औरंगाबाद। बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले अमरेश सिंह एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता किसान हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। जैसे-तैसे करके वे 12वीं तक पढ़ाई कर सके। इसके बाद खेती के काम में पिता का हाथ बंटाने लगे। और आगे खेती को ही अपना करियर बना लिया। अभी वे 35 एकड़ जमीन पर मेडिसिनल प्लांट, लेमन ग्रास और सुगंधित फूलों की खेती और इसकी प्रोसेसिंग करते हैं। इससे सालाना 30 से 35 लाख रुपए उनकी कमाई हो रही है।
40 साल के अमरेश की गिनती देश के प्रगतिशील किसानों में होती है। सैकड़ों किसानों को वे ट्रेंड कर चुके हैं। अभी भी कई लोग उनकी देखरेख में खेती कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं।
2016 में मेडिसिनल प्लांट की खेती शुरू की
अमरेश शुरुआत में पारंपरिक खेती करते थे। बाद में उन्होंने सब्जियों की भी खेती की, लेकिन उन्हें इसमें ज्यादा कमाई नहीं हुई। ऊपर से जानवर भी बड़े लेवल पर फसल को नुकसान पहुंचाते थे। इस समस्या से निजात पाने का वे उपाय ढूंढ ही रहे थे, तभी उनके एक परिचित ने मेडिसिनल प्लांट की खेती के बारे में जानकारी दी।
इसके बाद अमरेश ने लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट्स (CSIR) से मेडिसिनल प्लांट की खेती की ट्रेनिंग ली। और गांव लौटकर चार एकड़ जमीन पर इसकी खेती शुरू कर दी। पहले ही साल उन्हें कामयाबी मिली और अच्छी कमाई हुई। साथ ही जानवरों के नुकसान से भी छुटकारा मिल गया, क्योंकि इन प्लांट्स को जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
आमदनी बढ़ी तो प्रोसेसिंग का काम शुरू किया
अमरेश बताते हैं कि जब इसकी खेती से अच्छी कमाई होने लगी तो मैंने अपने यहां एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाई। इससे अलग-अलग तरह के ऑयल तैयार कर मार्केट में सप्लाई करने लगा। बाद में उन्होंने लेमन ग्रास से चाय और कॉफी बनाकर बेचना शुरू किया। अभी वे हर महीने तीन से चार हजार प्रोडक्ट की डिलीवरी करते हैं।
दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान सहित देशभर से उन्हें ऑर्डर मिलते हैं। हाल ही में थाईलैंड में भी उन्होंने अपने प्रोडक्ट भेजे हैं। हाल ही में उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (FPO) नाम से अपनी कंपनी भी रजिस्टर की है।
किन-किन फसलों की कर रहे हैं खेती?
अमरेश अभी मुख्य रूप से मेंथा, लेमन ग्रास, पामारोजा, सिट्रोनोला और तुलसी की खेती करते हैं। मेंथा 6 माह की खेती है। इस पौधे से जो ऑयल निकाला जाता है उससे कफ सिरप, फूल का पाउडर, पान मसाला जैसी चीजें तैयार होती हैं। इसके प्लांट की पहली कटिंग 100 दिनों में और दूसरी कटिंग 45 से 50 दिन में होती है।
सिट्रोनोला और पामारोजा का इस्तेमाल परफ्यूम बनाने, गुलाब जल तैयार करने और स्किन संबंधी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। जबकि तुलसी इत्र, सांस की बीमारी, कमजोरी, डायबिटिज, एरोमाथेरेपी के इलाज में उपयोग होता है।
लेमन ग्रास की खेती बहुत ही आसान है। यह किसी भी मिट्टी पर हो सकती है। बस जलजमाव वाली जगह नहीं होनी चाहिए। जरूरत के मुताबिक सालभर इसकी खेती की जा सकती है। पहली बार खेती करने पर फसल तैयार होने में 60 से 65 दिन का वक्त लगता है। जबकि दूसरी बार में सिर्फ 40 से 45 दिन लगता है। एक बार प्लांटिंग करने के बाद चार से पांच साल तक फसल का लाभ लिया जा सकता है। इसके लिए महीने में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है।
कैसे तैयार करते हैं चाय?
चाय तैयार करने के लिए सबसे पहले लेमन ग्रास की पत्तियों को काटकर धूप में सुखाया जाता है। उसके बाद उसे एक-एक इंच के टुकड़े में काट लिया जाता है। इसके बाद इसमें मोरिंगा यानी सहजन का पाउडर, तुलसी पत्ता और स्टीविया मिलाया जाता है। इस चाय में चीनी डालने की जरूरत नहीं है। स्टीविया के पत्तों में चीनी से ज्यादा मिठास होती है। इसके बाद इसमें जरूरत के हिसाब से इलायची और अदरक भी मिलाया जाता है।