नागरिकों को पीछे छोड़ भारत को आगे रखने का विचार और पिछड़ते भारतीय

आकार पटेल

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसकी जीडीपी का आकार 26 खरब (ट्रिलियन) डॉलर है। इसके बाद चीन है जिसकी जीडीपी 19 खरब डॉलर है। तीसरे नंबर पर 4.4 खरब डॉलर के साथ जापान, चौथे नंबर पर 4.3 खरब डॉलर की जीडीपी वाला जर्मनी और पांचवें नंबर पर 3.7 खरब डॉलर की जीडीपी के साथ भारत है।

पिछले महीने हुए वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान, यानी 2024 से 2029 तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। उन्होंने इसके लिए ‘मोदी गारंटी’ का ऐलान भी किया कि ऐसा ही होगा।

इस साल मई महीने में अंग्रेजी अखबार हिंदू बिजनेसलाइन ने एक हेडलाइन प्रकाशित की, ‘बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2022 तक भारत से अधिक’। इस रिपोर्ट में बताया गया कि बांग्लादेश प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में 2019 में ही भारत से आगे निकल गया था।

वैसे ये दोनों बाते सहीं हैं कि भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है और भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बांग्लादेश से पीछे है। लेकिन इनमें से क्या महत्वपूर्ण है यह इस बात पर निर्भर है कि आप इसे कैसे देखते हैं।

अगर भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है तो इससे क्या होगा? जर्मनी की आबादी 8 करोड़ है, और हमारी 140 करोड़। जिस बिंदु पर हम जर्मनी के बराबर हो जाएंगे और उससे आगे निकल जाएंगे, इसका अर्थ होगा कि एक जर्मन नागरिक जितनी जीडीपी का उत्पादन करता है, उतनी जीडीपी के उत्पादन में 17 भारतीयों का योगदना होगा। इसके बावजूद औसत भारतीय औसत बांग्लादेशी से गरीब ही होगा।

एक और स्टोरी को देखते हैं जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत तो आगे बढ़ रहा है लेकिन भारतीय पीछे छूट रहे हैं। हाल ही में कनाडा के इस आरोप के बाद कि एक कनाडाई नागरिक की हत्या में भारत सरकार का हाथ है, भारत ने क्रोधित होकर कनाडा के 41 राजनयिकों को देश छोड़ने का फरमान जारी किया है।

कनाडा में हमारे 21 राजनयिक हैं, जबकि भारत में कनाडा के 62 राजनयिक थे। इसलिए अतिरिक्त जो 41 राजनयिक हैं उन्हें कनाडा वापस भेजा जाना है। इन राजनयिकों ने भारत छोड़ना शुरु कर दिया होगा। लेकिन इनके भारत छोड़ने का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि भारत ने राजनयिक स्तर पर कनाडा से बराबरी की है, और भारत जीत गया है। लेकिन कनाडाई राजनयिकों के भारत छोड़ने से सर्वाधिक प्रभावित कौन होगा? निस्संदेह भारतीय।

वर्तमान में कनाडा में विदेशी छात्रों का मुख्य स्रोत भारत है। कनाडा के शिक्षण संस्थानों में करीब 2,30,000 भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं। और भारत में कनाडा के कम राजनयिकों की संख्या का मतलब होगा कि छात्रों के लिए वीजा और वीजा एक्सटेंशन में देरी और दिक्कतें होंगी। अभी 2022 में ही कनाडा ने भारतीयों को 1.85 लाख छात्र वीजा जारी किए हैं।

छात्रों के अलावा 2022 में 5.84 लाख अन्य भारतीयों ने भी कनाडा की यात्रा की है। इसके विपरीत हर साल करीब 3.5 लाख कनाडाई भारत आते हैं। ऐसा माना जा सकता है कि इनमें से अधिकतर भारतीय मूल के लोग हैं। इसलिए एक खास कारण था कि कनाडा को भारत में अपने हाईकमीशन (उच्चायोग) में अधिक राजनयिक रखने होते थे। लेकिन इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हम तो पहले भारत को आगे रखते हैं, और भारतीयों को उसके बाद।

इस विचार पर कि ‘राष्ट्र’ को सबसे पहले, लोगों से आगे रखा जाना चाहिए, आरएसएस और जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय ने अपने चार व्याख्यानों में जोर दिया है, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘एकात्म मानववाद’ के रूप में प्रकाशित किया गया है। उपाध्याय  चाहते हैं कि भारत महान बने लेकिन यह कैसे महान बनेगा इसके बारे में कोई विवरण नहीं देते हैं। संभवत: एक स्वर में ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाना ही वह कदम प्रतीत होता है जो वह चाहते हैं कि हम करें।

इसी उपदेश के साथ वह अपना व्याख्यान समाप्त करते हैं। नारा लगाने से क्या हासिल होगा? यह जीत कैसी होगी और हमें कैसे पता चलेगा कि भारत जीत गया है? एकात्म मानववाद में ऐसे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया गया है। दरअसल, उनसे यह पूछा तक नहीं गया है।

कोई भी व्यक्ति उपाध्याय के साथ-साथ आज के हिंदुत्व समर्थकों द्वारा दिखाए जा रहे एक ज्वलंत जुनून को महसूस कर सकता है और यह सच है कि उनमें से कई बेहद प्रेरित लगते हैं। लेकिन किस दिशा के लिए प्रेरित हैं? एकात्म मानववाद क्या है, जिसे बीजेपी अपना ‘बुनियादी दर्शन’ बताती है, और जिसे अंततः हासिल करना उसका लक्ष्य है? यह उपाध्याय के लेखन या उनके जनसंघ के उन घोषणापत्रों से स्पष्ट नहीं है जो ‘राष्ट्रीय कायाकल्प यज्ञ’ जैसी चीजों की बात करते हैं।

भारत की समस्याएं भौतिक हैं। भारत में जो अविकसित है वह धर्म और अध्यात्मवाद नहीं है – हमें ऐसी चीजों में विश्व नेता भी माना जा सकता है – यह अर्थव्यवस्था और कानून का शासन है। राष्ट्रों की भलाई मापी जा सकती है, क्योंकि यह उसके लोगों की भलाई है। यह शिशु मृत्यु दर और लिंग अनुपात में, मानव विकास सूचकांक में और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और औसत आय में, नोबेल पुरस्कारों में, वैज्ञानिक आविष्कारों और परोपकारी योगदान में निहित है। एकात्म मानववाद में भारत को वहां तक पहुंचाने का कोई रोडमैप नहीं है। न ही वहां पहुंचने की इच्छा की अभिव्यक्ति ही होती है।

राष्ट्र की ऐसी प्रगति जिसे मापा जा सके, उसका जिक्र उनके लेखन में या तो आकस्मिक है या अप्रासंगिक है। उपाध्याय की रुचि अमूर्त इकाई में है। उपाध्याय का भारत, लोगों, आस्थाओं, संप्रदायों, राज्यों, भाषाओं, खान-पान की प्राथमिकताओं, संगीत, असहमति और विवादों वाला एक वास्तविक राष्ट्र नहीं है। यह एक निर्माण है। भारत माता भौगोलिक रेखाओं की एक मानवाकृति है, एक कल्पित मानचित्र है, एक विचार है।

संघ के दूसरे प्रभावक गुरु गोलवलकर ने भारत को तिब्बत सहित परिभाषित किया, क्योंकि उनके मुताबिक यह देवताओं का निवास स्थान था और हिंदू महाकाव्यों में भी हिंदुओं को अफगानिस्तान, बर्मा, ईरान और लंका पर कब्ज़ा करते हुए वर्णित किया गया है। उन्होंने कहा है कि, भारत माता ने हजारों वर्षों से, ईरान से सिंगापुर तक, दो समुद्रों में अपनी भुजाएं डुबोई हैं और श्रीलंका को कमल की पंखुड़ी के रूप में उनके पवित्र चरणों में अर्पित किया है।

जिसे महान बनाने की इच्छा जताई जताई जाती है, वह यह अमूर्तता है। आज इसमें मौजूद वास्तविक लोग और संस्कृतियां केवल वहीं तक उपयोगी हैं, जहाँ तक वे इस अपरिभाषित महानता को प्राप्त करने में मदद करते हैं। और भारत जर्मनी से आगे निकलने के लिए तैयार है, इस पर गर्व किया जा सकता है, जबकि भारतीयों का बांग्लादेशियों से पीछे रहना सुविधानुसार नजरअंदाज किया जा सकता है।

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