पूर्णबन्दी : शुरू किया लंगर तो जल उठे दर्जन भर चूल्हे

कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक-एक युवा सामजसेवी ने पूर्णबन्दी शुरू होने के अगले दिन यानी 26 मार्च से भूखे-प्यासे लोगों को पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया तो कुछ ही दिनों में दर्जन भर स्थानों पर चूल्हे जल उठे। 60 दिनों में 15 हजार से अधिक लोगों की क्षुधा शांत हुई।
प्रशासन के हाथ खड़े करने पर कोटा से पूर्वोत्तर राज्यों के साथ बिहार और बंगाल जा रहे छात्रों की सुधि ली गयी। हर दिन 20-25 सहयोगियों ने वितरण का जिम्मा उठा लिया। वाहनों पर लदे प्रवासी मजदूर, यात्रियों की टोली और साइकिल, बाइक, बस-ट्रकों पर आने वाले हर भूखे-प्यासे को भोजन-पानी मिलने लगा। इस संकल्पित सख्श ने जन सहयोग मिलने के बाद भी खुद पर भरोसा रखा। सहयोगियों की लिस्ट छोटी होने पर खुद के पैसों से दिन-रात, उसी तन्मयता से जुटा रहा। निष्ठा और समर्पण से शुरू हुए इस कार्य को लक्ष्य तक पहुंचने में जुटा है। यह युवा सामजसेवी और स्वर्ण व्यवसायी कोई और नहीं, बल्कि वह कसया नगरपालिका क्षेत्र के निवासी राकेश जायसवाल हैं।
सुबह की सैर पर नजारा देख द्रवित हुआ युवा
पूर्णबन्दी की घोषणा से अगले दिन ही लोगों ने घर वापसी शुरू कर दी थी। कसया बस अड्डे पर तकरीबन 400 लोग पहुंच गए थे। परिवारों के साथ पहुंचे बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। दुकानें बंद होने की वजह से बेबस परिजनों के पास ढांढस बंधाने के सिवाय कुछ भी नहीं था। सुबह की सैर पर निकले राकेश जायसवाल ने जब यह देखा तब आंखें डबडबा गईं। मन कचोटने लगा और पैरों ने साथ देना बंद कर दिया।
वहीं से लौटे राकेश ने घर पर ही तहरीर (खिचड़ी) बनवाना शुरू किया। बस अड्डे पर मौजूद तकरीबन 400 लोगों की क्षुधा शांत कराई। इस कार्य मे महज 04-05 लोगों ने ही साथ दिया था। लोगों से मिले आशीर्वाद ने राकेश को संकल्पित कर दिया और पूर्णबन्दी यह कार्य करते रहने का संकल्प ले लिया। अब यह सेवा कार्य करते 60 दिनों से अधिक का समय हो गया है। अनवरत चल रहा है।
मिलने लगा सहयोग, जुड़ने लगे युवा
स्थानीय 50 गरीब परिवारों के साथ आने वाले राहगीरों और यात्रियों की मदद करने आगे आये राकेश के साथ सहयोगियों की लंबी कतार लग गयी। अनिल जायसवाल की अगुवाई में रोटरी क्लब के सदस्य आये तो सदर आलम, वाहिद, जगन्नाथ जायसवाल, पप्पू सोनकर, पवन जैसे युवाओं ने वितरण की कमान संभाल ली। हर दिन 250 से 300 लोगों तक भोजन पहुंचने लगा।
दिन की बजाय रात का समय चुन लिया 
राकेश बताते हैं कि जब दिन में दर्जन भर स्थानों पर भोजन बनाकर लोगों को बांटा जाने लगा तब ध्यान आया कि अब सबको दिन में मिल जा रहा है, लेकिन रात में आने वाले भूखे लोग तड़फड़ा रहे हैं। फिर तत्कालीन एसडीएम कसया अभिषेक पांडेय से अनुमति मिलने के बाद रात में वितरण का कार्य शुरू हुआ। प्रेमवलिया, कुशीनगर, ओवरब्रिज, भैंसहा और तकरीबन 10 किलोमीटर दायरे में आने वाले सभी टोल प्लाज़ाओं पर रुकने वाले वाहनों से आ रहे यात्रियों-राहगीरों को भोजन कराया जाने लगा।
आपदा केंद्रों-सुरक्षाकर्मियों की चिंता की 
राकेश की अगुवाई में खड़ी हुई टीम ने कोरोना योद्धाओं की चिंता भी की। पिकेट पर तैनात पुलिसकर्मियों को भोजन कराया तो आपदा केंद्रों में तैनात कर्मचारियों की चिंता भी की। समय से इन्हें पैकेट पहुंचाते रहे।
प्रशासनिक अफसरों का आने लगा फोन
राकेश के मुताबिक टीम की सक्रियता ने सबका विश्वास जीता। प्रशासनिक अफसर और पुलिसकर्मियों के फोन आने लगा। भूखे लोगों तक पहुंचना आसान हो गया। कुशीनगर में तैनात सिपाही सुजीत यादव की संवेदनशीलता के कायल युवाओं का कहना है कि इस सिपाही ने न सिर्फ दिन में सूचनाएं दीं, बल्कि आधी रात में भी भूखों को भोजन उपलब्ध कराने में मदद करता रहा।
भूख लगी, पर कम नहीं हुआ हौसला
नगर के युवा शालिग्राम शुक्ल का कहना है कि इस दौरान सेवा कार्य मे जुटे युवाओं को कभी कभी भूख का एहसास होता था, लेकिन गाड़ियों में रखे पैकेट उन्हें जरूरतमन्दों तक जल्दी पहुंचाने को प्रेरित करते थे। हौसला कम नहीं होने देते थे। रात में जब भी घर पहुंचते थे, भोजन मिलना तो निश्चित ही था।

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