आर.के. सिन्हा
लोकसभा में विगत 15 सितंबर को भारत-चीन के बीच चल रहे मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों पर चर्चा और 56 साल पहले 14 अप्रैल, 1962 को भारत-चीन युद्ध के बाद हुई बहस में जमीन-आसमान का अंतर है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी तनाव पर चीन को साफ शब्दों में सन्देश दे दिया कि भारत भी पूरी तरह से तैयार है। अगर ड्रैगन सीमा पर कोई हरकत करेगा तो हमारे जवान उसे माकूल जवाब देंगे। सेना के लिए विशेष अस्त्र-शस्त्र और गोला बारूद की पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई है। उम्मीद है कि नए भारत का यह अंदाज चीन को समझ में आ जाना चाहिए।
चीन को हमेशा यही लगता है कि वह जब चाहे और जहाँ चाहे भारत को दबा लेगा। उसे गलतफहमी इसलिए हुई है क्योंकि 1962 में जंग में हारने के बाद भी भारत ने उससे अपनी छीनी हुई जमीन मांगने तक की हिम्मत भी नहीं दिखाई। परिणाम यह हुआ कि चीन सिर पर चढ़ता ही चला गया। लद्दाख में भारत आज चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है, यह सच है। पर मौजूदा स्थिति पहले से बिलकुल अलग है।
भारत सभी परिस्थितियों से निपटने के लिए आज सक्षम है। जब भी देश के समक्ष कोई चुनौती आई है भारतीय संसद ने सेना के प्रति पूरी प्रतिबद्धता दिखाई है। अब तो यह जगजाहिर हो चुका है कि चीन ने एलएसी पर यथास्थिति बदलने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन बहादुर भारतीय जवानों ने ड्रैगन की हरकतों को सफल नहीं होने दिया और उन्हें उसे करारा जवाब दिया।
दोनों देशों के बीच लद्दाख की सीमा पर जो कुछ गुजरे महीनों में हुआ उसके लिए चीन को माफ नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए। वैसे, अब चीन की भी आंखें खुल गई हैं। भारत ने भी दोनों देशों की सरहद पर अपने लड़ाकू विमानों से लेकर दूसरे तमाम प्रलयंकारी अस्त्र भी तैनात कर दिए हैं।
अब चीन की किसी भी हरकत का कायदे से जवाब देने के लिए भारत की थल-जल और वायुसेना पूरी तरह तैयार है। भारत को अपने कदम सोच-विचार कर ही बढ़ाने होंगे। सरकार को कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। क्योंकि, यह लगता तो यही है कि वे पूरी तरह चीन के साथ खड़े हैं। इस संकटकाल में राहुल गांधी देश से बाहर चले गए हैं।
यही विपक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए कह रहा था कि भारतीय सैनिकों के लद्दाख में शहीद होने के बाद उन्होंने जो बयान दिया उसमें चीन का उल्लेख नहीं किया। लेकिन, मोदी ने सर्वदलीय बैठक में तो चीन पर बार-बार निशाना साधा। उस बैठक में कांग्रेस के तमाम नेता मौजूद थेI क्या अब भी कोई कहेगा कि देश चीन के आगे नतमस्तक हो रहा है?
अब जरा 56 साल पहले चले चलते हैं। चीन से पराजय के बाद 14 नवंबर,1963 को संसद में युद्ध के बाद की स्थिति पर चर्चा हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बात रक्षात्मक रूप से रखते हुए कहा-“अपने को विस्तारवादी शक्तियों से लड़ने का दावा करने वाला चीन खुद विस्तारवादी ताकतों के नक्शे कदम पर चलने लगा।” उन्होंने बताया था कि चीन ने किस तरह से भारत की पीठ पर छुरा घोंपा।
वे बोलते ही जा रहे थे। तब एच.वी. कामथ ने कहा,’ आप बोलते रहिए।’ अब नेहरूजी विस्तार से बताने लगे कि चीन ने भारत पर हमला करने से पहले कितनी तैयारी की हुई थी। इसी बीच, करनाल से सांसद स्वामी रामेश्वरानंद ने तेज आवाज में कहा,’मैं तो यह जानने में उत्सुक हूं कि जब चीन तैयारी कर रहा था,तब आप क्या कर रहे थे?’ अब नेहरू जी आपा खो बैठे और कहने लगे, “मुझे लगता है कि स्वामी जी को कुछ समझ नहीं आ रहा।” प्रधानमंत्री नेहरू के मन में चीन से लड़ने की कहीं कोई मंशा नहीं थी।
कौन नहीं जानता कि नेहरू की पिलपिली चीन नीति का ही परिणाम रहा कि देश को अपने पड़ोसी से 1962 में युद्ध लड़ने की नौबत आ गई। चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को गले लगाने और “हिंदी चीनी भाई-भाई” के नेहरू के उदारवादी नारों को घूर्त चीन ने भारत की कमजोरी समझ ली। उस युद्ध के 56 सालों के बाद आज भी चीन ने हमारे महत्वपूर्ण अक्साईचीन पर अपना कब्ज़ा जमा रखा है।
चीन की तरफ से कब्जाये हुए भारतीय इलाके का क्षेत्रफल कोई छोटा नहीं पूरा 37,244 वर्ग किलोमीटर है। जितना क्षेत्रफल पूरी कश्मीर घाटी का है, उतना ही बड़ा है अक्सईचिन। शर्म की बात है कि नेहरु, इंदिरा और राजीव गाँधी सरकार समेत किसी भी कांग्रेसी सरकारों ने कभी चीन से कब्जाई हुई अपनी जमीन को वापस मांगने की परवाह तक नहीं कीI
नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान चीन से सम्मान और अपनी भूमि खोने वाले और मोदी जी के नेतृत्व वाले भारत में बहुत अंतर है। आज के भारत ने चीन को उसकी औकात समझा दी है। पहले डोकलम और फिर लद्दाख पर भारत चीन के आगे तनिक भी झुका नहीं। इसबार उसे भारत सरकार द्वारा अच्छी तरह समझा दिया गया है कि भारत अब उसे घर तक नहीं छोड़ेगा।
राजनाथ और विदेश सचिव एस. जयशंकर स्वयं चीन से बात कर रहे हैं। दोनों ने चीन को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि भारत सीमाई इलाकों में मुद्दों का हल शांतिपूर्ण तरीके से किए जाने के प्रति प्रतिबद्ध है। लेकिन, भारत अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए भी पूरी तरह प्रतिबद्ध है। अगर चीन पूरी तरह से समझौते को माने तो विवादित इलाके से सेना को हटाया जा सकता है। इससे कम पर फिलहाल भारत कुछ भी मानने को तैयार नहीं।
अभी की स्थिति के अनुसार तो चीन ने एलआईसी के अंदरूनी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिक और गोला बारूद जमा कर रखे हैं। चीन की कार्रवाई के जवाब में हमारी सेना ने भी पूरी सुरक्षात्मक जवाबी तैनाती कर रखी है। देश को आश्वस्त रहना चाहिए कि हमारी सेना किसी भी आक्रामक चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करेगी।
बेशक, भारत की यह दिली चाहत है कि चीन से मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों को खत्म कर रिश्तों की एक नई इबारत लिखी जाए। कोविड-19 के इस भयावह दौर में दोनों देश सारी दुनिया को अपने स्तर पर मदद पहुंचाएं, क्योंकि इनमें यह क्षमता है। पर दूसरी तरफ भारत यह भी मन बना चुका है कि इसबार चीन से जंग छिड़ी तो भारतीय फौजें बीजिंग में डेरा डाल देंगी।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)