डंके की चोट पर : पांच साल पहले मिथुन दा को ममता ज़रूरी लगी थीं और अब…

शबाहत हुसैन विजेता

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल कर वहां भगवा झंडा फहराने के मकसद से बीजेपी ने अपना नया दांव मिथुन चक्रवर्ती के रूप में चला है. सियासी पार्टियां हमेशा से ज़रूरत पड़ने पर सत्ता पर काबिज़ होने के लिए ग्लैमर का तड़का लगाती रही हैं. फ़िल्मी कलाकारों की भी सियासी दुनिया में कदमताल कोई नई बात नहीं है.

फ़िल्मी दुनिया के अनगिनत कलाकार समय-समय पर सियासत में आते रहे हैं. कुछ सियासत में इस्तेमाल होने के लिए आते हैं तो कुछ सियासत को इस्तेमाल करने के लिए आते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो किसी राजनीतिक पार्टी की ज़रूरत पूरी करने के लिए सियासत में आते हैं और फिर इस तरह से सियासत में काबिज़ हो जाते हैं कि उनके बगैर सियासत के बारे में सोचना भी बेमानी हो जाता है.

अमिताभ बच्चन को राजीव गांधी सियासत में लाये थे. वह सियासत का ककहरा नहीं जानते थे. अपने ग्लैमर की बदौलत इलाहाबाद से सांसद भी बन गए लेकिन वह सिर्फ इस्तेमाल की चीज़ थे. इस्तेमाल होते रहे. फ़िल्मी दुनिया से कमाई हुई दौलत का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने सियासत में खर्च किया लेकिन जब उन पर बोफोर्स में दलाली खाने का इल्जाम लगा. जब उनके दामन पर बेमानी के छींटे पड़े तो वह सियासत को छोड़कर वापस मुम्बई लौट गए और फिर कभी सियासत की तरफ पलटकर नहीं देखा.

सियासत को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेने वाले सितारों की बात करें तो एन.टी.रामाराव और जयललिता का नाम लिया जा सकता है. सियासत के ज़रिये अपने संसदीय क्षेत्र में विकल्प को शून्य कर देने वालों की बात करें तो सुनील दत्त का नाम लिया जा सकता है. सियासत में आकर उसी में ठहर जाने वालों की बात करें तो राज बब्बर का नाम लिया जा सकता है लेकिन मिथुन चक्रवर्ती और संजय दत्त जैसे किरदार सियासी दलों के लिए इस्तेमाल होने के लिए सियासत में आते हैं.

मिथुन चक्रवर्ती कोलकाता में बीजेपी का झंडा थामे नज़र आये. लोगों को हक़ छीनकर लेने के बात की वकालत करते सुनाई दिए. मिथुन ने खुद को बंगाली होने की बात बड़े पुरजोर तरीके से कही. पश्चिम बंगाल ही क्यों पूरा देश जानता है कि यही मिथुन चक्रवर्ती पांच साल पहले टीएमसी की ममता बनर्जी की हिमायत में सियासत में आये थे. तब बंगाल को बचाने के लिए ममता की ज़रूरत बताई थी और आज बंगाल को बचाने के लिए बीजेपी की ज़रूरत बताई है.

राजबब्बर पहले समाजवादी पार्टी के सांसद थे. समाजवादी पार्टी की हुकूमत के लिए उनके स्टार प्रचारक थे, आज कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. राज बब्बर फ़िल्मी दुनिया से ज्यादा सियासत में सक्रिय हैं. लोगों के बीच रहते हैं. कांग्रेस ने देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में उन्हें अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया. कांग्रस आलाकमान के काफी करीबी हैं. कांग्रेस आलाकमान ने पूरा चुनाव राजबब्बर के भरोसे छोड़ दिया लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं कर पाए. कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर सिमट कर रह गई.

राज बब्बर का करिश्मा इसी वजह से खत्म हो गया क्योंकि वह पहले समाजवादी पार्टी के लिए वोट मांगते थे अब कांग्रेस के लिए वोट मांगते हैं. राज बब्बर स्टार हैं. उन्हें देखने को भीड़ उमड़ती है लेकिन वह भीड़ वोट में कन्वर्ट नहीं होती है.

इसी तरह से बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती के लिए भी भीड़ उमड़ती है लेकिन यह भीड़ जानती है कि पांच साल पहले जो अभिनेता ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बनाकर बंगाल के लोगों को इन्साफ दिलाने की बात करता था वही अब चाहता है कि लोग बीजेपी की सरकार बनवा दें.

मिथुन शानदार फ़िल्मी कलाकार हैं लेकिन शानदार राजनेता नहीं हैं. सही बात तो यह है कि यह सियासत में इस्तेमाल किये जाने वाले राजनेता हैं. इनकी पोजीशन वही है जो संजय दत्त की पोजीशन है. यह भीड़ जमा करने वाले किरदार हैं. भीड़ इनके डायलाग सुनने के लिए आती है.

पश्चिम बंगाल की भीड़ देख रही है कि टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आने वालों से बंगाल सुरक्षित हुआ जा रहा है. जो नन्दी ग्राम पांच साल की हुकूमत के बावजूद शुभेंदु अधिकारी से विकास नहीं करवा –पाया वही शुभेंदु बीजेपी का झंडा उठाकर कैसे नन्दी ग्राम का विकास कर देगा. विकास नहीं हुआ है तब तो नेता बदलने की ज़रूरत है. पार्टी बदलने से विकास की नदी कैसे बह सकती है.

इसका तो मतलब यह है कि ममता बनर्जी अगर टीएमसी का बीजेपी में विलय कर दें तो शानदार मुख्यमंत्री बन सकती हैं और पश्चिम बंगाल विकास के रथ पर सवार हो सकता है.

देश में बीजेपी की छह साल से सरकार है. छह साल के अपने विकास माडल के साथ बीजेपी आखिर पश्चिम बंगाल के मैदान में क्यों नहीं उतरती है. बीजेपी के अपने मुख्यमंत्री बंगाल में जाते हैं तो उनकी भाषा धमकी वाली भाषा होती है.

याद कीजिये यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बंगाल में जाकर क्या कहा. दो मई को पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सरकार बनेगी उसके बाद कांग्रेस और टीएमसी के गुंडे गले में तख्ती टांगकर दया की भीख मांगते घूमेंगे.

योगी आदित्यनाथ की यह भाषा न तो राजनेता की भाषा है. न योगी की भाषा है, न महंत की भाषा है. न मुख्यमंत्री की भाषा है. यह भाषा शुद्ध रूप से समाज के उसी वर्ग की भाषा है जो गले में तख्ती टांगकर दया की भीख मांगता घूमता है. किसी भी मुख्यमंत्री को ऐसी भाषा को बोलने से बचना चाहिए और किसी भी पार्टी को ऐसे स्टार प्रचारक से परहेज़ करना चाहिए.

फ़िल्मी दुनिया के जो किरदार सेवा की भावना के साथ सियासत में आये उन्हें जनता ने अपने सर आँखों पर बिठाया. जनता ने उन्हें आजीवन सत्ता सौंपी. एन.टी. रामाराव और जयललिता की एक आवाज़ पर पूरा सूबा खड़ा हो जाता था. याद कीजिये जब एन.टी.आर. की सरकार बर्खास्त की गई थी और एनटीआर अपने समर्थकों के साथ दिल्ली पहुंचे थे उनकी हुकूमत की वापसी हुई थी. याद कीजिये जयललिता बीमार थीं तो कई समर्थकों ने आत्महत्या कर ली थी. उनकी मौत के बाद भी कई लोगों ने अपनी जान दे दी थी.

मिथुन को भी लोग पसंद करते हैं मगर पांच साल पहले वह ममता बनर्जी के पक्ष में प्रचार करने कोलकाता आये थे. चुनाव के बाद उन्होंने सियासत से दूरी बना ली और आज बीजेपी की रैली में हक़ छीनकर लेने की बातें कर रहे हैं. आम लोगों को भी ऐसे मौका परस्त लोगों से दूरी बना लेनी चाहिए. बीजेपी को पश्चिम बंगाल में सरकार बनानी है तो उसे भी यूपी में कांग्रेस की स्थितियां ज़रूर देखनी चाहिए क्योंकि फिल्म अभिनेता राजबब्बर के नेतृत्व के बावजूद कांग्रेस उस सूबे में सात सीटों पर सिमट गई जिस सूबे में सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस की ही हुकूमत रही है.

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