी मेरे भाई कदम-कदम पर पल-पल हमेशा बहुत याद आओगे मेरे प्यारे भाई डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस आपका सरल बेहद शानदार व्यवहार हमेशा याद रहेगा। इस विकट परिस्थिति पर शायर ने कहा है-

“जाने वो कैसे मुकद्दर की किताब लिख देता है,
साँसे गिनती की और ख्वाहिशें बेहिसाब लिख देता है।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here