डंके की चोट पर : क़ानून के राज की कल्पना तो बेमानी है

शबाहत हुसैन विजेता

वो साल 2001 में 29 जून की रात थी. तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में करुणानिधि की पार्टी की करारी हार हुई थी और जयललिता मुख्यमंत्री बन गई थीं. मुख्यमंत्री बनते ही जयललिता ने करुणानिधि को जेल भिजवाने का फैसला कर लिया था. करुणानिधि के कार्यकाल में चेन्नई में बनाये गए फ्लाईओवर में भ्रष्टाचार के इल्जाम में 20 जून 2001 को रात नौ बजे एफआईआर दर्ज कराई गई. एफआईआर दर्ज होते ही करुणानिधि को गिरफ्तार करने का फैसला किया गया.

करुणानिधि अपने घर की ऊपरी मंजिल पर सो रहे थे. रात को डेढ़ बजे पुलिस उनके घर पहुंची. पहले घर की टेलीफोन लाइनें काटीं और इसके बाद उनके बेडरूम का दरवाज़ा तोड़कर उन्हें किसी बड़े माफिया की तरह से गिरफ्तार किया गया. करुणानिधि ज़मीन से जुड़े नेता थे. उनके चाहने वालों की बड़ी संख्या थी, इसी वजह से उसी स्तर की बेइज्जती के साथ उन्हें गिरफ्तार करने का निर्देश था. उनकी गिरफ्तारी को राष्ट्रीय टेलिविज़न पर प्रसारित किया जा रहा था.

पूर्व मुख्यमंत्री को पुलिस ने धक्का देकर बिस्तर से गिरा दिया और पीटते हुए थाने ले गई. अपमान से बिलबिलाये करुणानिधि पुलिस की गाड़ी में फूट-फूटकर रो पड़े. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस मामले पर सख्त नाराजगी जताई और तमिलनाडु के गवर्नर और चीफ सेक्रेटरी से तत्काल रिपोर्ट देने को कहा.

राजनीति का यही घटिया चरित्र 22 अगस्त 2019 को फिर देखने को मिला जब पूर्व केन्द्रीय गृह और वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की गिरफ्तारी हुई. चिदम्बरम के घर की दीवार फांदकर सीबीआई अन्दर दाखिल हुई और उन्हें गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई. चिदम्बरम की गिरफ्तारी से ज्यादा सरकार को उनकी बेइज्जती कराने की मंशा थी.

यही वजह है कि सीबीआई उन्हें कांग्रेस पार्टी के दफ्तर से गिरफ्तार करने पहुंची थी लेकिन चिदम्बरम उस वक्त प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे इसलिए सीबीआई उल्टे पाँव लौट गई. प्रेस कांफ्रेंस के बाद चिदम्बरम घर पहुंचे तो सीबीआई और ईडी की टीम ने एक साथ घर की दीवार फांदकर चिदम्बरम को किसी फरार मुजरिम की तरह से दबोच लिया. घर में पूछताछ के बाद उन्हें सीबीआई मुख्यालय लाया गया.

सीबीआई ने गिरफ्तारी के वक्त ही यह तय कर लिया था कि उन्हें इस तरह से गिरफ्तार किया जायेगा कि उन्हें रात भर लॉकअप में रहना पड़े और इसमें सीबीआई कामयाब हो गई. जेल भेजे जाने से पहले चिदम्बरम को जितना बेइज्जत किया जा सकता था किया गया.

इन्दिरा गांधी की सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई थी. बड़े-बड़े नेताओं को जेल काटनी पड़ी थी. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस चुनाव हार गई थी. जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे तब सरकार ने तय किया था कि इन्दिरा गांधी को गिरफ्तार किया जायेगा और हथकड़ी डालकर ले जाया जाएगा. इन्दिरा गांधी को गिरफ्तारी से पहले ही पूरी खबर मिल गई थी. पुलिस उनके घर पहुंची तो वह बगैर हथकड़ी के जाने को तैयार ही नहीं थीं लेकिन पुलिस उन्हें बगैर हथकड़ी के कार में बिठाकर ले गई.

इन्दिरा गांधी की दो बार गिरफ्तारी की गई. पहली बार पुलिस इतनी हड़बड़ी में पहुंची थी कि कोर्ट में जज के सामने उनके खिलाफ एक भी सबूत पेश नहीं कर पाई और कोर्ट ने इन्दिरा गांधी को रिहा करते हुए पुलिस की फटकार लगाई थी. दूसरी बार पुलिस तैयारी से आई और इन्दिरा गांधी को एक हफ्ते तिहाड़ जेल में गुज़ारने पड़े.

राजनीतिक बदला लेने के लिए हिन्दुस्तान में पुलिस, सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल राजनीति में लगातार हो रहा है. विपक्ष की मुश्कें कसने के लिए सरकार ने सीबीआई को तो इतना पंगु बना दिया है कि उसे तोता कहा जाने लगा है. हाल में महाराष्ट्र सरकार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने की बात कहने पर केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे को जेल भिजवाया.

कोरोना काल में एम्बुलेंस काण्ड का खुलासा करने पर बिहार में पप्पू यादव को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. पप्पू यादव का दोष यह था कि पहले तो उन्होंने बड़ी संख्या में खड़ी एम्बुलेंस पर पड़ा पर्दा उठाकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया और जब सरकार ने कहा कि ड्राइवर नहीं मिल रहे हैं इसलिए एम्बुलेंस खड़ी हैं तो पप्पू यादव अगले ही दिन खड़ी एम्बुलेंस से दुगनी संख्या में ड्राइवर लेकर पहुँच गए. सरकार को चुनौती देने के जुर्म में पप्पू याद को जेल भेज दिया गया.

सरकारों के सरोकार अब यह हो गए हैं कि जब तक हम सत्ता में रहें तब तक सिर्फ मेरी चाटुकारिता करते रहो. सरकार के खिलाफ बोलोगे या सरकार पर सवाल उठाओगे तो जेल जाओगे. सरकार ने एक तरफ तमाम राजनेताओं को जेल कटवाई है तो उन अधिकारियों की संख्या भी बहुत बड़ी है जो सरकार के खिलाफ मुंह खोलने या फिर सरकार की बात न मानने की वजह से जेल काट रहे हैं.

आईपीएस डीजी बंजारा का किस्सा तो अब लोग भूलने लगे होंगे. गुजरात के इस आईपीएस अधिकारी को सीखचों के पीछे डाला गया. जेल में रहते हुए ही यह आईपीएस अफसर रिटायर हो गया. रिटायरमेंट के छह साल बाद जब सीबीआई ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया तो सरकार ने महसूस किया कि बंजारा के साथ अन्याय हो गया है. बंजारा डीआईजी के पद से 2014 में रिटायर हुए थे. तो फिर उन्हें प्रमोशन का तोहफा दिया गया. सरकार ने उन्हें कागजों पर प्रमोट करते हुए 2007 में आईजी बना दिया. हकीकत में तो बंजारा रिटायर हो गए थे.

आईपीएस ज़हूर जैदी लखनऊ में पासपोर्ट अधिकारी रहे हैं. केन्द्रीय रेल मंत्री और विदेशमंत्री के साथ वह लम्बे समय तक अटैच रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में आईजी रहते हुए ज़हूर जैदी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया. सरकार ने इस तेजतर्रार अफसर को जेल में डाल रखा है.

बिलकुल ताज़ा मामला आईपीएस अमिताभ ठाकुर का है. अमिताभ ठाकुर 1992 बैच के आईपीएस अफसर हैं. अमिताभ की किसी भी सरकार से पटरी नहीं खाई. आईजी रहते हुए भी वह लगातार सरकारों पर सवाल उठाते रहे और सरकारों को मुश्किलों में डालते रहे. किसी भी मामले में हस्तक्षेप कर देना अमिताभ ठाकुर की ऐसी अदा है जिससे सरकार मुश्किल में पड़ जाती है.

अमिताभ ठाकुर तमाम मामलों के पीड़ितों के पक्ष में आवाज़ उठाते रहे हैं. उनके लिए अपनी नौकरी के साथ-साथ दूसरों की दिक्कतें भी ख़ास मायने रखती हैं. नौकरी से छुट्टी लेकर वह दूसरे जिलों में घटी आपराधिक घटनाओं की अपने स्तर से जांच करने के लिए भी वह चले जाते हैं और अपनी जांच रिपोर्ट डीजीपी और सरकार को सौंपते रहे हैं.

अब तक की सरकारों ने अमिताभ ठाकुर को किसी तरह से बर्दाश्त किया लेकिन मौजूदा योगी सरकार ने उनके पर कतरने की तैयारी कर डाली. पहले उन्हें समय से पहले ही रिटायर कर दिया गया. सरकार को उम्मीद थी कि अमिताभ रिटायर होकर पंख कटे पक्षी की तरह से गिरेंगे और उनकी आवाज़ बंद हो जायेगी लेकिन रिटायर होने के बाद तो उन्होंने अपने पूरे डैने खोल लिए और सरकार के खिलाफ अपनी आवाज़ तेज़ कर दी.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुत थोड़ा वक्त बचा है और रिटायर्ड अमिताभ बिलकुल नेता विपक्ष की तरह से मुख्यमंत्री पर हावी हो गए. उन्होंने गोरखपुर से मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. अपना राजनीतिक दल भी गठित कर लिया.

अमिताभ ठाकुर गोरखपुर जाने वाले थे तो उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया गया लेकिन आदत से ही मुकाबला करने वाले अमिताभ ने फिर नई तारीख घोषित कर दी. उनके गोरखपुर जाने की तैयारी थी. पुलिस उनके घर हाउस अरेस्ट की जानकारी देने पहुँच चुकी थी. इसी बीच वाराणसी की उस छात्रा का मामला गरमा गया जिसने सुप्रीम कोर्ट के सामने आत्मदाह कर लिया था. लड़की ने बीएसपी के एमपी पर रेप का इल्जाम लगाया था. पुलिस और प्रशासन लड़की की सुन नहीं रहा था. अमिताभ ठाकुर अपनी आदत के मुताबिक़ उसके भी सलाहकार बने हुए थे. उसकी कानूनी मदद की कोशिश कर रहे थे.

आत्मदाह में लड़की मर गई तो अमिताभ ठाकुर पर लड़की को आत्मदाह के लिए उकसाने का केस फ्रेम हुआ. डेढ़ बजे लखनऊ के हजरतगंज थाने पर एफआईआर लिखवाई गई और फ़ौरन ही पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए रवाना हो गई. आईजी की पोस्ट पर कम करने वाले अमिताभ ठाकुर को दरोगा और सिपाही लोअर में ही घर से घसीटते हुए जीप में ठूसकर अपने साथ ले गए. कोतवाली में उनके साथ क्या हुआ यह कोई नहीं जानता लेकिन जिस कमरे में उन्हें रखा गया था उससे उनके चिल्लाने की आवाजें बाहर आ रही थीं.

अमिताभ फिलहाल नौ सितम्बर तक जेल में रहेंगे. राजनीति का ककहरा पढ़ना हर किसी के बूते की बात नहीं होती यह बात करुणानिधि और चिदम्बरम जैसे राजनेता नहीं समझ पाए तो वर्दी पहनने वाले क्या सीखेंगे.

वास्तव में वर्दी सिर्फ सियासत का टूल बनकर रह गई है. जिन आईपीएस के सामने दरोगा सैल्यूट मारते हैं उन्हीं को अपराधी की तरह से घसीटते हुए भी ले जाते हैं. बदले की सियासत में जब पूर्व मुख्यमंत्री को पीटते हुए ले जाया जा सकता है. जब पूर्व गृहमंत्री की दीवार फांदकर गिरफ्तारी हो सकती है तो गिरफ्तार करने वाले दरोगाओं की क्या औकात. जब सबकी औकात टके सेर भाजी टके सेर खाजा वाली है तो क़ानून के राज की कल्पना तो बेमानी है.

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