लेखक-रमेश सर्राफ धमोरा
गत दिनो दिल्ली के कैपिटल ग्रीन डीएलएफ अपार्टमेंट में सीवर की सफाई करते हुए पांच लोगों की मौत हो गई थ। इसी तरह दिल्ली के घिटोरनी इलाके के सीवर में काम करते हुए चार लोगो की मौत हुई थी। 6 अगस्त 2017 को लाजपत नगर में दो जनो की दम घुटने से जान चली गई थी। वहीं 21 अगस्त 2017 को दिल्ली में ऋषिपाल की भी सीवर की सफाई करते हुए मौत हुई थी। गुडग़ांव में तीन की मौत हो गई थी। पंजाब के तरणतारण में दो लोग भी इसी तरह मौत का शिकार हुए थे। भिवानी सेक्टर 26 के औद्योगिक क्षेत्र में सीवरेज सफाई के दौरान दो सफाई कर्मचारियों की गटर में गिरने से मौके पर ही मौत हो गई थी। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में एक सीवर की सफाई करते समय दम घुटने से कम से कम सात लोगों की मौत हो गई थी। पुलिस सूत्रों ने बताया था कि सीवर में रासायनिक अवशेष था। इस तरह की खबर हम आये दिन पढ़ते-सुनते रहते हैं।
भारत में औसतन हर दूसरे-तीसरे दिन गटर साफ करने के दौरान एक सफाईकर्मी की मौत होती है। देश में इस साल अब तक करीब 89 लोगों की मौत इस काम के दौरान हुई हैं। इसी तरह 2017 में गटर सफाई के दौरान 136 मौते हुयी थी। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों के मुताबिक हर 5 दिन में एक सफाई कर्मचारी की मौत गटर में होती है। अधिकतर टैंक की सफाई के दौरान मरने वालों की उम्र 20 से 50 वर्ष के लोगों की होती है। इसके बावजूद भी समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी यह महसूस ही नहीं किया कि इन नरक-कुंडो की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है। नरक कुंड की सफाई का जोखिम उठाने वाले लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था के कई कानून हैं और मानव अधिकार आयोग के निर्देश भी हैं। मगर वो किताबों में दबे रहते हैं। इस अमानवीय त्रासदी में मरने वाले अधिकांश लोग असंगठित दैनिक मजदूर होते हैं। इस कारण इनके मरने पर ना तो कहीं विरोध दर्ज होता है और न ही भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के कोई प्रभावी उपाय।
सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सीवर की सफाई के लिए केवल मशीनों का ही उपयोग किया जाना चाहिये। इसके बावजूद इन सफाई कर्मचारियों को बिना किसी तकनीक यंत्र के शरीर पर सरसों का तेल लगाकर गटर में सफाई करने उतारा जाता है।
एक तरफ दिनों-दिन सीवर लाईनो की लंबाई में वृद्वि हो रही है वहीं दूसरी तरफ मजदूरों की संख्या में कमी आई है। देश में चल रहे स्वच्छ भारत अभियान के कारण हर छोटे-बड़े शहरो में सीवरेज लाईने डाली जा रही है। मगर सरकार इस बात की कोई व्यवस्था नहीं कर रही है कि देश भर में डाली जा रही सिवरेज लाईनो की साफ – सफाई कैसे होगी। जिन स्थानो पर हाल के वर्षों में सिवरेज सिस्टम शुरू किया गया है, वहां भी उसकी सफाई का पुराना तरीका ही काम में लिया जा रहा है।
सरकार को सर्वाच्च न्यायालय व राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने भी कई बार निर्देशित किया है कि सीवर की मशीनो से ही सफाई करवायें। मगर सरकार पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। आज देश में साफ-सफाई करना व कूड़े का निस्तारण करना एक बड़ी समस्या बन चुका है। दिल्ली के पास कुतुबमिनार से भी ऊंचे कूड़े के पहाड़ की खबर हम कई बार समाचार पत्रों में पढ़ चुके हैं। यही हाल देश के अन्य शहरो का भी है। जहां कूडें का निस्तारण करना एक बड़ी समस्या बनी हुयी है।
ऐसे में सरकार को चाहिये कि देश में सफाई करने के आधुनिक पद्धति के प्रशिक्षण केन्द्र खोले जायें। देश में जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों के लिये प्रशिक्षण केन्द्र, कालेज, विश्वविधालय संचालित किये जा रहे हैं उसी तरह से गांव,शहरों की सफाई, सीवरेज की अत्याधुनिक तरीके से सफाई, कूडें के व्यवस्थित निस्तारण के लिये देश के हर राज्य में प्रशिक्षण केन्द्र की व्यवस्था हो। जहां से ट्रेंड लोगों को विभिन्न शहरों, गांवो में सफाई कार्य के लिये नियुक्त करें। इससे जहां साफ-सफाई वैज्ञानिक पद्धति से हो पायेगी वहीं सीवर में होने वाली मौत पर भी रोक लग सकेगी।
सरकार को चाहिये कि जब भी सीवरेज डालने का नया प्लान बने उसी वक्त सीवरेज पर खर्च होने वाली राशि में से कुछ राशि सीवरेज की साफ-सफाई के उपयोग में आने वाली मशीनो के खरीदने के लिये भी उपलब्ध करवायी जाये। उक्त राशि का प्रयोग सीवरेज बनने के बाद उसकी सफाई में काम आने वाली मशीनो को खरीदने में किया जाये। अभी सरकार को चाहिये कि सीवरेज की सफाई में प्रयुक्त हाने वाली मशीनो की तत्काल व्यवस्था करवायें ताकि बेवजह हो रही निरीह लोगों की मौत पर रोक लगायी जा सके। गटर की सफाई करने के दौरान सफाई कर्मी की खुद की जान तो जाती ही है, इसके साथ ही इनका पूरा परिवार भी अनाथ हो जाता है। आमदनी का स्रोत खत्म हो जाने के कारण उसके मासूम बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ दो वक्त के खाने की भी परेशानी हो जाती है। इससें मरने वालों का पूरा परिवार बेसहारा हो जाता है।