काबुल। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और अमेरिकी फौज की वापसी के बाद काबुल में तालिबान नई सरकार के गठन की तैयारी कर रहे हैं। तालिबान ने कई बार कहा है कि वो मुल्क की हर जनजाति और बड़े कबीलों को सरकार में जगह देना चाहते हैं। अब तक इस बारे में तस्वीर साफ नहीं हो सकी है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, तालिबान एक शूरा काउंसिल की मदद से देश की शासन व्यवस्था को अंजाम देना चाहते हैं और इसके लिए तैयारियां की जा रही हैं।
एक प्रधानमंत्री और कैबिनेट भी होगी, जो सरकार के कामकाज को अमलीजामा पहनाएंगे। ईरान की तर्ज पर एक सुप्रीम लीडर भी हो सकता है।
शूरा और दूसरी व्यवस्थाएं
सूत्रों के मुताबिक, तालिबान की हुकूमत में शूरा सबसे ताकतवर हो सकती है। इसकी कमान भी तालिबान के हाथ में होगी। तालिबान के प्रमुख शेख हिब्तुल्लाह अखुंदजादा सुप्रीम लीडर होंगे। प्रधानमंत्री भी होगा जिसे रईस उल वजीरा कहा जाएगा। उसकी कैबिनेट भी होगी। कैबिनेट शूरा के अधीन काम करेगी।
प्रांतों की सरकार या विधानसभाओं को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। न्यायिक मामलों को बहुत बारीकी और सख्ती से देखा जाएगा। इसके लिए अलग व्यवस्था होगी। संभव है इसके लिए शरिया कानूनों की मदद ली जाए।
क्या है शूरा और किन देशों में है
शूरा अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ एक ऐसी समिति या कमेटी से है जो सलाह या परामर्श देती है। जानकारी के मुताबिक, फिलहाल किसी इस्लामिक देश में पूरी तरह शूरा लागू नहीं है। हां, कई देश ऐसे हैं जहां किसी न किसी रूप में इसका अस्तित्व है, लेकिन वहां इसका आदेश आखिरी आदेश नहीं कहा जा सकता है।
1990 के दशक में एक शब्द काफी सुना जाता था यानी प्रचलन में था। क्वेटा शूरा। दरअसल, तालिबान के कई बड़े नेता सीधे तौर पर पाकिस्तान से जुड़े रहे हैं और इनके क्वेटा शहर से काफी गहरा रिश्ता रहा है। ये नेता यहां बैठकर आदेश जारी करते थे। इसलिए इसे क्वेटा शूरा कहा जाता था। अशरफ गनी और हामिद करजई ने भी कई बार इसका जिक्र किया, लेकिन पाकिस्तान क्वेटा शूरा के अस्तित्व से इनकार करता है।
शूरा काउंसिल और कहां
कई देशों में आंशिक या प्रतीकात्मक तौर पर शूरा काउंसिल काम करती हैं। इनका काम सरकार या शासन व्यवस्था को सलाह देना होता है। इनके नाम का इस्तेमाल भी अलग-अलग रूप में होता है। मसलन, पाकिस्तान की संसद को मजलिस-ए-शूरा भी कहा गया है। मिस्र में संसद के उच्च सदन को शूरा काउंसिल कहा जाता है।
इंडोनेशिया में भी करीब-करीब ऐसा ही मामला है। सऊदी अरब में राजशाही है, लेकिन वहां भी सलाहकार परिषद के तौर पर शूरा काउंसिल मौजूद है। ओमान में भी यही व्यवस्था है। शूरा काउंसिल वहां सलाह तो दे सकती है, लेकिन सुल्तान चाहे तो इसे मानने से इनकार कर सकता है। कतर में भी शूरा काउंसिल है।
ईरान में भी शूरा की व्यवस्था है। हालांकि, ज्यादातर मुस्लिम देशों में शरियत से जुड़ी कम या ज्यादा बातों को कानूनी जामा पहनाया गया है। इसे लीगल सिस्टम का हिस्सा बनाया गया है।
तालिबान की पहली हुकूमत के कानून
- पुरुषों के लिए दाढ़ी रखना जरूरी था। महिलाओं के लिए अबाया या फुल बुर्का अनिवार्य था।
- मनोरंजन के साधनों मसलन सिनेमा, टीवी या संगीत पर पूरी तरह पाबंदी।
- दस साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों की शिक्षा पर रोक। नौकरी नहीं कर सकतीं थीं।
- महिलाओं के घर से बाहर निकलते वक्त किसी पुरुष रिश्तेदार का साथ होना आवश्यक था।
- पुरुष डॉक्टर महिलाओं का इलाज नहीं कर सकते थे।
- संगसारी यानी पत्थरों से मारकर मौत देना और गला रेतना, कोड़े मारना और सार्वजनिक फांसी सजा के तरीके थे।