रायबरेली। घर लौटे प्रवासी मजदूर अब अपनों के लिये परेशानी का सबब बनने लगे हैं और उनके रवैए ने प्रशासन के सामने भी एक नई चुनौती पैदा कर दी है। दिल्ली, मुम्बई, इंदौर, पुणे, सूरत, अहमदाबाद आदि शहरों से लौटे ये मजदूर कोरोना के मानकों का बिल्कुल भी पालन नहीं कर रहे हैं। इनके निगरानी के लिए गांवों में बनाई गई समितियां भी इनके लिए बेमानी है।
गांव वाले जब इनसे सोशल डिस्टेंसिंग आदि के लिये कहते हैं तो इनमें ज्यादातर विवाद पर उतारू हो जाते हैं। निगरानी समिति के लिए दोहरी समस्या है एक तो ये प्रवासी उनकी बात नहीं मानते दूसरी ओर जब इस सम्बंध में अधिकारियों को जानकारी दी जाती है तो वह भी पल्ला झाड़ लेते हैं। गांवों की राजनीति भी इसमें अपनी भूमिका निभा रही है। जिले भर में प्रवासी मजदूरों द्वारा किये गए कई ऐसे मामले रोज सामने आ रहे है,जिनसे गावों में कोरोना संक्रमण का डर बढ़ता जा रहा है।
एकान्तवास केन्द्रों से भाग रहे प्रवासी
प्रवासी लगातार पुलिस और प्रशासन को चुनौती दे रहे हैं। श्रमिक ट्रेन से लौटे एक प्रवासी को जब थर्मल स्कैनिंग के बाद अलग किया गया तो वह वहां मौजूद कर्मचारियों को धता बताते हुए अपने घर चला आया। बेहटा निवासी एक प्रवासी तो एकान्तवास केंद्र से ही भाग खड़ा हुआ जिसे बड़ी मुश्किल से दोबारा पकड़ कर वापस लाया जा सका। प्रवासियों के एकान्तवास केंद्रों से भागने की कई घटनाएं समय समय पर सामने आती रहती हैं। जिनसे गांवों में कोरोना का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।प्रवासियों की इस लापरवाही के आगे प्रशासन भी बेबस है और हर संभव कोशिश में जुटा है
शारीरिक दूरी के लिए कहा तो की मारपीट
प्रवासी मजदूर घरों में न रहकर पूरे गांव में घूमते रहते हैं। इस तरह की कई शिकायतें पुलिस को मिली हैं। ऊंचाहार के पूरे गुरुदीन में जब प्रवासियों को जब शारीरिक दूरी के लिये कहा गया तो वह मारपीट करने लगे और मामला पुलिस तक जा पहुंचा। इस तरह की घटनाएं रोज पुलिस के सामने आ रही है।
सरेनी में तो एक प्रवासी को जब शारिरिक दूरी के लिए उसके पड़ोसी ने समझाया तो वह विवाद करने लगा और पड़ोसी के ऊपर ही थूकने लगा।बड़ी मुश्किल के बाद वहां मौजूद लोगों ने मामला शांत कराया। प्रवासियों की इस समस्या ने पुलिस के सामने भी एक नई चुनौती पेश की है। गांवों में बनी निगरानी समिति भी खाना पूर्ति के अलावा और कुछ करने में बेबस हैं।
कोरोना संक्रमण रोकने में राजनीति बनी बाधा
सरकार की कोरोना संक्रमण को रोकने की कोशिशों में गांव की राजनीति बड़ी बाधा बन रही है। पंचायत चुनाव नजदीक होने से यह समस्या और भी विकट हो गई है। प्रवासियों के घरेलू एकान्तवास के लिए जो निगरानी समिति बनाई गई है, उसका अध्यक्ष प्रधान होता है। वह अपना राजनीतिक हित साधने में लगा रहता है और प्रवासियों पर किसी तरह का दबाब नहीं डाल पाता। कुछ जगहों में तो प्रधान या संभावित उम्मीदवार प्रवासियों को उनकी मनमानी के लिए सहयोग भी करते हैं।
गांवों में प्रवासियों को लेकर पंचायत की राजनीति में रुचि रखने वाले लोंगो ने गुट भी बना दिये हैं।जो अपने अपने लोगों का बचाव भी करते हैं। इस राजनीति ने एक नई समस्या पैदा कर दी है। प्रशासन के लिए बनी यह चुनौती कोरोना के खतरे को बढ़ा रही है। पंचायत की यह राजनीति कोरोना के खतरे को गावों में बढ़ा रही है। जिसके प्रति गांव वालों को खुद ही सावधान रहने की जरूरत है।