लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कम वोटिंग के बाद कांग्रेस की आँखों में चमक आ गई है। ठीक भी है। परिस्थितियों को देखकर फ़ैसले बदलने या उन्हें ठोक- ठाककर ठीक करने में कोई बुराई नहीं है।
राजनीतिक गलियारों में इस आशय की चर्चा ज़ोरों पर है कि हालात के मद्देनज़र अब राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका को भी चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। कहा जा रहा है कि राहुल वायनाड के साथ अमेठी से भी पर्चा भरने वाले हैं जबकि प्रियंका गांधी को पहली बार रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी चल रही है। यह उनका पहला चुनाव होगा। अब तक वे पार्टी के लिए चुनाव प्रचार तो करती रही हैं लेकिन खुद उन्होंने कोई प्रत्यक्ष चुनाव नहीं लड़ा था।
निश्चित ही वोटिंग परसेंटेज गिरने से भाजपा ख़ेमे में भी चिंता दिखाई दे रही है। यही वजह है कि पहले चरण के मतदान के बाद और दूसरे चरण के ऐन पहले हिंदू- मुस्लिम वाला चुनावी गणित तेज़ी से फैल चुका है। बयानों और भाषणों में इसकी झलक साफ़ दिखाई दे रही है।
इन्हीं हालात को समझने के बाद शायद कांग्रेस राहुल को अमेठी से भी और प्रियंका को रायबरेली से चुनाव लड़ाने की बात सोच रही है। ये बात अलग है कि परिवारवाद के आरोप के कारण या अन्य किसी वजह से प्रियंका को चुनाव लड़ाने से अब तक कांग्रेस बचती रही है।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है, वायनाड में उनकी जीत के प्रति कांग्रेस कुछ हद तक सशंकित हैं। वहाँ कुछ राजनीतिक पार्टियाँ यह भी कह रही हैं कि आपको वायनाड से ही क्यों लड़ना है? कोई तो कारण होना चाहिए! क्या ये वर्षों से आपकी सीट रही है? आदि।
कहते हैं अमेठी में भाजपा की ओर से स्मृति इरानी चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस को यह दिखाई दे रहा है कि इस बार स्मृति के खिलाफ वहाँ एंटी इन्कम्बेंसी काम कर सकती है। राहुल को वायनाड के बाद अमेठी से भी उतारने का यह भी एक कारण है।
प्रियंका गांधी ने पहली बार चुनावी राजनीति में तब कदम रखा था जब 2004 में उन्होंने अपनी माँ सोनिया गांधी के पक्ष में प्रचार की कमान सँभाली थी। पहली बार 2019 में उन्हें कांग्रेस ने महासचिव का पद देकर उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा था। 2004 में ही राहुल गांधी भी अपने पिता राजीव गांधी की अमेठी सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे।
बहरहाल, उनकी अमेठी से उम्मीदवारी की बात फ़िलहाल कांग्रेस इसलिए ओपन नहीं कर रही है क्योंकि वायनाड में 26 अप्रैल को चुनाव हैं। वोटिंग पर असर न पड़े इसलिए अमेठी का एजेण्डा गुप्त रखा जा रहा है। शायद 26 अप्रैल के बाद पत्ते खोल दिए जाएँगे। वैसे भी अमेठी में चुनाव बीस मई को हैं और यहाँ नामांकन की अंतिम तारीख़ तीन मई है। कांग्रेस को रणनीति बनाने के लिए काफ़ी वक्त मिल जाएगा।