नक्कारखाने में तूती की तरह बज रही मुख्य चुनाव आयुक्त की आवाज

लेखक-ओमप्रकाश मेहता

इन दिनों सबसे दयनीय स्थिति देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत जी की है, वे राजनीति के चलन और प्रजातंत्र के सबसे बड़े त्यौहार चुनाव दोनों को मजाक बनाए जाने से बहुत दुःखी है और इसी कारण राजनीति के ‘नक्कारखाने’ में अपनी आवाज बुलंद करने की नाकाम कौशिश कर रहे हैं, जबकि प्रजातंत्र और राजनीति के ठेकेदार उनकी आवाज को ‘‘तूती’’ से अधिक नहीं मानते? जो भी हो, रावत साहब की आवाज को कुछ भी समझा जाए, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन का कुछ तो ‘शेष’ रावत साहब में समाहित है, वर्ना इस देश में तो इन दिनों सिर्फ एक ही आवाज सुनी जाती है, और उस शख्स को हर कोई जानता है, जो अपनी आवाज (आदेश या फरमान) को भारत नहीं विश्व रचयिता की आवाज से कम नहीं मानतें।

एक प्रजातांत्रिक या लोकतंत्रीय देश या उसके किसी भू-भाग में चुनाव होते है तो देश का मुख्य चुनाव आयुक्त ही उस भू-भाग का असली प्रशासक होता है, ऐसा ही वर्तमान में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी है, उनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित सभी राज्यों के मुख्य प्रशासक या नियंत्रक मुख्य चुनाव आयुक्त जी ही है। इसलिए इन राज्यों में आकर यदि आयुक्त जी कुछ कहते है तो उस पर सभी को गंभीर होकर ध्यान देना चाहिए, लेकिन आजकल तो सभी को पता है कि राजनीति से ऊपर कुछ भी नहीं है (ईश्वर भी नहीं) तो फिर बैचारे रावत जी की क्या बिसात?

किंतु उससे और आपके कहने से फर्क पड़ता किसको है? रावत साहब की दलील थी कि पिछले चुनावों में कुल उन्नीस करोड़ अवैध रूपया जब्त किया गया, जबकि इस चुनाव में अभी जबकि मतदान में एक पखवाड़े की देर है, अब तक इक्कीस करोड़ रूपया जब्त किया जा चुका है। उनका कहना था कि यदि शराब सहित अन्य जब्त नशीले पदार्थों का मूल्यांकन किया जाए तो यह कुल मिलाकर इक्यावन करोड़ रूपए से भी अधिक होता है। मध्यप्रदेश में अभी तक छः लाख लीटर अवैध शराब चुनाव आयोग द्वारा जब्त की जा चुकी है और कानून की दृष्टि से एक लाख 44 हजार लोगों को घेरे में लिया गया है।

आदरणीय रावत साहब, आप सीधे तो मौजूदा पद पर पहुंचे नहीं है, आपने भी कलेक्टर या प्रशासकीय अधिकारी के रूप में अब तक सैकड़ों चुनाव कराये है, और ये परिदृष्य भी कोई नए नहीं है, पिछले तीन-चार दशक से यही सब होता आया है चुनावों में। पूरे चुनावी खाने में ही ‘भांग’ पड़ी हुई है तो आप कहां-कहां चुनावी सहभोज को ‘भांग रहित’ करते रहेंगे, और क्यों व्यर्थ अपना रक्तचाप (बी.पी.) बढ़ा रहे है, इस चलन को या तो वो खत्म कर सकता था, जो आपके ही पद पर बैठकर मुख्यमंत्रियों के हाथों में अपना सूटकैस या जूते थमाता था, या फिर राजनैतिक नेतृत्व इसे कड़ाई से ठीक कर सकता है, जिससे ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। हाँ, यदि आप टी.एन. शेषन को अपने में विराजित कर लें और आर-पार पर उतर जाएं तो भी यह संभव है।

किंतु आज के राजनीतिक माहौल में देश के किसी भी संवैधानिक संगठन को कानून के अनुसार स्वतंत्र रूप से काम करने की छूट नहीं है, जैसा कि आरोपित है? तो फिर ऐसे में आप अपने चुनाव आयोग की ही साख को बचाकर रख लें, वहीं देशहित में होगा। कहीं चुनाव आयोग पर भी किसी ओर का कब्जा न हो जाए, इसका आप विशेष ध्यान रखिये, और इस दुरावस्था या चलन से दुःखी होने के बजाए इसी के साथ अपनी व आयोग की इज्जत बचाकर रखने का प्रयास करिये। हाँ, आप अपने स्तर पर चुनाव खर्च की सीमा के उल्लंघन या अन्य गैर कानूनी हरकतों पर एक सख्तीपूर्ण कदम उठा लीजिये तो उस पर अल्पकालीन लगाम लग सकती है?

हाँ, और यदि आप इन कुरीतियों को खत्म करने में अपने आपको कुशल व योग्य मानते है तो फिर आगे बढ़िये, पूरा देश आपके पीछे खड़ा नजर आएगा, क्योंकि लोकतंत्र का क्षरण किसी को भी पसंद नहीं है, राजनीति के ‘नक्कारखाने’ में अपनी आवाज को और ऊँची आवाज में बुलंद करिये, पूरा देश आपका अभिनंदन करेगा।

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