संदेश तलवार (ब्यूरो न्यूज 7 एक्सप्रेस)
-सरकार भी दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने के बजाए बचा रही–
लखनऊ, 09 फरवरी। जहरीली शराब से हुई सौ से ज्यादा मौतों के 24 घंटे के भीतर तकरीबन 300 अभियोगों में पौने दो सौ आरोपियों की गिरफ्तारी साबित कर रही है कि पुलिस सूबे में धधक रही इन भट्ठियों से सीधे तौर पर जुडी है। पुलिस व आबकारी विभाग को पता है कि इनके ठीहे कहां कहां धंसे है और कौन-कौन लोग इसमें लिप्त है।
आखिर सीएम के निर्देशों और फटकार के बाद एक ही दिन में इतनी बड़ी तादाद में गिरफ्तारियां, दर्ज अभियोगों की संख्या और माल बरामद होना साबित करता है कि इन शराब माफियाओं से पुलिस का नेक्सेज है और इस रैकेट की जड़ें काफी गहरी है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि पुलिस व एक्साइज विभाग की मिलीभगत के बिना अवैध शराब का कारोबार मुमकिन नहीं है। क्योंकि शराब बनाते वक्त आसपास फैली दुर्गन्ध से पुलिस को फौरन इसकी मुखबिरी होती है लेकिन इसका नतीजा सिर्फ इतना निकलता है कि इस भट्टी वाले से महीना तय हो जाता है और किसी खास पुलिस मुहिम चलने से पहले ही उसे आगाह कर दिया जाता है कि वह अपना तामझाम और माल हटा ले।
अब तो हालत यहां तक हैं कि गांववाले भी जानते है कि सूचना देने पर होना कुछ नहीं लिहाजा पुलिस इसकी वसूली के लिए गांवों में खुद ही मुखबिर डालने पर मजबूर है ताकि यह कमाई उनके हाथ से न निकल जाए। जिस गांव में जितनी ज्यादा शराब की भट्टियां उस बीट का सिपाही व क्षेत्रीय इंचार्ज से थाना प्रभारी को उतनी ही बड़ी वसूली। हर शराब ठेके से महीनवारी की रकम थाने पर तयशुदा तारीख पर पहुंचना तय है क्योंकि उन्हे पता है कि इन ठेकों पर अवैध शराब की बिक्री होती है। यह शराब बिना टैक्स चुनकाने की वजह से सस्ती होती है लेकिन बिकती टैक्स वाली दर पर ही है।
यह शराब तीन तरह की होती है पहली गांवों में बनने वाली देशी शराब, स्प्रिट (मिथाइल अल्कोहल) से निर्मित और बिना एक्साइज ड्यूटी चुकाए दूसरे राज्यों से तस्करी की गयी शराब। हालत यह हैं कि इस अवैध शराब के सेवन से अब तक न सिर्फ हजारों की तादाद में लोग अपनी जान गंवा बैठे है बल्कि इससे कहीं ज्यादा लोगों की आंखों की रोशनी व दिमाग की कार्यक्षमता खो चुके है। अनगिनत व्क्ति इस तरह की शराब के सेवन से अंदर से खोखले हो चुके है और उनकी तयशुदा आयु काफी घट चुकी है। उनके परिवार बर्बादी के कगार पर है और कमाई का बड़ा हिस्सा शराबखोरी के बाद डाक्टरों के पास पहुंच रहा है।
लेकिन पुलिस इन मानवीस संवेदनाओं को खो चुकी है और अपने निजी स्वार्थ के लिए फर्ज को भुला बैठी है अगर कागजी खानापूरी के लिए कुछ दर्जन आरोपी पकड़ भी लिए जाते हैं तो यह सिर्फ दिखावा मात्र करने के लिए…., और कुछ दिनों के बाद यह सब फिर उसी ढर्रे पर चलने लगेगा जैसा जहरीली खराब से 100 की मौतों से पहले चल रहा था।
सरकार भी अपने अफसरों को बचाने में लगी है। सहारनपुर, मेरठ व कुशीनगर के डीएम व एसएसपी पर कार्रवाई न होना इसकी बानगी है। आज की जरूरत है कि इस मामले पर सरकार आबकारी व पुलिस विभाग जागे और अपनी जिम्मेदारियों को संजीदगी से ले ताकि यहां से अवाम के लिए बेहतर माहौल पैदा हो सके।