नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दिल्ली के वैसे निजी स्कूल जो सरकारी भूमि पर नहीं बने हैं या जिन्होंने स्कूल के निर्माण में कोई सरकारी मदद नहीं ली है, वे सरकार की अनुमति के बगैर फीस बढ़ा सकते हैं। जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ये फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि निजी स्कूल जब अपनी फीस बढ़ाएं तो दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को सूचित करें। हालांकि कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि शिक्षा निदेशालय स्कूलों का अकाउंट चेक करने के बाद अगर पाता है कि स्कूल मुनाफे में हैं, तब वो स्कूल से बढ़ी हुई फीस वापस लेने का आदेश दे सकता है।
याचिका दिल्ली के रामजस स्कूल ने दायर किया था। याचिका में शिक्षा निदेशालय के 18 जुलाई, 2017 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें रामजस स्कूल की ओर से शैक्षणिक सत्र 2016-17 के दौरान स्कूल बढ़ी हुई फीस वापस करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से वकील सुनील गुप्ता और कमल गुप्ता ने कहा था कि एक निजी स्कूल है और सरकार की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं मिलती है और न ही उन्होंने सरकार से रियायती दर पर जमीन मिली है। इसलिए उन पर शिक्षा निदेशालय की फीस वापस करने का आदेश लागू नहीं होता है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से वकील रमेश सिंह और शिक्षा निदेशालय की ओर से वकील संतोष कुमार त्रिपाठी और चिरायु जैन ने कोर्ट से कहा कि कोई भी स्कूल शिक्षा का व्यावसायीकरण न करे, यह देखना उसकी जिम्मेदारी है। इसी को ध्यान में रखते हुए शिक्षा निदेशालय ने यह आदेश दिया था कि निजी स्कूल बिना उसकी अनुमति के फीस नहीं बढ़ा सकते हैं। शिक्षा निदेशालय ने कहा कि स्कूल के खाते में पर्याप्त राशि थी, इसके बावजूद उन्होंने फीस बढ़ाकर छात्रों के अभिभावकों पर बोझ बढ़ा दिया।
हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षा निदेशालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा का व्यावसायीकरण नहीं हो और उससे स्कूल मुनाफा न कमाने लगें। कोर्ट ने कहा कि जो स्कूल सरकारी भूमि पर नहीं बने हैं या उन्होंने कोई सरकारी मदद नहीं ली है, उन्हें फीस बढ़ाने के पहले शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। शिक्षा निदेशालय को स्कूल के खातों का परीक्षण करने के बाद अगर ये लगता है कि वे मुनाफाखोरी कर रहे हैं तो वो बढ़ी हुई फीस पर रोक लगाने का आदेश दे सकता है।