जिस सौराष्ट्र ने BJP को दी थी टेंशन, वहां कितना बदला गेम? समझें हालात

अहमदाबाद। गुजरात में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में किस पार्टी की सरकार बनेगी, इसमें सौराष्ट्र क्षेत्र की 48 सीट के नतीजों की अहम भूमिका होगी। राज्य की कुल 182 विधानसभा सीट में से 48 सीट इस क्षेत्र से आती है, जहां पाटीदार समुदाय और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अच्छी खासी आबादी है। साल 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में 28 सीट हासिल की थी और इसने भाजपा को कुल 99 सीट पर समेटने में मदद की थी।

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में 15 सीट पर जीत दर्ज की थी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इस क्षेत्र में 2017 के चुनाव में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन के लिए 2015 के पाटीदार समुदाय के आरक्षण आंदोलन को जिम्मेदार बताया, जिसके जरिए भाजपा सरकार को निशाना बनाया गया था।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में सीट की संख्या में पिछले चुनाव के मुकाबले सुधार करना या कम से कम उन्हें बरकरार रखना कांग्रेस के लिए एक चुनौती होगी, क्योंकि इस बार पाटीदार आरक्षण आंदोलन जैसा कोई मुद्दा नहीं है, जो लोगों को उसके पक्ष में ‘एकजुट करने के लिए भावनात्मक आधार’ के तौर पर काम करेगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, अरविंद केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी (आप) भी रास्ते में बाधाएं खड़ी कर सकती है।

सत्तारूढ़ भाजपा ने 2012 में इस क्षेत्र में 30 सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2017 के चुनावों में उसे इस क्षेत्र में सिर्फ 19 सीट से संतोष करना पड़ा था। वह भी कांग्रेस विधायकों को पार्टी में शामिल करके अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश में जुटी है। सौराष्ट्र क्षेत्र में 11 जिले हैं- सुरेंद्रनगर, मोरबी, राजकोट, जामनगर, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जूनागढ़, गिर सोमनाथ, अमरेली, भावनगर और बोटाद।  साल 2017 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा इनमें से तीन जिलों- मोरबी, गिर सोमनाथ और अमरेली में खाता खोलने में विफल रही थी।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि गुजरात में दो दशकों से अधिक समय से सत्ता से बाहर कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है कि वह राज्य में खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए सौराष्ट्र क्षेत्र में अपने 2017 के प्रदर्शन को दोहराए या उससे बेहतर करे। पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह उसके (कांग्रेस) लिए आसान नहीं क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ पाटीदारों को एकजुट करने वाले 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन की तरह का कोई मुद्दा इस बार नहीं है।

इसके अलावा पाटीदार आंदोलन के सबसे प्रमुख नेता हार्दिक पटेल, जो 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, उन्होंने भी इस साल भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने  उन्हें इस बार वीरमगाम सीट से मैदान में उतारा है।

विशेषज्ञों ने कहा कि पहली बार गुजरात की सभी 182 सीट पर चुनाव लड़ रही ‘आप’ कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है, क्योंकि पाटीदार समुदाय की युवा पीढ़ी अरविंद केजरीवाल नीत संगठन का समर्थन करती दिखाई दे रही है। इसके अलावा भाजपा पाटीदार समुदाय से समर्थन में किसी भी कमी की भरपाई अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के समर्थन से करने की कोशिश करती दिख रही है। ओबीसी की भी इस क्षेत्र में अच्छी खासी आबादी है। इस समुदाय के लोग मुख्य रूप से तटीय क्षेत्र में फैले हैं और तकरीबन 40 फीसदी सीट पर उनकी अच्छी खासी संख्या है।

राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल ने कहा, ”सीट आवंटन की पहली सूची पर गौर करने से पता चलता है कि भाजपा ने इस बार क्षेत्र में ओबीसी उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि की है। अगर उसे पाटीदारों से कोई नुकसान होता है, तो उसे ओबीसी के समर्थन से इसकी भरपाई होने की उम्मीद है।” उन्होंने कहा कि सौराष्ट्र के पाटीदार, विशेषकर सूरत में काम करने वाले युवा मतदाता ‘आप’ से प्रभावित हैं और भाजपा और कांग्रेस दोनों से उनके दूर रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इस तरह, कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा नुकसान होगा।

साल 2017 के चुनाव में जीतने के बाद पांच साल के दौरान भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेस के 20 विधायकों में से आधे सौराष्ट्र क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों से थे। इनमें सोमा पटेल (लिंबडी सीट), परसोतम सबरिया (ध्रांगधरा), बृजेश मेरजा (मोरबी), कुंवरजी बावलिया (जसदान), वल्लभ धाराविया (जामनगर ग्रामीण), जवाहर चावड़ा (मनावदार), हर्षद रिबदिया (विसावदार), भगवान बरद (तलाला), जे वी काकड़िया (धारी) और प्रवीण मारू (गढड़ा) क्षेत्र से थे। गुरुवार (10 नवंबर) को जारी भाजपा की 160 उम्मीदवारों की पहली सूची के अनुसार, कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव जीतने वाले कांग्रेस के इन विधायकों में से अधिकांश को सत्ताधारी दल ने मैदान में उतारा है।

साथ ही, पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, वरिष्ठ नेता आर.सी. फालदू सहित अपने करीब एक दर्जन मौजूदा विधायकों को फिर से मौका देने से इनकार कर नए चेहरों को प्रमुखता दी है। कांग्रेस का परंपरागत रूप से इन तटीय सीट पर ओबीसी के समर्थन से  मजबूत आधार रहा है। समाजशास्त्री गौरांग जानी ने कहा, ”गुजरात में 147 जातियां ओबीसी समुदाय में हैं। तटीय क्षेत्र कांग्रेस की किस्मत का फैसला करने की दृष्टि से अहम होगा।

उनकी (ओबीसी) अच्छी खासी आबादी है, लेकिन वे पाटीदार, ब्राह्मणों और राजपूतों की तरह एक समूह के तौर पर एकजुट नहीं हैं।” उन्होंने कहा, ”भाजपा का इन क्षेत्रों में कमजोर आधार है। तलाला के विधायक को अपने पाले में करना दर्शाता है कि भाजपा इस क्षेत्र में अपने समर्थकों का नेटवर्क तैयार करने का प्रयास कर रही है।” गौरतलब है कि गुजरात में एक और पांच दिसंबर को मतदान होंगे और मतों की गिनती आठ दिसंबर को होगी।

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