पटना। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। बीते कुछ सालों से बिहार की राजनीति में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है।
दरअसल यहां पर नीतीश कुमार सालों से सीएम है। अब तो ये तक कहा जाने लगा है कि सरकार कोई बनाये लेकिन मुख्यमंत्री तो सिर्फ नीतीश कुमार ही होंगे।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या इस बार कोई चमत्कार होगा और ये मिथक टूट जायेगा। साल 1990 से लेकर साल 2005 तक यहां पर लालू राज रहा है लेकिन इसके बाद पूरी तरह से कहानी बदल गई और नीतीश कुमार सीएम बने और अब तक है लेकिन इस बार उनकी लोकप्रियता में काफी गिरावट देखने को मिली है।
युवा लोग नीतीश कुमार को अब सीएम बनता नहीं देखना चाहते हैं। साल 2010 में नीतीश कुमार की पार्टी 115 सीटें जीती थी लेकिन बहुमत से दूर थी।
ऐसे में बीजेपी की मदद से सीएम बन गए। 2015 में लालू से हाथ मिला लिया और सीट कम आने के बावजूद सीएम बने। जेडीयू को 2010 के मुकाबले 44 सीटें कम यानी 71 सीटें मिलीं।
2020 जेडीयू के लिए सर्वाधिक खराब साल रहा, जब उसके सिर्फ 43 विधायक ही चुन कर सदन पहुंचे। फिर भी सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठे। 20 साल से नीतीश कुमार बिहार में सरकार चला रहे हैं लेकिन इस बार मिथक टूट सकता है।
बात अगर लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव की की जाए तो उनकी लोकप्रियता में काफी उछाल देखने को मिल रहा है। लालू यादव के नेतृत्व में और नीतीश कुमार की देखरेख में तेजस्वी यादव को राजनीति का ककहरा सीखने का मौका मिला, और अब वे पूरी तरह से एक परिपक्व राजनेता के तौर पर देखे जा रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले सी वोटर का सर्वे सामने आया है। उस सर्वे में एक बात तो साफ हो गई है कि लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव अब नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती बन गए है। सर्वे में सीएम के लिए 41 प्रतिशत लोगों की पसंद तेजस्वी बताए गए हैं जबकि अब केवल 18 फिसदी लोग ही नीतीश को फिर से सीएम बनते देखना चाहते हैं।
दूसरी तरफ बीजेपी के पास कोई भी सीएम लायक चेहरा नहीं है। डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी को सिर्फ 8 प्रतिशत लोग सीएम के तौर पर देखना पसंद करते हैं। चिराग पासवन को सिर्फ 4 प्रतिशत लोग ही सीएम के योग्य मान रहे हैं। इससे पता चल रहा है कि तेजस्वी यादव राजनीति में अब एक मजबूत चेहरे के तौर पर देखे जा रहे हैं।